Dhanvantari Significance of Dhanteras: 'पहला धन निरोगी काया' यह बात हमने कई बार सुनी है। लेकिन इसका मतलब शायद हमें गहराई में जाकर समझना होगा। क्योंकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगर आपकी तिजोरी में रुपए पैसे भरे रखे हैं और शरीर स्वस्थ नहीं तो भी आप उस धन के होते हुए भी खुश नहीं हो सकते। लेकिन जैसे हम धन शब्द सुनते हैं हमारे दिमाग में रुपए, पैसे, गहने, बर्तन आने लगते हैं। इसलिए ही धनतेरस के दिन भी बर्तन आदि खरीदने का प्रचलन हो गया। लेकिन सच बात तो यह है कि हमारे पुराणों में धनतेरस (Dhanteras 2022) के दिन सोने चांदी की खरीदी के अलावा औषधियों और जड़ी बूटियों की पूजा करने का उल्लेख है। क्योंकि यह दिन आयुर्वेद के देवता भगवान धनवंतरी का है। इसलिए उत्तम स्वास्थ्य और स्थूल समृद्धि के बीच की जागृति का पर्व है धनतेरस, जो प्रत्येक वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 23 अक्टूबर दिन रविवार को है।
हिंदू धर्म के देव वैद्य हैं धनवंतरी
आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार दीपावली से दो दिन पहले आने वाले धनतेरस धन ही नहीं, चिकित्सा जगत की समृद्ध विरासत का प्रतीक है। भगवान धनवंतरी को हिंदू धर्म में देव वैद्य का पद दिया गया है। कुछ ग्रंथों में उन्हें विष्णु का अवतार भी कहा गया है। धन का वर्तमान भौतिक स्वरूप और धनवंतरी, दोनों के ही सूत्र समुद्र मंथन में गुंथे हैं। पवित्र कथाएं कहती हैं कि कार्तिक कृष्ण द्वादशी को कामधेनु, त्रयोदशी को धन्वंतरि, चतुर्दशी को महाकाली और अमावस्या को महालक्ष्मी का प्राकट्य हुआ। प्राकट्य के समय चतुर्भुजी धन्वंतरि के चार हाथों में अमृत कलश, औषधि, शंख और चक्र विद्यमान हैं। प्रकट होते ही उन्होंने आयुर्वेद का परिचय कराया।
लक्ष्मी के भाई हैं धनवंतरी
समुद्र मन्थन एक प्रसिद्ध हिन्दू धर्मपौराणिक कथा है। भागवत पुराण, महाभारत तथा विष्णु पुराण इसका विस्तार से उल्लेख है। जैसा कि हमने बताया कि त्रियोदशी के दिन इसी मंथन से धनवंतरी प्रकट हुए और दो दिन के बाद अमावस पर मां लक्ष्मी। इसलिए पुराणों में दोनों को भाई-बहन के रूप में उल्लेखित किया जाता है।
ऐसे हुआ आयुर्वेद का विकास
आयुर्वेद के संबंध में कहा जाता है कि सर्वप्रथम ब्रह्माजी ने एक हजार अध्याय तथा एक लाख श्लोक वाले आयुर्वेद की रचना की थी, उनसे इसे अश्विनी कुमारों ने सीखा और अश्विनी कुमारों ने इसे इंद्र को सिखाया। इंद्र ने इसे धनवंतरी को कुशल बनाया। धनवंतरी से पहले आयुर्वेद गुप्त था। उनसे इस विद्या को विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत ने सीखा। सुक्षुत विश्व के पहले सर्जन यानि शल्य चिकित्सक थे। धनवंतरी के वंशज श्री दिवोदास ने जब काशी में विश्व का प्रथम शल्य चिकित्सा का विद्यालय स्थापित किया तो सुश्रुत को इसका प्रधानाचार्य बनाया गया था।
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धनवंतरी को प्रसन्न करने का मंत्र
मान्यतायें कहती हैं, धनतेरस पर हमेशा के लिए निरोगी काया पाने के लिए भगवान धनवंतरी को प्रसन्न किया जाता है। इसलिए धनतेरस की रात्रि में उत्तराभिमुख धनवंतरी के मंत्र 'ओम धन्वंतरये नमः' के जप से उत्तम आरोग्य प्राप्त होता है।
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। INDIA TV इसकी पुष्टि नहीं करता है।)