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Gurunanak Jayanti 2023: लंगर की शुरुआत हुई कैसे थी? किसने सबसे पहले खिलाया था?

Gurunanak Jayanti Special: सिख धर्म में लंगर को बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आज लगभग सभी गुरुद्वारे में लंगर की खास व्यवस्था होती है। तो आज हमको बताएंगे कि सिख समुदाय में सबसे पहले लंगर किसने खिलाया था।

Written By: Vineeta Mandal
Updated on: November 21, 2023 14:34 IST
Gurunanak Jayanti 2023:- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Gurunanak Jayanti 2023:

Gurunanak Jayanti 2023: हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक जयंती मनाई जाती है। इस दिन को गुरु पूरब और प्रकाश पर्व के नाम से भी जाना जाता है। प्रकाश पर्व सिख समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है। मान्यताओं के मुताबिक, इसी दिन गुरु नानक जी का जन्म हुआ था। आपको बता दें कि गुरु नानक जी ने ही सिख समुदाय की स्थापना की थी। गुरु नानक जयंती के दिन सभी गुरुद्वारे को फूलों और रंग-बिरंगी लाइट के झालरों से सजाया जाता है। इसके अलावा गुरुद्वारे में अखंड पाठ और कीर्तन का आयोजन किया जाता है। इस साल गुरु नानक जयंती 27 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी।

सिख समुदाय में सेवा करने का प्रचलन काफी अधिक है। गुरुद्वारे में चप्पल-जूता घर से लेकर लंगर की रसोई तक में लोग सेवा दे रहे होते हैं। यहां सिख समुदाय के हर वर्ग के लोग इन्हीं कामों के जरिए गुरु की सेवा में जुटे रहते हैं। सिख समुदाय में लंगर का खास महत्व है। छोटे से लेकर बड़े गुरुद्वारे तक में लंगर की खास व्यवस्था होती है। इन लंगरों में रोजाना गुरुद्वारे आने वाले और जरूरतमंदों के लिए भोजन बनाया जाता है। तो चलिए अब जानते हैं कि आखिर सिख समुदाय में लंगर की शुरुआत कैसे हुई और सबसे पहले किसने किया था लंगर।

लंगर खिलाने का इतिहास

मान्यताओं के मुताबिक, लंगर की शुरुआत सिखों के पहले गुरु नानक देव जी ने की थी। कहते हैं कि एक बार गुरु नानक देव जी को उनके पिता ने व्यापार करने के लिए कुछ पैसे दिए थे। इन पैसों को व्यापार में लगाने की जगह नानक देव उससे साधु-संतों को भोजन करा दिया और उन्हें कंबल भी दिया। नानक जी के इस फैसले पर उनके पिता अत्यंत क्रोधित हुए, जिसकी सफाई में नानक देव जी ने कहा कि सच्चा लाभ तो सेवा करने में है। इस घटना के बाद से ही लंगर खिलाने की परंपरा शुरू हुई।

लंगर का महत्व

आज लगभग हर गुरुद्वारे में लंगर लगा कर लोगों की सेवा की जाती है, जिसमें लोग अपनी नि:स्वार्थ भाव से सेवा करते हैं। लंगर के दौरान हर वर्ग  लोग एक साथ जमीन पर बैठ कर भोजन खाते हैं। यहां किसी भी तरह का धर्म और जाति का बंधन नहीं रहता है। गुरुद्वार के लंगर में सब एक लाइन से नीचे बैठकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। मान्यताओं के मुताबिक, सिखों के तीसरे गुरु अमर दास जी का कहना था कि लंगर में खाए बिना आप ईश्वर तक नहीं पहुंच सकते।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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