Hindu Nav Varsh Samvat 2081: सनातन परंपरा के अनुसार 1 जनवरी के दिन को नए साल के रूप में नहीं माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह नववर्ष चैत्र मास में पड़ता है। जी हां, आप सोच कर हैरान हो रहे होंग परंतु यह सत्य है। साल 2024 की शुरुआत तो हो चुकी है। लिकन हिंदू परंपरा में न्यू इयर को महत्व न देते हुए नव संवत्सर को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। आइए जानते हैं हिंदू धर्म और वैदिक पंचांग के अनुसार कब मनाया जाएगा हिंदू नूतन नववर्ष।
ब्रह्मांण पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना
चैत्र मासि जगत ब्रह्मा संसर्ज प्रथमेऽहनि,
शुक्ल पक्षे समग्रेतु तदा सूर्योदय सति।।
हिंदू धर्म के ब्रह्मांण पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना का कार्य विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को सौंप कर रखा हुआ है और ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना जब की तो वह दिन चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि थी। इसलिए इस दिन धार्मिक कार्यों को करना बेहद शुभ माना जाता है।
हिंदू नव वर्ष 1 जनवरी 2024 से होता है अलग
हिंदू पंचांग के अनुसार नए साल को नूतन संवत्सर कहने की परंपरा है और वर्तमान समय में 2080 विक्रम संवत्सर चल रहा है। जब चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि आएगी तो हिंदू पचांग के अनुसार नव वर्ष 2081 मान्य होगा। वहीं न्यू इयर पश्चिमी मान्यता के अनुसार हर साल 1 जनवरी से माना जाता है और यह जूलियन कैलेंडर के आधार पर होता है। इन दोनों के बीच साल का भी अंतर होता है, जूलियन कैलेंडर में वर्तमान वर्ष 2024 चल रहा है, वहीं हिंदू पंचांग के अनुसार नया संवत( हिंदू नववर्ष) इस बार 2081 होगा। दोनों के बीच 57 साल का फर्क होता है। हिंदू नववर्ष अंग्रेजी के नए साल से करीब 57 साल आगे चलता है।
हिंदू नव वर्ष कब है इस साल
हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 9 अप्रैल 2024 के दिन है। इस लिहाज से हिंदू नववर्ष का प्रारंभ 9 अप्रैल 2024 को मंगलवार के दिन से माना जाएगा।
सनातन संस्कृति में किस तरह मनाया जाता है हिंदू नववर्ष
हिंदू धर्म की परंपरा के अनुसार नव वर्ष यानी नव संवत्सर का पूजन किया जाता है। नव वर्ष के दिन प्रथम पूज्यनीय भगवान श्री गणेश का पूजन, सृष्टि के सभी प्रमुख देवी-देवताओं का पूजन, वेद शास्त्र और पंचांग का पूजन इत्यादि की वंदना कर नए साल का स्वागत परंपरागत ढंग से किया जाता है।
हिंदू पंचांग यानी कैलेंडर की शुरूआत
माना जाता है की उज्जेन के राजा विक्रमादित्य ने लगभग 2000 वर्ष पूर्व विक्रम संवत प्रारंभ किया था। हिंदू सभ्यता के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को महत्व देते हुए विक्रमादित्य ने इस पंचांग को संपूर्ण भारतवर्ष के जनमानस तक पहुंचाया था।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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