Monday, September 23, 2024
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Jitiya Vrat 2024 Katha: चील सियारिन की कथा सुनें बिना अधूरा रह जाएगा जितिया का व्रत, पूजा के बाद जरूर सुनें

Jitiya Vrat 2024: जितिया का व्रत 25 सितंबर को रखा जाएगा। इस व्रत को करने से संतान की आयु लंबी होती है और उनका स्वास्थ्य बेहतर रहता है। जितिया के दिन व्रत कथा भी जरूर सुनना चाहिए अन्यथा आपका व्रत अधूरा रह सकता है।

Written By: Vineeta Mandal
Published on: September 23, 2024 16:52 IST
Jitiya Vrat Katha- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Jitiya Vrat Katha

Jitiya Vrat Katha: हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जितिया का व्रत रखा जाता है। इसे जिउतिया और जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि जितिया का व्रत रखने से संतान दीर्घायु होते हैं और उनके जीवन पर मंडरा रहे सभी संकट दूर हो जाते हैं। बता दें कि जितिया का व्रत  बिना अन्न-जल यानी निर्जला रखा जाता है। संतान के स्वस्थ्य जीवन और कामना के लिए  महिलाएं पूरे नियम निष्ठा के साथ जितिया का व्रत रखती हैं। जितिया का आरंभ भी नहाय खाय के साथ होता है।  इस साल जितिया का व्रत 25 सितंबर को रखा जाएगा। ऐसे में 24 सितंबर को नहाय खाय होगा और पारण 26 सितंबर को किया किया जाएगा। जितिया के दिन भगवान जीऊतवाहन की पूजा की जाती है। साथ ही जितिया के दिन चील सियारिन की कथा भी जरूर सुनना चाहिए। 

जितिया व्रत की चील और सियारिन की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार,  एक पेड़ पर चील और सियारिन रहती थीं। दोनों की आपस में खूब बनती थी। चील और सियारिन एक-दूसरे के लिए खाने का एक हिस्सा जरूर रखती थीं। एक दिन गांव की औरतें जितिया व्रत की तैयारी कर रही थीं। उन्हें देखकर चील का भी मन व्रत करने का कर गया। फिर चील ने सारा वाक्या सियारिन को जाकर सुनाया। तब दोनों ने तय किया कि वो भी जितिया का व्रत रखेंगी। लेकिन अगले दिन जब दोनों ने व्रत रखा तो सियारिन को भूख और प्यास दोनों लगने लगी। सियारिन भूख से व्याकुल इधर-उधर घूमने लगी। व्रत के दिन गांव में किसी की मृत्यु हो गई यह देखकर सियारिन के मुंह में पानी आ गया। फिर सियारिन ने अधजले शव को खाकर अपनी भूख को शांत किया। वह भूल गई उसने जितिया का व्रत रखा है। वहीं चील ने पूरी निष्ठा और मन से जितिया का व्रत और पारण किया।

भगवान जीऊतवाहन की कथा

चील और सियारिन ने अगले जन्म में सगी बहन बनकर एक राजा के घर में जन्म लिया। चील बड़ी बहन बनीं और सियारिन छोटी बहन।  दोनों का विवाह राजा के घर में हुआ। चील ने सात बेटों को जन्म दिया, वहीं सियारिन के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते। ऐसे में अपनी बहन को सुखी और खुश देखकर सियारिन अंदर-अंदर से जलने लगी और उसने चील के सातों बेटों का मरवा दिया। सियारिन के सातों बेटों के सिर कटवाकर उसने उन्हें चील के घर भिजवा दिया। यह सब देखकर भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों के सिर बनाए और सभी के सिरों को उसके धड़ से जोड़कर उस पर अमृत छिड़कर उन्हें जीवित कर दिया। वहीं जो कटे सिर सियारिन ने भेजे थे वो सब फल में बदल गए। अपनी बहन से रोने की आवाज न सुनकर सियारिन व्याकुल हो उठीं और वहां जाकर सारा माजरा जानने पहुंच गई। सियारिन सारी बातें जब चील को बताई। कहते हैं कि तब चील ने उसे पिछले जन्म की सारी बातें बताई और ये सब सुनकर सियारिन को अपनी गलती का पश्चाताप होने लगा। इसके बाद चील सियारिन को उसी पेड़ के पास ले गई और भगवान जीऊतवाहन की कृपा से उसे सारी बातें याद आ गई। इससे सियारिन इतनी दुखी हुई कि उसकी मौत उसी पेड़ के पास हो गई। राजा को जब इस बात की जानकारी मिली तब उन्होंने सियारिन का दाह संस्कार उसी पेड़ के पास करा दिया।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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