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Chandra Grahan 2022: जानें भारत में मौजूद ऐसे मंदिरों के बारे में जो ग्रहण के दौरान भी नहीं होते बंद

Lunar Eclipse 2022 Time Sutak Kaal: हिंदू धर्म में ग्रहण को अशुभ माना जाता है और इस दौरान मंदिर के कपाट पूजा-पाठ और दर्शन के लिए बंद कर दिए जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी मंदिर हैं जो ग्रहण और सूतक काल में भी खुले रहते हैं।

Edited By: Jyoti Jaiswal @TheJyotiJaiswal
Published on: November 07, 2022 14:55 IST
Chandra Grahan 2022- India TV Hindi
Image Source : INSTAGRAM Chandra Grahan 2022

Lunar Eclipse 2022 Time Sutak Kaal: मंगलवार 08 नवंबर 2022 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन साल का अंतिम और दूसरा चंद्र ग्रहण लगने वाला है। यह पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा जिसे भारत के कुछ इलाकों में देखा जा सकता है। धार्मिक दृष्टिकोण से ग्रहण लगने की घटना को अशुभ माना जाता है और इस दौरान कई कार्य वर्जित माने जाते हैं। ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ करने पर भी विशेष मनाही होती है। ग्रहण के नियम सूतक काल लगते ही शुरू हो जाते हैं। सूर्य ग्रहण में 12 घंटे और चंद्र ग्रहण में 9 घंटे पहले सूतक लग जाता है।

ग्रहण की तरह की ही सूतक काल को भी शुभ नहीं माना जाता है। सूतक लगते ही मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं। इस दौरान पूजा-पाठ जैसे कार्य नहीं होते। जानते हैं भारत में स्थित कुछ ऐसे मंदिरों के बारे में जो चंद्र ग्रहण और सूतक काल में भी खुले रहते हैं। इसके पीछे क्या कारण और महत्व है आइये जानते हैं।

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विष्मुपद मंदिर

बिहार के गया का विष्णुपद मंदिर पर भी ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता। यहां सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण में भी मंदिर के कपाट खुले रहते हैं। ग्रहण के दिन मंदिर की मान्यता काफी बढ़ जाती है। क्योंकि ग्रहण के दौरान यहां पिंडदान किए जाते हैं। ऐसा करना शुभ माना जाता है।

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महाकाल मंदिर

उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर भी ग्रहण के दौरान खुला रहता है। ग्रहण काल में मंदिर के दर्शन करने पर भक्तों को किसी तरह की मनाही नहीं होती और ना ही मंदिर के पट बंद किए जाते हैं। हालांकि पूजा-पाठ और आरती के समय में अंतर होता है। ग्रहण लगते ही आरती का समय बदल जाता है।

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लक्ष्मीनाथ मंदिर

प्राचीन लक्ष्मीनाथ मंदिर का पट भी सूतक काल में खुला रहता है। दरअसल इससे जुड़ी एक कथा है, इसके अनुसार एक बार सूतक लगने पर पुजारी ने लक्ष्मीनाथ मंदिर के पट बंद कर दिए। उस दिन भगवान की पूजा नहीं हुई और ना ही उन्हें भोग लगाया गया। उसी रात एक बालक मंदिर के सामने वाली हलवाई की दुकान पर गया और उसने कहा कि इसे भूख लगी है। उसने हलवाई को एक पाजेब देकर प्रसाद मांगा। हलवाई ने भी उसे प्रसाद दे दिया। अगले दिन मंदिर से पाजेब गायब होने की बात फैल गई। तब हलवाई ने पुजारी को पूरी बात बताई। दरअसल जिस बालक को भूख लगी थी वह और कोई नहीं बल्कि स्वयं लक्ष्मीनाथ महाराज थे। इस घटना के बाद से ही ग्रहण के सूतक में इस मंदिर के पट नहीं बद होते। बल्कि यहां आरती होती है और भगवान को भोग लगाया जाता है। केवल ग्रहण काल में मंदिर के पट बंद किए जाते हैं।

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