Kanak Bhawan: हिंदू धर्म में प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन विवाह पंचमी मनाई जाती है। इसी दिन मां सीता का भगवान राम के साथ विवाह हुआ था। हिंदू धर्म में यह पवित्र पर्वों में से सबसे उत्तम पर्व माना जाता है। अखिल ब्रह्मांड के महानायक श्री राम के साथ जनक नंदनी मां सीता का शुभ विवाह हुआ था।
मिथिला नगरी नेपाल देश के जनकपुर धाम और अयोध्या नगरी में यह पर्व बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। भगवान राम संग मां सीता का विवाह तो जनकपुर में हुआ था लेकिन जब मां सीता प्रभु श्री राम के साथ अयोध्या धाम में पधारी थीं। तो उन्हें माता कैकयी ने मुंह दिखाई की रस्म में पूरा सोने से बना भवन भेंट में दिया था। आइए जानते हैं वर्तमान समय में उस सोने के दिव्य भवन का स्वरूप कैसा है।
मां कैकयी ने सीता जी को मुंह दिखाई में दिया था कनक भवन
भगवान राम को सबसे ज्यादा मां कैकयी प्रेम करती थीं और यह भी सत्य है कि उन्हीं ने दशरथ जी से कह कर भगवान राम को 14 वर्ष के वनवास के लिए भी भेजा था। परंतु जितना प्रेम माता कैकयी अपने पुत्र भरत से करती थीं। उससे कई ज्यादा प्रेम वह भगवान राम से भी करती थीं और इसी वजह से जब मां सीता विवाह कर भगवान राम के साथ अयोध्या नगरी पधारीं तो माता कैकयी ने अपनी बहु के रूप में मुंह दिखाई की रस्म में दशरथ जी से निवेदन कर विश्वकर्मा जी द्वारा एक स्वर्ण का भवन निर्माण करा कर उन्होंने मां सीता का यह भेंट किया था। मान्यता है कि जिस समय कैकयी जी ने माता सीता को यह भवन भेंट स्वरूप दिया था उस दौरान ये पूरा सोने से बना हुआ एक दिव्य भवन था। मंदिर में भगवान के विग्रह की छत आज भी पूरे स्वर्ण की बनी हुई है।
सोने का महल होने के कारण नाम पड़ा कनक भवन
सोने का भवन होने के कारण इसका नाम कनक भवन पड़ गया। यह भवन आज भी अयोध्या नगरी में विद्धमान है और प्रमुख मंदिरों में से एक है। मंदिर परिसर में अंदर एक बड़ा सा आंगन है और यहां भगवान राम और मां सीता का विग्रह है। इस मंदिर में सीताराम जी की 3 प्रतिामाएं हैं। जिसमें से एक सीताराम जी की प्राण प्रतिष्ठित प्रतिमा है।
हनुमान जी को अनुनय-विनय करने पर मिला था प्रवेश
मान्यता है कि कनक भवन में माता सीता और राम जी के सिवाए किसी को रहने की अनुमति नहीं थी। यहां पर सीता जी की सखियां उनसे मिलने आया करती थीं। जहां सीताराम जी विराजमान हों वहां हनुमान जी तो अवश्य ही रहते हैं। हनुमान जी ने अपने आराध्या प्रभु श्री राम से कनक भवन में पहरेदार के रूप में रहने के लिए कई बार प्रार्थना की तब जाकर भगवान राम ने हनुमान जी को प्रेम पूर्वक कनक भवन में प्रवेश दिया और उनको बाहर आंगन में रहने की अनुमति दे दी। हनुमान जी का एक छोटा सा विग्रह आज भी इस मंदिर परिसर में है। माना जाता है कि राम जी के दर्शन करने से पहले हनुमान जी की अनुमति लेनी पड़ती है।
द्वापर में श्री कृष्ण ने भी कराया था इस भवन का जीर्णोधार
मान्यता है कि श्री कृष्ण द्वापर युग में जब तीर्थयात्रा करते हुए अयोध्या नगरी पहुंचे थे। तब उन्होंने इस भवन का पुनः जीर्णोधार करवाया था। कनक भवन मंदिर के अंदिर एक शिला पर यह लिखा हुआ है। समय-समय पर इस भवन का जीर्णोधार होता गया। श्री कृष्ण के बाद कलयुग काल में राजा विक्रमादित्य ने इस भवन को पुनः निर्मित कराया। बाद में ओरछा का रानी और राम जी की अनन्य भक्त वृषभानु कुंवरि ने इसे पुनर्निर्मित कराया था। राम मंदिर के अलावा यह भी अयोध्या नगरी के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है जो राम मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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