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Basant Panchami 2025: बसंत पंचमी के दिन जरूर करें सरस्वती स्तोत्रम् का पाठ, मां शारदा देंगी विद्या-बुद्धि का आशीर्वाद

Basant Panchami 2025 Saraswati Stotram: 2 फरवरी को बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन मां सरस्वती की विधिपूर्वक पूजा अर्चना करने से बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि होती है। इसके साथ ही बसंत पंचमी के दिन सरस्वती स्तोत्रम् का पाठ भी जरूर करना चाहिए।

Written By: Vineeta Mandal
Published : Jan 31, 2025 16:03 IST, Updated : Jan 31, 2025 16:03 IST
बसंत पंचमी 2025
Image Source : INDIA TV बसंत पंचमी 2025

Basant Panchami Saraswati Stotram Lyrics: हिंदू धर्म में बसंत पंचमी का दिन अत्यंत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार,  माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन माता सरस्वती का जन्म हुआ था। इसलिए हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन को माता सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। मां शारदा की पूजा करने से विद्या, बुद्धि और ज्ञान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ ही कला के क्षेत्र से जुड़े लोगों को अपार सफलता मिलती है। 

बसंत पंचमी 2025 डेट और मुहूर्त 

इस साल बसंत पंचमी का पर्व 2 फरवरी 2025 को मनाया जाएगा। माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि का प्रारंभ 2 फरवरी को सुबह 9 बजकर 14 मिनट पर होगा। पंचमी तिथि समाप्त 3 फरवरी को सुबह 6 बजकर 52 मिनट पर होगा। ऐसे में बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 12 मिनट से दोपहर 12 बजकर 52 मिनट तक रहेगा।

बसंत पंचमी के दिन करें सरस्वती स्तोत्रम् का पाठ

बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करना चाहिए। इसके साथ ही बसंत पंचमी के दिन सरस्वती स्तोत्रम् का पाठ जरूर करना चाहिए। सरस्वती स्तोत्रम् का पाठ करने से बुद्धि, सफलता और धन की निरंतर प्राप्ति होती है। वहीं जिनकी स्मरण शक्ति कमजोर है वे बसंत पंचमी के दिन सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें। ऐसा करने से उनकी स्मरण शक्ति में वृद्धि होगी।

॥ सरस्वती स्तोत्रम् ॥

या कुन्देन्दु-तुषारहार-धवलाया शुभ्र-वस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमण्डितकराया श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत-शङ्कर-प्रभृतिभिर्देवैःसदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वती भगवतीनिःशेषजाड्यापहा॥1॥

दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिःस्फटिकमणिमयीमक्षमालां दधाना
हस्तेनैकेन पद्मं सितमपिच शुकं पुस्तकं चापरेण।
भासा कुन्देन्दु-शंखस्फटिकमणिनिभाभासमानाऽसमाना
सा मे वाग्देवतेयं निवसतुवदने सर्वदा सुप्रसन्ना॥2॥

आशासु राशी भवदंगवल्लि भासैवदासीकृत-दुग्धसिन्धुम्।
मन्दस्मितैर्निन्दित-शारदेन्दुंवन्देऽरविन्दासन-सुन्दरि त्वाम्॥3॥

शारदा शारदाम्बोजवदना वदनाम्बुजे।
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात्॥4॥

सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृ-देवताम्।
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः॥5॥

पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती।
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या॥6॥

शुद्धां ब्रह्मविचारसारपरमा-माद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्पाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥7॥

वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले
भक्तार्तिनाशिनि विरिंचिहरीशवन्द्ये।
कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्॥8॥

श्वेताब्जपूर्ण-विमलासन-संस्थिते हे
श्वेताम्बरावृतमनोहरमंजुगात्रे।
उद्यन्मनोज्ञ-सितपंकजमंजुलास्ये
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्॥9॥

मातस्त्वदीय-पदपंकज-भक्तियुक्ता
ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय।
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण
भूवह्नि-वायु-गगनाम्बु-विनिर्मितेन॥10॥

मोहान्धकार-भरिते हृदये मदीये
मातः सदैव कुरु वासमुदारभावे।
स्वीयाखिलावयव-निर्मलसुप्रभाभिः
शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम्॥11॥

ब्रह्मा जगत् सृजति पालयतीन्दिरेशः
शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावैः।
न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे
न स्युः कथंचिदपि ते निजकार्यदक्षाः॥12॥

लक्ष्मिर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तृष्टिः प्रभा धृतिः।
एताभिः पाहि तनुभिरष्टभिर्मां सरस्वती॥13॥

सरसवत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः।
वेद-वेदान्त-वेदांग-विद्यास्थानेभ्य एव च॥14॥

सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तु ते॥15॥

यदक्षर-पदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥16॥

॥ इति श्रीसरस्वती स्तोत्रम् संपूर्णं ॥

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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