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kashi ke kotwal: ऐसे बने थे काल भैरव बाबा काशी के कोतवाल, जानिए पूरी कहानी

kashi ke kotwal: बाबा भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस शहर में भैरव बाबा की ही मर्जी चलती है। कैसे बने भैरव बाबा काशी के कोतवाल, जानिए इस रिपोर्ट के ज़रिए

Written By : Ashwini Tripathi Edited By : Poonam Yadav Published : Sep 17, 2022 17:25 IST, Updated : Sep 17, 2022 17:27 IST
kashi ke kotwal
Image Source : FREEPIK kashi ke kotwal

kashi ke kotwal: थाने की बात सुनकर हर कोई रौबदार थानेदार की कल्पना करता है लेकिन धर्म की नगरी काशी जिसे वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है वहां एक ऐसा थाना है जहां कोतवाल की कुर्सी पर वह नहीं बल्कि काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव विराजमान होते है। यही नहीं इस थाने के प्रभारी के कमरे में बाकायदा एक उनका पुलिसिया रौब में दरबार भी लगता है। इस थाने में तैनात इंस्पेक्टर को हिम्मत नहीं की वह बाबा के कुर्सी पर बैठ जाते यही कारण है कि उनके टेबल के पाया थानेदार बैठते है और लोगो की समस्या सुनते है। दरअसल काशी के राजा तो बाबा विश्वनाथ है लेकिन कोतवाल काल भैरव है। वही शहर भौगोलिक स्थिति की बात करे तो जहां कोतवाली थाना है वह काल भैरव मंदिर के क्षेत्र में आता है। और जब काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव है तो मुख्य कुर्सी पर थानेदार कैसे बैठ सकता है। काल भैरव बाबा काशी के कोतवाल कैसे बने इसके पीछे पौराणिक कथा है। आइए अश्विनी त्रिपाठी की रिपोर्ट के ज़रिए काल भैरव बाबा से जुड़ी ये दिलचस्प  कहानी जानते हैं

सीपी ने कहा वो खुद तीन नियुक्तियों से पहले यहां दर्शन के बाद ही चार्ज लिए

वाराणसी के पुलिस कमिश्नर ए सतीश गणेश ने इंडिया टीवी से बात करते हुए कहा कि काशी के राजा विश्वनाथ है लेकिन कोतवाल काल भैरव है। ऐसी मान्यताएं है ऐसे ही ट्रेडिशन काशी में विगत कई वर्षों से चली आ रही है काशी में मेरी यह तीसरी नियुक्ति है लेकिन प्रत्येक नियुक्ति पर यहां कोई भी अधिकारी चाहे वह पुलिस डिपार्टमेंट में हो या किसी प्रशासनिक विभाग में जब वह चार्ज ग्रहण करते है ग्रहण करने के पहले ही बाबा काल भैरव के दर्शन, बाबा विश्वनाथ के दर्शन और संकट मोचन में दर्शन करने के बाद ही ग्रहण करते है। और इन्ही मान्यताओं को लेकर प्रत्येक अधिकारी अनुषरण करता है। सतीश गणेश ने माना ही शहर में कोतवाली थाना कालभैरव मंदिर के पास है  चूंकि काल भैरव शहर और काशी के कोतवाल है इस कारण इस थाने में विशेष महत्व है और जो भी थानेदार था तैनात होता है वो उनसे आशीर्वाद लेकर ही अपने काम को आगे बढ़ता रहता है।

थानेदार निभाते आ रहे परंपरा

शहर के कोतवाली थाने के ठीक पीछे काल भैरव का मंदिर है।। वर्तमान प्रभारी भरत उपाध्याय ने कहा कि वो बीते 9 महीने से इस थाने पर तैनात है और जब वो यहां आए तो बताया गया कि इस थाने के थानेदार के मुख्य कुर्सी पर बाबा काल भैरव का स्थान निर्धारित है। इससे पहले भी जो अधिकारी यहां तैनात थे वह इस परंपरा को निभा रहे है लिहाजा जब मैं यहां आया तो मैं भी उसी परंपरा को निभाते चले आ रहे है। जब मैं रोज सुबह आता हूँ तो बाबा को प्रणाम करके भी कार्य शुरू करता हूँ।

