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Baisakhi 2024: बैसाखी का दिन सिखों के लिए माना जाता है बेहद खास, खालसा पंथ से है गहरा नाता

Baisakhi 2024: आज बैसाखी का पर्व मनाया जा रहा है। सिख और पंजाबी समुदाय के लोग इस दिन ढोल-नगाड़ों पर जमकर नाचते हैं और एक-दूसरे को गले मिलकर बैसाखी की बधाई देते हैं।

Written By: Vineeta Mandal
Updated on: April 13, 2024 11:56 IST
Baisakhi 2024- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Baisakhi 2024

Baisakhi 2024: आज (13 अप्रैल) पंजाब, हरियाणा समेत उत्तरी भारत में बैसाखी का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। सिख समुदाय के लिए बैसाखी का दिन खास महत्व रखता है। दरअसल, इसी दिन से सिख नव वर्ष की शुरुआत होती है। बता दें कि अलग-अलग राज्यों में बैसाखी को अन्य नामों से भी जाना जाता है। असम में इसे 'बिहू', बंगाल में 'पोइला बैसाख' जैसे नामों से जाना जाता है। इसी तरह इस दिन बिहार में सत्तूआन का पर्व मनाया जाता है। बैसाखी को 'बसोआ' भी कहते हैं। तो आइए जानते हैं बैसाखी से जुड़ी अन्य जरूरी बातों के बारे में।

बैसाखी का खालसा पंथ से गहरा नाता

कहते हैं कि बैसाखी के ही सिखों के दसवें और आखिरी गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 को खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस दिन गुरु गोबिंद सिंह ने सभी लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाया और उच्च और निम्न जाति समुदायों के बीच के अंतर को खत्म करने का उपदेश दिया। सिख धर्म से जुड़ी मान्यताओं के मुताबिक, बैसाखी के मौके पर आनंदपुर साहिब की पवित्र भूमि पर हजारों की संख्या में संगत जुटी थी, जिसका नेतृत्व गुरु गोबिंद सिंह जी कर रहे थे। उन्होंने कहा कि धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए मुझे पांच बंदों की जरूरत है, जो अपने बलिदान से धर्म की रक्षा करने में सक्षम हों। तब धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए अपना शीश भेंट करने के लिए पांच प्यारे उठे। कहते हैं कि सबसे पहले इन्हें ही खालसा का रूप दिया गया था। 

सिख धर्म में पंज प्यारे का महत्व

सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह जी के आह्वान पर धर्म के रक्षा के लिए जो 5 लोग अपना सिर कटवाने के लिए तैयार हुए थे उन्हें पंज प्यारे कहा जाता है। आनंदपुर साहिब में गुरु गोबिंद ने इन्हें 'पंज प्यारे' नाम दिया था। इन्हें पहले खालसा के रूप में पहचान मिली। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख पुरुषों को अपने नाम के साथ सिंह और महिलाओं को अपने नाम के साथ कौर लगाने का आदेश दिया था। इसके अलावा उन्होंने खालसा को पंज ककार- केश, कंघा, कछहरा, कड़ा और कृपाण धारण करने के लिए कहा था। इसके अलावा यह भी कहते हैं कि बैसाखी के दिन ही महाराजा रणजीत सिंह को सिख साम्राज्य का प्रभार सौंपा गया था, जिन्होंने एकीकृत राज्य की स्थापना की थी।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इंडिया टीवी इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।)

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