Dussehra 2022: हमारे देश में वर्ष भर में अनेकों त्योहार व उत्सव मनाए जाते हैं। इनके पीछे कई पौराणिक व धार्मिक मान्यताएं होती हैं। कोविड महामारी के दो साल के कठिन दौर के बाद अब जिंदगी सामान्य होने लगी है तो लोगों के त्योहारों को मनाने की खुशियां भी दुगुनी होने लगी है। इस बार दशहरे का पर्व 5 अक्टूबर यानी की बुधवार को मनाया जाएगा। असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाए जाने वाले इस त्योहार पर पूरे देश में लंकाधिपति रावण के पुतले का दहन किया जाता है।
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यहां होती है मंदिर में दशानन की पूजा
दशहरे के पर्व को लोग पूरे उत्साह से मनाते हैं। मगर, देश में ऐसी भी जगह है जहां दशहरे पर दशानन के पुतले का दहन करने के बजाय वहां के लोग इस दिन को शोक के तौर पर मनाते हैं। लोगों के घरों में चूल्हे नहीं जलते। जी हां, हम बात कर रहे हैं राजस्थान के रजवाड़े के समय सूर्यनगरी कहे जाने वाले जोधपुर की। जहां एक समाज स्वयं को रावण का वंशज मानता है। यही वजह है कि, वे लंकापति के पुतले को नहीं जलाते। इसके पीछे की वजह समाज के लोग बताते हैं कि, अगर रावण के पुतले का दहन करेंगे तो हमारा वंश नष्ट हो जाएगा। जोधपुर शहर में सूरसागर एरिया में स्थित चांदपोल रोड़ पर मेहरानगढ़ किले की तलहटी में करीब दो दशक पुराना रावण का मंदिर है। इसके पास ही मंदोदरी का मंदिर भी है। जहां पर लंकाधिपति रावण की प्रतिमा स्थापित की हुई है। दशहरे के मौके पर इस मंदिर में दशानन की पूजा की जाती है। वहीं इस दिन श्रीमाली समाज के लोग शोक मनाते हैं। रावण के पुतले का दहन नहीं करते हैं। इसे लेकर मान्यता है कि, ऐसा करने से उनका वंश नष्ट हो जाएगा। इस दिन घरों में चूल्हे नहीं जलते। बता दें कि, गोधा गौत्र के लोग स्वयं को रावण का वंशज मानते हैं, जिन्हें श्रीमाली भी कहा जाता है। समाज के लोगों के मुताबिक उनके लिए दशहरा शोक का दिन होता है। ये लोग इस दिन रावण का दहन देखने नहीं जाते हैं। साथ ही रावण दहन वाले दिन वे लोग शोक संतप्त रहते हैं। शाम को स्नान कर जनेऊ बदलते हैं। इसके बाद मंदिर में दशानन की पूजा करने के बाद रात्रि में भोजन ग्रहण करते हैं।
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जोधपुर में हुआ था दशानन का विवाह
श्रीमाली समाज के लोगों के मुताबिक पौराणिक मान्यताओं व पुराणों में उल्लेख है कि, रावण की पत्नी जोधपुर की रहने वाली थी। लंकापति के विवाह के समय बारात में आए कुछ लोग जोधपुर में ही ठहर गए थे। मंदोदरी का विवाह जोधपुर में हुआ था। यही वजह है कि, श्रीमाली समाज के लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं। हांलाकि, जनश्रुति और दंत कथाओं के मुताबिक मंदोदरी के जन्म स्थान को लेकर भारत में कई कथाएं प्रचलन में हैं। मान्यता है कि, मंदोदरी का मायका उत्तर प्रदेश के मेरठ में था। वही दावा किया जाता है कि, मध्यप्रदेश के मंदसौर में भी दशानन की पत्नी मंदोदरी का पीहर था। इधर, राजस्थान के जोधपुर में भी मंदोदरी का मायका होने की बात रावण के वंशज करते हैं। यहां मंडोर नामक उद्यान भी मंदोदरी की याद में बनाया गया था। श्रीमाली समाज के लोगों के मुताबिक, प्रकांड पंडित रावण वेदों का ज्ञाता तो था ही वो महान संगीतज्ञ भी था। इस वजह से देश भर के कई हिस्सों से संगीत की शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थी चांदपोल स्थित मंदिर में रावण का आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इंडिया टीवी इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।)