सादगी, श्रद्धा और बाजारवाद से दूर लोक आस्था का महापर्व छठ की आभा बिहार-पूर्वांचल समेत पूरे विश्व में महसूस की जा रही है। हालांकि, इस महापर्व की तेजी से फैलती लोकप्रियता कौतूहल का विषय बनी हुई है। कई ज्ञानी पंडितों को भी यह समझ में नहीं आ रहा कि आखिर इस महापर्व में ऐसा क्या खास है जो बिना बाजारवाद का सहारा लिए ही इतनी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। अगर आप भी उनमें शामिल हैं तो मैं बता दूं कि यह सिर्फ महापर्व नहीं बल्कि शाश्वत, सर्वशक्तिमान, विश्वरूप, वासुदेव भास्कर खुद इसमें अपनी उपस्थित दर्ज कराते हैं। यही इस पर्व को दूसरे से बिल्कुल अलग करता है।
इस महापर्व में हम बिहारीमानते नहीं कि भगवान हैं या आएंगे बल्कि अपनी खुली आंखों से देखते भी हैं और उनका आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं। छठ व्रतियां ही मां छठी की रूप में हर घर में बिराजमान रहती हैं। उनके द्वारा अस्त और उगते सूर्य को अर्ध्य इस बात का ही तो परिचायक है कि सर्वशक्तिमान भास्कर यह संदेश देते हैं कि मैं डूबने वाले के साथ हूं और उगने वाले के भी। यानी मैं समाज के कमजोर के साथ भी और अमीर के साथ भी। शायद, यही वजह है कि इस पर्व में अमीर-गरीब का बड़ा फासला दिखाई नहीं देता। सभी एक समान वस्त्र और समाग्री लेकर अस्था की गंगा में डूबकी लगाते हैं।
वहीं, जब सूप में सजी प्रकृति की गोद से निकली केले, गन्ने, मूली, ठेकुआ और सम्पूर्ण वैभव के साथ सज-धज कर नाक से माथे तक सिंदूर लगाई पीली वस्त में स्त्रियां नदी-तलाव के पानी में खड़ी खोहर एक स्वर से छठीमईया और दीनानाथ को पुकारती तो शर्वशक्तिमान भास्कर भी अपने को रोक नहीं पाते और हर किसी के मन की मुराद पूरी करते हैं। यही इस महापर्व के प्रति विश्वास की अटूट डोर पैदा करता है जो इसे बिना किसी ब्रांडिंग के वैश्विक पटल पर अपनाने के लिए मानव समुदाय को प्रेरित कर रहा है। बिना किसी खास मंत्र और पंडित पुजारी बिना ही यह महापर्व आत्म सुद्धि करने का फल देता है।
यह पर्व ही तो हमें सीख देता है कि जो डूब गया वो छूटा नहीं है, वो लौट कर फिर आएगा। छठ सिर्फ महापर्व नहीं है बल्कि प्रकृति से जुड़ने और काम, क्रोध, लोभ को त्यागने की साधाना है। इसमें योग भी है! और साधना भी। बिना योग के साधना संभव नहीं है। इसमें एक साथ शरीर और मन को साधने वाला ही इस महापर्व को कर पता है। यानी यह अप्रतिम योग और साधाना का अदभुत समांजस्य प्रदान करता है।
बदलते दौर में हर किसी को छठ महापर्व के बारे में जानने की जरूरत है। छठ सिर्फ लोकपर्व नहीं है बल्कि यह पूरी की पूरी सभ्यता, संस्कृति, पीढ़ियों को जानने, ईश्वर के अस्तित्व का दर्शन करने, मानव मूल्यों को पहचाने, प्रकृति के प्रति कृतज्ञ होने, बदलते दौड़ में अपनी जड़ को मजबूत करने, बाजारवाद से दूर होते समाज में रिश्तों की अहमियत समझने का त्योहार है। एक और बात- मां छठी की मर्जी के बिना इस महापर्व को करना भी संभव नहीं है। ऐसे में जिसको यह पर्व करने या उसमें शामिल होने का सौभाग्य मिल रहा है वो अपने को भाग्यशाली जरूर समझे।
जय छठी मैया! #chathpuja2022
(यह आर्टिकल आलोक सिंह के फेसबुक वॉल से लिया गया है।)