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कमाल की है अमृत संजीवनी विद्या, दैत्य गुरु शुक्राचार्य पलक झपकते कर देते थे असुरों को जिंदा, पढ़ें यह रोचक कथा

शुक्रवार के दिन वैसे तो देवी लक्ष्मी की पूजा का विधान है। लेकिन यह दिन शुक्र ग्रह से भी संबंधित है और दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य इसका अधिपत रखते हैं। आइए जानते हैं आखिर वो कौन सी ऐसी विद्या थी जिसका प्रयोग करते ही शुक्राचार्य दैत्यों को जीवित कर देते थे।

Written By: Aditya Mehrotra
Updated on: December 08, 2023 9:31 IST
Friday Mythology Story- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Friday Mythology Story

Friday Mythology Story: हिंदू धर्म में कई सारी दिव्य विद्याएं समाहित हैं। उसी में से एक विद्या दैत्य गुरु शुक्राचार्य के पास भी थी जिस उन्होंने भगवान शिव से प्राप्त किया था। यह तो आप सब जानते ही हैं कि कलांतर से ही देवता और असुरों के बीच युद्ध होता चला आ रहा है और यह कहते भी हैं जहां देव वहां दानव। अब बात करते हैं देवताओं के गुरु कि जहां देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं वहीं दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य माने जाते हैं। आइए जानते हैं आखिर शुक्राचार्य के पास वो कौन सी विद्या थी जिससे वह युद्ध में मारे गए दैत्यों को फिर से जीवित कर देते थे।

भगवान शिव से मिली थी शुक्राचार्य को संजीवनी विद्या

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शुक्राचार्य ने घोर तपस्या कर के भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे संजीवनी विद्या का मंत्र प्राप्त किया था। यह वही विद्या है जिससे किसी मृत्य व्यक्ति को जीवित किया जा सकता है। भगवान शिव से दीक्षा लेने के बाद शुक्राचार्य ने इसका गलत तरह से प्रयोग करना शुरू कर दिया था और जब दैत्य युद्ध में मारे जाते थे तो शुक्रचार्य इस विद्या के प्रयोग से उन्हें पुनः जीवित कर देते थे। इस वजह से देवता गण असुरों से परेशान रहने लगे फिर गुरु बृहस्पित ने यह विद्या सीखने के लिए अपने पुत्र कच को शुक्राचार्य के पास शिष्य बन कर जाने के लिए कहा।

गुरु बृहस्पति ने अपने पुत्र को भेजा संजीवनी विद्या सीखने

दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य की यह विद्या का गोपनीय रहस्य देव गुरु बृहस्पति जानना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपने पुत्र कच को शुक्राचार्य का शिष्य बन कर उनसे यह विद्या प्राप्त करने के लिए कहा। कच ने अपने पिता की आज्ञा स्वीकार कि और वह शुक्राचार्य के पास शिष्य बन कर पहुंच गए और उन्हें प्रणाम किया। लेकिन शुक्राचार्य जानते थे कि यह बालक उनसे अपने पिता बृहस्पति के कहने पर यह गोपनीय संजीवनी विद्या मुझसे सीखने आया है। परंतु शुक्रचार्य ने कच को यह विद्या सिखाने से मना कर दिया इसके बाबजूद उन्होंने कच को अपने साथ गुरुकुल में रहने की अनुमति दे दी। क्योंकि गुरु परंपरा के अनुसार विद्यार्थियों के बीच में कोई भेद नहीं होता है।

शुक्राचार्य की पुत्री कच से करना चाहती थी विवाह

समय के साथ-साथ दैत्य गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी को कच से प्रेम हो गया और वह कच से विवाह करना चाहती थी। कच का वहां रहना असुरों को पसंद नहीं था और असुरों ने उसे मारने का प्रयोजन बनाया। असुरों ने कच पर प्रहार कर उसे मार कर किनारे फैंक दिया। देवयानी को जब कच न मिले तो वह अपने पिता शुक्राचार्य के पास गईं और कहा कच को आप अपनी संजीवनी विद्या से जीवत कर दीजिए क्योंकि में उससे विवाह करना चाहती हूं। इस बात से शुक्राचार्य को विवश होना पड़ गया और उन्होंने अपनी बेटी के कहने के अनुसार संजीवनी विद्या के प्रयोग से कच  को जीवित कर दिया।

शुक्राचार को विवश होने के कारण सिखानी पड़ी कच को संजीवनी विद्या

कच ने पुनः शुक्राचार्य से आग्रह किया कि वह स्वयं की रक्षा के लिए उनसे संजीवनी विद्या अर्जित करना चाहते हैं। लेकिन शुक्राचार्य ने यह विद्या देवताओं के हाथ चले जाने के डर से उन्हें नहीं सिखाई। कच के फिर से जीवित हो जाने पर असुरों ने दुबारा कच को मारने की चाल चली लेकिन देवयानी ने शुक्राचार्य से जिद कर कच की रक्षा के लिए अपने पिता को संजीवनी विद्या सिखाने के लिए विवश कर ही दिया। आखिर इतना सब होने के बाद शुक्राचार ने कच को संजीवनी विद्या सिखा दी।

दैत्य गुरु ने कच की करी सराहना

शुक्रचार्य ने कच से कहा कि में विवश हो कर तुम्हें यह विद्या सिखा रहा हूं। पता नहीं ईश्वर की कृपा से तुम्हारे अंदर ऐसा क्या गुण हैं कि बड़े-बड़े देवता भी यह संजीवनी विद्या नहीं प्राप्त कर सके और तुमने इसे पल भर में प्राप्त कर लिया। यह तुम्हारें संस्कार और आज्ञाकारी होने की निशानी है। तुमने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया और उनके आशीर्वाद से आज तुमने मुझे यह विद्या सिखाने के लिए आखिरकार मजबूर कर ही दिया।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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