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Lohri 2023: लोहड़ी का त्यौहार क्यों मनाया जाता है? जानिए इसके पीछे का इतिहास और महत्व

Lohri 2023: लोहड़ी त्यौहार से लेकर कई कहानियां प्रचलित है, जिसमें दुल्ला भट्टी की सबसे अहम है। वहीं यह पर्व किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है। तो आइए जानते हैं लोहड़ी मनाने के पीछे का क्या है इतिहास।

Written By: Vineeta Mandal
Published : Jan 12, 2023 21:14 IST, Updated : Jan 12, 2023 21:18 IST
Lohri 2023
Image Source : FREEPIK Lohri 2023

Lohri 2023: लोहड़ी पर्व की तारीख को लेकर हर कोई आसमंजस्य की स्थिति में है। लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि इस साल लोहड़ी की आग 13 को जलाएं या फिर 14 जनवरी को। अगर आप भी इन तारीखों के बीच उलझ गए हैं तो हम आपको बता दें कि इस साल लोहड़ी का त्यौहार 14 जनवरी को मनाया जाएग। शनिवार को पंजाब समेत पूरे देश में लोहड़ी की धूम रहेगी। आपको बता दें कि लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है। उत्तर भारत में, खासकर कि पंजाब में इस त्यौहार का विशेष महत्व है। जिन लोगों की नई-नई शादी हुई हो या जिनके घर में बच्चा हुआ हो, उन लोगों के लिए लोहड़ काफी मायने रखता।

Lohri

Image Source : FILE IMAGE
लोहड़ी 2023

लोहड़ी (Lohri Celebration) के दिन शाम के समय लकड़ियों और गोबर के उपलों को इकट्ठा करके जलाया जाता है। इसके बाद परिवार के साथ उस अग्नि के चारों ओर घेरा बनाकर परिक्रमा की जाती है। परिक्रमा के समय जलती हुई आग में मूंगफली, रेवड़ी, तिल, मक्की के दाने आदि चीजें डालने की परंपरा है। कहते हैं कि ऐसा करने से दूसरों की बुरी नजर से छुटकारा मिलता है, घर में सुखद माहौल बनता है और व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। मालूम हो कि लोहड़ी के इस त्यौहार को मनाने के पीछे इतिहास के कुछ पन्ने भी जुड़े हैं। इस दिन को मुगलशासकों के विरुद्ध न्याय की लड़ाई लड़ने वाले लोकप्रिय नायक, परमवीर, हिन्दू गुर्जर अब्दुल्ला भाटी की याद में मनाया जाता है।

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लोहड़ी से जुड़ा प्रचलित किस्सा (Lohri Dulla Bhatti story)

अब्दुल्ला भाटी नाम के एक शख्स थे जो हमेशा सबकी मदद के लिए तैयार रहते थे। ऐसे ही एक बार उन्होंने एक ब्राह्मण की कन्या को मुगलशासक के चंगुल से छुड़ाया था और उसकी शादी एक सुयोग्य हिन्दू वर से करवाई थी। उस कन्या का नाम सुंदर मुंदरिए था। अब अब्दुल्ला भाटी कोई पंडित तो था नहीं, इसलिए उसने आस-पास पड़ी लकड़ियों और गोबर के उपलों को इकट्ठा करके उसमें आग जलाई और उसके पास जो कुछ खाने की चीजें जैसे- मूंगफली, रेवड़ी आदि थीं वो सब उसने आग में डाल दी और उन दोनों की शादी करवा दी। इस प्रकार उन दोनों की शादी तो हो गई, लेकिन बाद में मुगल शासकों ने अब्दुल्ला भाटी पर हमला कर दिया और वह मारा गया। तब से अब्दुल्ला भाटी की याद में लोहड़ी का ये त्यौहार मनाया जाता है और शाम के समय लकड़ी और उपले जलाकर उसकी परिक्रमा की जाती है। लोहड़ी के दिन एक-दूसरे को मूंगफली, रेवड़ियां आदि बांटने और खाने का भी रिवाज है।

कहते हैं कि शादी के समय अब्दुल्ला भाटी ने कुछ इस तरह का गीत भी गाया था-

सुन्दर मुंदरिए

तेरा कौन विचारा
दुल्ला भट्टीवाला
दुल्ले दी धी व्याही
सेर शक्कर पायी
कुड़ी दा लाल पताका

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। INDIA TV इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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