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Janmashtami 2022: जन्माष्टमी का शुभ अवसर आज, जानिए ये 44 मिनट क्यों हैं बेहद खास

Janmashtami 2022: हिंदू धर्म के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। जन्माष्टमी की पूजा मध्यरात्रि में शुभ मानी जाती है।

Written By: Sweety Gaur @sweety_gaur
Published on: August 18, 2022 20:34 IST
Janmashtami- India TV Hindi
Image Source : PIXABAY Janmashtami

Janmashtami 2022: भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव पूरे भारत में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। ये दिन हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। लेकिन इस बार कृष्ण भगवान का जन्मदिन एक नहीं बल्कि दो-दो दिन तक मनाया जाएगा। 18 और 19 अगस्त दोनों ही दिन जन्माष्टमी का शुभ अवसर पड़ रहा है। इस लिए दोनों ही दिन श्रीकृष्ण भगवान का जन्मदिन बड़े ही शानदार तरीके से मनाया जाएगा। 

इस दिन कान्हा के लिए लोग व्रत रखते हैं। सुह उठकर उन्हें स्नान करवाते हैं। उनके लिए नए-नए कपड़े लाते हैं। भोग लगातने के लिए कुछ खास बनाते हैं। ऐसी न जाने कितनी ही चीज़ें लोग करते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस साल 18 अगस्त को रात 12 बजकर 03 मिनट से रात 12 बजकर 47 मिनट तक निशीथ काल रहेगा। यह अवधि कुल 44 मिनट की है। जन्माष्टमी की पूजा मध्यरात्रि में शुभ मानी जाती है।

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जन्माष्टमी 2022 शुभ मुहूर्त-

अष्टमी तिथि प्रारम्भ - अगस्त 18, 2022 को 09:20 तक

अष्टमी तिथि समाप्त - अगस्त 19, 2022 को 10:59 तक
रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ - अगस्त 20, 2022 को 01:53 तक
रोहिणी नक्षत्र समाप्त - अगस्त 21, 2022 को 04:40 तक

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श्रीकृष्ण की आरती

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

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कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद।।
टेर सुन दीन भिखारी की॥ श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

 

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