Garun Puran: सनातन संस्कृति में वो सभी चीजों को महत्व दिया गया है। जिससे मनुष्य का जीवन बहतर बनाया जा सके। आज हम आपको गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के देवता यमराज के महल के प्रवेश द्वार के बारे में बताएंगे। दरअसल गरुड़ पुराण हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों मे से एक है। इसमे जीवन के जन्म और मरण के चक्र, नरक लोक, स्वर्ग लोक और मनुष्यों के कर्मों के फल के बारे में सारांश से सब कुछ वर्णित है।
इस पुराण में विष्णु जी के श्री मुख द्वारा वो सभी बाते बताई गई हैं। जिसे पक्षिराज गरुड़ नें श्री हरि से प्राणियों के उद्दार के लिए पूछा है। जिसमें भगवान नारायण ने नरक लोक की यातनाओं के बारे में तो बताया ही है। साथ ही यह भी बताया है कि नरक लोक और पाप कर्मों से कैसे बचा जा सकता है। जिससे मृत्यु के पश्चात जीवात्मा को मोक्ष प्राप्त हो सके। तो आइए अब आज हम गरुड़ पुराण के अनुसार जानेंगे की यमलोक में प्रवेश करने वाली जीवात्माओं को उनके कर्म के अनुसार किस द्वार से प्रवेश मिलता है और यमलोक में यमराज देवता का महल आखिर कैसा है।
यमपुरी में बने हैं चार प्रवेश द्वार
गरुड़ पुराण में यहा बताया गया है कि यमपुरी में यमलोक के अंदर जाने के लिए चार प्रवेश द्वार जीवात्माओं के लिए बने हैं। प्राणी अपने जीवन काल में जैसा कर्म करता है। उसे वैसा ही भोगना पड़ता है। वैसो तो यमलोक में प्रवेश करने के लिए चार द्वार बताए गएं हैं और यमराज देवता का महल कई योजन लंबा और विशाल है। इन चार द्वारों को जीवात्मा के कर्मों के अनुसार विभाजित किया गया है।
चतुरस्त्रं चतुर्द्वरमुच्चप्राकारवेष्टितम्। योजनानं सहस्त्रं हि प्रमाणेन तदुच्यते।।
तस्मिन् पुरेअस्ति सुभगं चित्रकुप्तस्य मन्दिरम्। पञ्चविंशतिसंखयाकैर्योजनैर्विस्तृतायतम्।।
पूर्व द्वार- यमलोक का पूर्व द्वार सिद्ध योगियों, महान तपस्वीयों, ऋषियों-मुनियों और साधु-संतों के लिए बना है। इस द्वार से यही पुण्य जीवात्माओं को प्रवेश मिलता है। जब यह जीवात्माएं यमपुरी पहुंचती हैं। तो इनके लिए पूर्व का द्वार खुलता है। गरुड़ पुराण में यह द्वार कई प्रकार के रत्न एवं मोतियों से जड़ा हुआ है। इस द्वार पर गंधर्व, अप्सराएं एवं देवता इन पुण्य कर्म करने वाली जीवात्माओं के स्वागत हेतु खड़े रहते हैं। पुण्य जीवातमाएं जब इस द्वार से अंदर की ओर प्रवेश करती हैं तो सबसे पहले इन पर पुष्प वर्षा होती है। फिर चित्रगुप्त इनका अंदर आदर सत्कार करते हैं और इनको स्वर्ग का मार्ग प्रदान करते हैं।
पश्चिम द्वार- यमलोक का पश्चिम द्वार दान्य-पुण्य करने वाली जीवात्माओं के प्रवेश के लिए होता है। जिन लोगों ने अपने जीवन में सदैव धर्म का पालन किया है और निस्वार्थ भाव से सबकी सेवा की है या जिसन तीर्थ यात्रा के दौरान अपने प्राण त्यागे हों या किसी तीर्थ स्थल पर उसके प्राण निकले हों। ऐसी जीवात्माओं को यमपुरी में पश्चिम द्वार से प्रवेश करना होता है। इस द्वार पर भी रत्न इत्यादि जड़े हुए हैं।
उत्तर द्वार- जो लोग सत्य वादी होते हैं, माता-पिता की सेवा करते हैं, लोगो की सहायता करते हैं। ऐसे लोगों को यमलोक के उत्तर द्वार से प्रवेश करना होता है।
दक्षिण द्वार- यह द्वार सबसे कष्ट कारी और इसका दृश्य बाकी द्वारों से बिल्कुल अलग होता है। यह द्वार उन प्राणियों के लिए होता है जिन्होनें जीवन भर पाप कर्म किए हैं। मासाहार, मदिरा सेवन करने वाले, माता-पिता को दुःख देने वाले, भगवान को न मानने वाले, पति-पत्नी को धोखा देने वाले और अन्य पाप कर्म करने वाली जीवात्माओं को दक्षिण द्वार से प्रवेश करना होता है। इस द्वार तक पहुंचने से पहले ही जीवात्मा अनेक प्रकार की यातनाओं को झेलते हुए यमपुरी पहुंचती है। अनेक नरक के शहरों एवं वैतरणी नदी से दुर्गम यातनाओं को भोगते हुए वह यमलोक के द्वार में आने से पहले ही भयभीत हो जाती है। यह द्वार भयानक है, इसमे घोर अंधकार है और इस द्वार में जंगली जानवर जीवात्माओं को दांतों से काटते हैं। कई बार तो ये जंगली जानवर इन पापी जीवात्माओं को छोड़ते तक नहीं है। ऐसे में ये पापी जीवात्माएं विलाप करते हुए किसी तरह इस द्वार में प्रवेश करती है और फिर इन्हें कई प्रकार की नरक यतानाओं को भोगना पड़ता है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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