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Daan Punya: कमाई का इतना अंश दान करने से कभी नहीं बनेंगे कंगाल, अब जान लीजिए क्या है इसका सही नियम

हिंदू धर्म में दान करना सबसे पुण्य का कार्य बताया गया है। लेकिन दान करने का नियम भी पता होना चाहिए। कितना अंश अर्जित धन का दान करना चाहिए और क्या है उसका सही नियम जिससे जीवन में कभी भी धन की हानि नहीं होती। आज हम आपको इस बारे में बताने जा रहे हैं।

Written By: Aditya Mehrotra
Updated on: December 08, 2023 8:28 IST
Daan Punya- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Daan Punya

Daan Punya: व्यक्ति बड़ी मेहनत से पैसे कमाता है और उस पैसे से परिवार समेत अपना जीवन यापन करता है। शास्त्रों में मेहनत से कमाए हुए धन को परिवार और अपने जीवन यापन पर खर्च करना तो बताया ही गया है। इसी के साथ उस पैसों से दान कर के पुण्य कैसे कमाया जाए यह भी बताया गया है। कुछ लोग मेहनत से धन तो कमाते हैं। 

परंतु उस कमाए हुए धन से एक भी दान नहीं करते हैं और ढेर सारा पैसा कमाने के बाद भी धन की कमी का आभास करते हैं। धन अर्जित करने के बाद भी इन लोगों के पास पैसा नहीं रुकता है या अनावश्यक कार्यों में पैसा खर्च हो जाता है। आइए आज हम आपको बता रहे हैं कि शास्त्र में मेहनत से कमाई हुई पूंजी को शुभ कार्यों में कितना अंश दान करने से धन की बरकत होती है।

दान देने से पहले इन बातों का रखें ध्यान

  • शास्त्रो में बताया गया है कि मनुष्य को न्यायपूर्वक ढंग से अर्जित किए हुए धन के 10वें भाग को दान करना चाहिए। यदि आप अपनी कमाई का 10वां अंश शुभ कार्यों या मंदिर में दान करते हैं तो यह दान परिवार का भरण पोषण करने के बाद ही दान दें। परिवार की इच्छा और उनको कष्ट देकर यदि आप दान देते हैं तो यह दान फलित नहीं माना जाता है। इसलिए पत्नी, पुत्र और पिरवार को कष्ट पहुंचा कर दान नहीं देना चाहिए। 
  • दान देने के लिए श्रद्धा होनी चाहिए। मान्यता है की वही दान फलित होता है जो स्वयं जाकर भेंट किया जाए। किसी को घर पर बुलाकर दिया हुआ दान उत्तम श्रेणी का दान नहीं माना जाता है। उसका फल मिलता तो हैं परंतु मध्यम श्रेणी के अनुसार उसका पुण्य एकत्रित होता है। किसी को भी दान करें तो उसके द्वार जाकर ही दान देना चाहिए ऐसा शास्त्रों में बताया गया है।
  • माना जाता है कि दान करते समय यदि उस व्यक्ति के कोई कान भरता है या फिर उसे दान जैसे पुण्य कर्म करने से रोकता है तो वह व्यक्ति  शीघ्र ही कंगाल हो जाता है। ब्राह्मणों, असहाय लोगों और गौओं की सेवा में दी गई कमाई का दान महादान कहलाया जाता है। यदि इनकी सेवा मे दिए हुए दान को कोई रोकता है या बाधा उत्पन्न करता है तो वह भयांकर दुःख का भोगी होता है।
  • दान देते समय हमेशा तिल, कुश, चावल और जल हाथ में होना चाहिए। 
  • दान की सामग्री को हमेशा दोनों हाथ लगाकर ही सम्मान पूर्वक सामने वाले को दान देना श्रेष्ठ माना जाता है। ब्राह्मण को दान देते समय हमेशा उस दान का सामर्थ अनुसार संकल्प लेना चाहिए। वही दान आपके कर्म में संचित होता है और उसका शुभ फल आपको शीघ्र मिलता है। मान्यता है जो दान हम पूर्ण विधि वाधान से देते हैं वही फल हमें आगे चल कर मिलता है।
  • पितृ के निमित्त दिया दान तिल को होथ में रख कर देना चाहिए वहीं देवताओं के निमित्त दिए हुए दान के समय चावल का प्रयोग हाथों में करना चाहिए। तभी वह दान फलित होता है और देव एवं पितृ उसे खुशी से स्वीकार कर आशीर्वाद देते हैं। 
  • शास्त्रों में घर, वस्त्र, कन्या, अन्य और गौ माता का दान देने का विधान उत्तम बताया गया है। इन चीजों का दान करते समय परिवार के एक ही व्यक्ति को दान देना चाहिए। जो इन चीजों का दान करते हैं उनकी आए में वृद्धि होती है।
  • रोगी की दवा का दान करना, ब्राह्मणों के पैर धोना और देवताओं की पूजा करना इन तीन चीजों का शास्त्रों में महादान और गौ दान के समान बताया गया है।
  • दान देते समय हमेशा पूर्व दिशा की ओर मुख कर के दान करना चाहिए और दान स्वीकार करने वाले को हमेशा उत्तर की ओर मुख कर के दान ग्रहण करना चाहिए। ऐसा करने से धान देने वाले को उसका कई गुना अधिक फल मिलता है और स्वीकार करने वाले की आयु क्षीण नहीं होती है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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