Highlights
- चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया था
- इसी दिन पांडवों का वनवास पूरा हुआ था
- इसी अवसर पर दिवाली सेलिब्रेट की जाती है
Diwali 2022: देश के हर हिस्से में दिवाली की तैयारी चल रही है। हर कोई अपने-अपने तरीके से दीपावली को खास बनाने में जुटा हुआ है। आज आपको दिवाली से ही जुड़ी कई रोचक कहानी बताने जा रहे है, जिसके बारे में शायद ही आप जानते भी होंगे। आमतौर पर सबको पता है कि प्रभु श्री राम के अयोध्या लौटने पर स्वागत के रुप में दिवाली मनाई जाती है। भगवान राम ने लंकापति रावण का वध करके अध्योया इसी दिन पहुंचे थे, उनके स्वागत में पूरी अयोध्यानगरी को दीपों के पाट दिया गया था। अब ये जानकारी तो सभी जानते हैं लेकिन हम जो बताने जा रहे हैं वो हिंदू धर्म और अन्य धर्मों से जुड़ा है। तो चलिए आपको इस दिन की ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में एक-एक करके बताते हैं।
हिंदुओं के लिए क्यों है खास- पौराणकि कथाओं के मुताबिक, मां लक्ष्मी को राजा बाली की जेल से भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामन देव ने इसी दिन छुड़वाया था। इसलिए ये दिन हिंदुओं के लिए और खास हो जाता है। वही आपको बता दें कि इसी दिन माना जाता है कि माता लक्ष्मी का जन्म भी हुआ था। इसके अलावा भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी का विवाह भी हुआ था। भारत के कई हिस्सों मे इस अवसर पर दिवाली सेलिब्रेट की जाती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि इसी दिन पांडवों का वनवास पूरा हुआ था। बारह साल के वनवास पूरे होने पर पांडवों ने दिवाली मनाई थी। भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया था। आपको बता दें कि नरकासूर एक राक्षस था।
जैन धर्म के लिए महत्वपूर्ण - जैन धर्म के लोगों के लिए भी दिवाली का दिन काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। जैन धर्म के गुरु और आधुनिक जैन धर्म के संस्थापक को दिवाली के मौक पर ही निर्वाण प्राप्त हुआ था। इसलिए जैन धर्म के लिए ये दिन काफी खास होता है और इस दिन को दिवाली के रुप में सेलिब्रेट किया करते हैं।
सिखों के लिए दिवाली क्यों खास- सिखों के लिए ये दिन काफी विशेष और खास माना जाता है। सिख धर्म के छठे गुरु हरगोबिंद सिंह को मुगल राजा जहांगीर ने उन्हे कैदी बना लिया था। जहांगीर ने ग्वालियर के जेल में डाला था। गुरु जी हर दिन जेल में ही किर्तन किया करते थे। गुरु जी के जेल में जाने के बाद उनके शिष्यों में काफी क्रोध देखा गया। गुरु जी को छुड़वाने के लिए एक जत्था श्री आकाल तख्त साहिब जी से अरदास करके बाबा बुढा जी की अगुवाई में ग्वालियर के लिए कुच कर गए। जब जत्था किले के पास पहुंची तो गुरु जी से नहीं मिलने दिया गया है, जिसके कारण शिष्य में रोष हो गया। जहांगीर गुरु जी के शिष्यों के रोष को देखते हुए गुरु जी रिहाई के लिए हामी भर ली। इस दिन कार्तिक अमावस्या का दिन था यानी की दिवाली का दिन था इसलिए इसी खुशी में सिखों के द्वारा दिवाली मनाई जाती है।