त्रिदेवों ने मिलकर दी है काल भैरव को काशी की जिम्मेदारी

इस मन्दिर को साल 1715 में बाजीराव पेशवा ने काल भैरव मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था। वास्तुशास्त्र के अनुसार बना यह मंदिर आज तक वैसा ही है। बाबा काल भैरव मंदिर के महंत-पंडित नवीन गिरी बताते है कि बाबा कालभैरव काशी के रक्षक है। काशी ने राजा बाबा विश्वनाथ ने यह अधिकार बाबा भैरव को दिया है। इन पर काशी की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। यही वजह है कि काशी में भैरव के आठ रूप है काशी के अलग - हिस्से में विराजमान है। धर्म की इस नगरी में भैरव के दण्डपाणी भैरव, क्षेत्रपाल भैरव, लाट भैरव जैसे कुल आठ रूप है। जैसा प्रशासनिक सिस्टम में होता है। सभी स्थलों की अर्जी यहां आती है और बाबा कालभैरव बाबा विश्वनाथ तक पहुँचाते है। यहां न्याय तक बाबा विश्वनाथ नही बल्कि काल भैरव करते है। काशी में कोई भी अधिकारी आता है पहले बाबा का दर्शन करता है यहां तक कि जब हमारे प्रधानमंत्री काशी में किसी शुभ काम करने जाते है तो बाबा का आशीर्वाद लेते है। हमारे मुख्यमंत्री योगी जी जब बनारस आते है तो पहले बाबा का आशीर्वाद लेते है फिर काशी विश्वनाथ जाते है। यही नही नवीन गिरी कहते है कि यह काशी जो चलती है, बाबा के रहमो करम पर चलती है। यहां तो बाबा सुनते है फरियाद। आप किसी अधिकारी के यहां जाते है किसी थाने में अगर जाते है तो आप याद रखिये की आप बाबा कालभैरव के यहां फरियाद लगाते है। आप यहां दरखास्त लगा दीजिए देखिए आपका काम होता है या नही होता। इन्ही मान्यताओं के कारण जब कोई भी अधिकारी या बड़ा शख्श आता है उसके पीछे वजह है कि यहां शहर के कोतवाल बाबा कालभैरव है जब वह सीधे बाबा विश्वनाथ के पास जायेगा तो उसे क्या न्याय मिलेगा, जबकि अधिकार बाबा के पास है। बाबा कालभैरव को यह अधिकार ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनो ने मिल कर दिया है आप काशी में रहकर भक्तो का कल्याण करिए और यही वजह है कि पहले काशी में आप का दर्शन होता है फिर अन्य मंदिरों में ।

ब्रह्मा का मुख काटने के बाद काशी आए काल भैरव

काल भैरव मंदिर के पंडित संजय कुमार दुबे बताते है कि यह काशी के कोतवाल है इनका दर्शन करने मात्र से काशी यात्रा पूर्ण होता है। यहां 56 तरीके के भोग लगाएं जाते है। उसमें राजसी सात्विक और तामसी तीनो भोग शामिल है, मन्दिर में 4 पहर आरती पूजा राग भाग किया जाता है। यह भगवान शिव के पांचवे अवतार है। इनकी उतपत्ति के पीछे धार्मिक मान्यता है कि जब ब्रह्मा का एक मुख भगवान शिव की निंदा करने लगा तो भगवान शिव क्रोधित  होकर अपने लट ( बाल) से इन्हें प्रकट किये। बाबा कालभैरव भोलेनाथ के आदेश में अपने नाखून से ब्रह्मा का तीसरा मुख धड़ से अलग कर दिए और वही मुख काल भैरव के हाथ से चिपक गया। ब्रह्मा का शीश काटने के कारण इन्हें ब्रह्म हत्या लगा। आकाश, पाताल घूमने के बाद जब बाबा काल भैरव काशी पहुचे तो यही पास के लाट भैरव के पास ब्रह्मा का कपाल हाथ से अलग हो गया वही बाबा काल भैरव में अपने नाखून के कुण्ड की स्थापना की और वही स्नान कर ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। काशी में वास करने वालो को मृत्यु के बाद कई कल्पों तक यम यातना नही सहते। बाबा भैरव यातना देखर 13 दिनों में उसे मुक्ति दे देते है। नजर और परेशानियों से दूर बचने के लिए यहां आने वाले भक्त अन्य प्रसाद के साथ ही अपने सिर से सरसो का तेल उतार कर अखंड दीप में भरते है।

गोपनीय तरीके से भी आ चुकी है कई हस्तियां

स्थानीय निवासी मनोज यादव कहते है कि वह इस मंदिर में बीते 46 साल से रोजाना आते है। तब यहां भीड़ नही होती थी लेकिन आज उनके महिमा के कारण ही लोगो मे अटूट आस्था है और लगातार भीड़ बढ़ती जा रही है ब्रिटिश काल से इन्हें काशी के कोतवाल के रूप में पूजा जाता है। यहां सभी अधिकारी, पॉलिटिकल हस्तियां आ चुके है। हमारे पीएम खुद 2014, 2017 और 2019 में आ चुके है। पिछले नामांकन में भी वह यहां दर्शन करने के बाद गए। कई खिलाड़ी गोपनित तरीके से भी यहां दर्शन करने आते रहते है। वर्तमान में पितृ पक्ष चल रहा है ऐसे में जो भी यहां अनुष्ठान करने आता है वह बिना इनकी पूजा किये अपना अनुष्ठान पूजा नही करता यहां देश के कोने-कोने से भक्त आते है। वही पास के मुहल्ले के अजय सोनी की माने तो बाबा कालभैरव में अर्जी ( प्रार्थना) लगाने के बाद ही बाबा विश्वनाथ उसे सुनते है।

डिस्क्लेमर - ये आर्टिकल जन सामान्य सूचनाओं और लोकोक्तियों पर आधारित है। इंडिया टीवी इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता।

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