Monday, January 13, 2025
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Mahakumbh 2025: आसान नहीं है नागा साधुओं का जीवन, करने पड़ते हैं कई त्याग, जानें क्या हैं कठोर नियम?

Mahakumbh: महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है, कुंभ में लोगों का तांता लगा हुआ है, पर नागा साधुओं का हुजूम अलग ही अपना रंग जमाए हुए हैं, लोगों को आज भी इनके कई रहस्य नहीं पता हैं।

Written By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published : Jan 13, 2025 7:08 IST, Updated : Jan 13, 2025 7:08 IST
नागा साधु
Image Source : PTI नागा साधु

Kumbh Mela 2025: महाकुंभ 2024 की शुरुआत आज से हो चुकी है, ऐसे में लोग पौष पूर्णिमा का पहला स्नान कर रहे हैं। इस दौरान महाकुंभ में लाखों की संख्या में लोगों का हुजूम नजर आ रहा है। 14 जनवरी को महाकुंभ का पहला शाही स्नान (अमृत स्नान) होगा, इस दौरान सबसे पहले नागा साधु स्नान करेंगे। हर बार की तरह नागा साधु इस बार भी कौतुहल का विषय बने हुए हैं, इनके बिना महाकुंभ की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। महाकुंभ में 3 दिन शाही स्नान होता है,जिसमें नागा साधु सबसे पहले स्नान करते हैं। नागा साधु काफी तप और साधना करते हैं। इनकी साधना काफी कठिन होती है। ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या है नागा परंपरा और इनके क्या-क्या कठोर नियम है....

कब से शुरू हुई नागा परंपरा?

जानकारी के मुताबिक, जिस व्यक्ति को संत समाज और शंकराचार्य से नागा की उपाधि मिल जाती है, उन्हीं को नागा रहने की अनुमति दी जाती है। धार्मिक इतिहास में झांकें तो बताया गया कि आठवी शताब्दी में जब सनातन धर्म की मान्यताओं और मंदिरों को लगातार तोड़ा जा रहा था तब आदि शंकराचार्य ने 4 मठों की स्थापना की, वहां से सनातन धर्म की रक्षा का दायित्व संभाला और जब उन्हें लगा कि धर्म की रक्षा मात्र शास्त्र से नहीं की जा सकती तो शंकराचार्य ने अखाड़ा परंपरा शुरू की, जिसमें धर्म की रक्षा के लिए लिए मर-मिटने वाले साधुओं को प्रशिक्षित किया गया। इसके बाद से ही नागा साधु धर्म रक्षक माने जाते हैं।

क्या हैं कठोर नियम?

धर्म की रक्षा के मार्ग पर चलते-चलते नागा साधुओं ने अपने जीवन को इतना कठिन बना लिया ताकि कभी विपत्ति का समय आए तो हर चुनौती से निपटा जा सके। नागा बनन के लिए बह्मचर्य की शिक्षा लेनी होती है और इसे पूर्ण होने के लिए कम से कम 6 साल लगते हैं। नागा साधु बनने के दौरान 17 पिंडदान करना होता है, 8 पिंडदान पिछले जन्म का और 8 इस जन्म का करते हैं, वहीं, 17 पिंड खुद का देना होता है।

  • संप्रदाय से जुड़े साधुओं का संसार और गृहस्थ जीवन से कोई लेना-देनी नहीं होता। इनका जीवन आम व्यक्ति के जीवन से कई गुना कठिन होता है।
  • ये साधु डमरु, त्रिशूल,रुद्राक्ष, तलवार, शंख, कमंडल, चिमटा,चिलम, भस्न रखते हैं
  • नागा साधु रोज सुबह 4 बजे उठकर नित्य कर्म करते हैं, इसके बाद स्नान, श्रृगार, हवन, प्राणायाम, कपाल क्रिया आदि करते हैं।
  • नागा साधु दिन में एक बार ही शाम को भोजन करते हैं, बाकि दिन में ये कुछ ही नहीं खाते।
  • नागा साधु अखाड़े, आश्रम और मंदिरों में रहते हैं, कुछ संत तो हिमालय या पहाड़ों में जाकर तप करते हैं और वहीं रहते हैं।
  • नागा साधु कितनी भी सर्दी या गर्मी क्यों न हो कपड़े नहीं पहनते।
  • नागा साधु जमीन पर सोते हैं, या कहें कि नागा साधु कभी बिस्तर पर नहीं सोते।
  • अखाड़े के आदेशानुसार यह पैदल ही भ्रमण करते हैं।
  • नागा मंडली में एक सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते, कुंभ में अंतिम प्रण लेने के बाद वह लंगोट भी त्याग देते हैं और सारी उम्र नग्न ही रहते हैं।

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