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Chhath Puja 2022: छठ महापर्व मनाने की शुरुआत कैसे हुई, यहां जानें इसका महत्व और पौराणिक कथा

Chhath Puja 2022: छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय से होती है, जो कि पारण तक चलता है. इस साल छठ 28 अक्टूबर से शुरू हो रहा है और 31 अक्टूबर को समाप्त होगा। छठ पूजा में नहाय खाय, खरना, अस्ताचलगामी अर्घ्य और उषा अर्घ्य का विशेष महत्व होता है।

Written By: Vineeta Mandal
Updated on: October 28, 2022 15:15 IST
Chhath Puja 2022, Nahay Khay- India TV Hindi
Image Source : FILE Chhath Puja 2022

Chhath Puja: 28 अक्टूबर से महापर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है। छठ का व्रत अत्याधिक कठिन माना जाता है। इसमें स्वच्छता और पवित्रता का खास ख्याल रखा जाता है। छठ पूजा प्रकृति को समर्पित पर्व कहा जाता है। पूजा सामग्री में भी  फल, सब्जियां और प्राकृतिक चीजों रखा जाता है। मान्यता है कि छठ का व्रत करने से भगवान सूर्य समेत छठी मईया का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। इतना ही नहीं छठ में मन की हर इच्छा भी पूर्ण होती है। तो आइए आज जानते हैं इस महापर्व को मनाने के पीछे का पौराणिक इतिहास। आखिर कब और किसने सबसे छठ (Chhath 2022) का व्रत रखा था।

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1. पहली कथा

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। सूर्य पुत्र कर्ण भगवान भास्कर के परम भक्त थे, वे हर दिन जल में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। कर्ण प्रतिदिन पानी में घंटों तक खड़े रहते थे। कहते हैं तब से ही छठ मनाने की परंपरा शुरू हुई। भगवान सूर्य देव की कृपा से कर्ण एक महान योद्धा बन पाए थे।

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2. दूसरी कथा 

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जब पांचों पांडव कौरवों से जुए में अपना सारा राज-पाठ हार गए थे तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया था। छठी मईया और सूर्यदेव के आशीर्वाद से पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। छठ व्रत करने से परिवार में खुशहाली और संपन्नता बनी रहती है।

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3. तीसरी कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। राजा ने रानी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर दी।  इसके प्रभाव से उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति तो हुई लेकिन वह बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद अपने मृत्य पुत्र के शरीर को लेकर श्मशान ले गया और पुत्र वियोग में अपने भी प्राण त्यागने लगा। तभी भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई। उन्होंने प्रियंवद से कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। हे राजन! तुम मेरा पूजन करो और दूसरों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से सच्चे मन से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। तब से लोग संतान प्राप्ति के लिए छठ पूजा का व्रत करते हैं।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। INDIA TV इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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