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Kabirdas Jayanti 2023: कबीर के वो दोहे जो आपके जीवन को दिखा सकती है नई राह, यहां पढ़ें उनके प्रसिद्ध दोहे

Kabirdas Ke Dohe: आज कबीर दास की जयंती मनाई जा रही है। इस मौके पर पढ़िए कबीर के प्रसिद्ध और प्रेरणादायक दोहे के बारे में।

Written By: Vineeta Mandal
Published : Jun 04, 2023 8:00 IST, Updated : Jun 04, 2023 8:12 IST
Kabirdas Jayanti 2023
Image Source : INDIA TV Kabirdas Jayanti 2023

Kabirdas Jayanti 2023: 'गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय...' आज भी इस दोहे का स्मरण हर बच्चे को करवाया जाता है। कबीर दास के दोहे लोगों के जीवन को एक नई राह दिखाते हैं। आज यानी 4 जून 2023 को संत कबीर दाय की जयंती मनाई जा रही है। संत कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। वह संत के साथ-साथ समाज सुधार भी थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सुधार के कार्यों में लगा दिया। कबीर दास जी ने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, ब्रज भाषा का समावेश देखने को मिलता है। कबीर दास जी भगवान राम के बहुत बड़े भक्त थे। उनका मत था कि जिस परमात्मा की तलाश में हम दर-दर भटकते रहते हैं वह तो हमारे अंदर है, बस हम अज्ञानवश उसे देख नहीं पाते। 

कबीर दास के प्रेरणादायक दोहे

1. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥

(अर्थ- कबीर कहते हैं कि जब मैं इस दुनिया में बुराई खोजने गया, तो मुझे कुछ भी बुरा नहीं मिला और जब मैंने खुद के अंदर झांका तो मुझसे खुद से ज्यादा बुरा कोई इंसान नहीं मिला।)

2. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥ 

(अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि धैर्य रखें धीरे-धीरे सब काम पूरे हो जाते हैं, क्योंकि अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा।)

3. चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए। वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए।।

(अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि चिंता एक ऐसी डायन है जो व्यक्ति का कलेजा काट कर खा जाती है। इसका इलाज वैद्य नहीं कर सकता। वह कितनी दवा लगाएगा। अर्थात चिंता जैसी खतरनाक बीमारी का कोई इलाज नहीं है।)

4.  साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय।।

(अर्थ- कबीर दस जी कहते हैं कि परमात्मा तुम मुझे इतना दो कि जिसमें मेरा गुजरा चल जाए, मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूं और आने वाले मेहमानों को भी भोजन करा सकूं।)

5. गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय।।

(अर्थ - कबीर दास जी कहते हैं कि शिक्षक और भगवान अगर साथ में खड़े हैं तो सबसे पहलो गुरु के चरण छूने चाहिए, क्योंकि ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता भी गुरु ही दिखाते हैं।)

6. ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोए, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए

(अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं व्यक्ति को हमेशा ऐसी बोली बोलनी चाहिए जो सामने वाले को अच्छा लगे और खुद को भी आनंद की अनुभूति हो।)

7. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।

(अर्थ-  जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना ऊंचा होने के बावजूद आते-जाते राही को छाया नहीं दे सकता है और उसके फल तो इतने ऊपर लगते हैं कि आसानी से तोड़े भी नहीं जा सकते हैं। उसी प्रकार आप कितने भी बड़े आदमी क्यों न बन जाए लेकिन आपके अंदर विनम्रता नहीं है और किसी की मदद नहीं करते हैं तो आपका बड़ा होने का कोई अर्थ नहीं है।)

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