Ram Mandir: अयोध्या में भगवान राम के कई सारे प्राचीन मंदिर हैं। यहां आते ही आपको पग-पग पर राम धुन सुनाई देने लग जाएगी। रामायण में तो भगवान राम को धनुष धारी बताया गया है और उन्हें धनुर्विद्या में महारथ हासिल है। भगवान राम ने जब से धनुर्विद्या को प्राप्त किया तब से कभी भी उन्होंने धनुष बाण को अपने से अलग नहीं किया। लेकिन अयोध्या में एक ऐसा राम मंदिर आपको देखने को मिलेगा जहां प्रभु राम के हाथ में धनुष बाण नहीं है।
आखिर क्या वजह है जो भगवान राम ने अपने हाथों में यहां धनुष बाण धारण नहीं किया हुआ है और यह मंदिर अयोध्या में कहां पर है। आज हम आपको इस मंदिर से जुडी मान्यता और श्रीराम के हाथ में यहां धनुष बाण न होने के पीछे का कारण बातने जा रहे हैं।
भगवान राम ने धनुष बाण का किया था त्याग
अयोध्या में जिस मंदिर की आज हम आपसे बात कर रहे हैं वह गुप्तार घाट में स्थित राम जनकी जी का मंदिर है। आप जैसे ही अयोध्या के गिप्तार घाट पहुंचेंगे यह मंदिर आपको दूर से ही दिख जाएगा। इस मंदिर में भगवान राम की जो प्रतिमा हैं। उसमें उनके हाथों में आप धनुष बाण नहीं देखेंगे। इसके पीछे की मान्यता यह है कि जब भगवान राम सरयू में जल समाधि लेने जा रहे थे तब उन्होंने अपने धनुष बाण का त्याग कर दिया था। इस मान्यता के अधार पर यहां के मंदिर में जो रामदरबार का विग्रह है उसमें किसी न तो राम जी ने धनुष बाण धारण किया हुआ है और न ही लक्ष्मण जी ने।
मंदिर का पट खुलते ही सरयू जी करती हैं भगवान राम के दर्शन
मंदिर में आपको भगवान राम, मां सीता, लक्ष्मण जी और प्रभु के चरणों में बैठे हनुमान जी के विग्रह के दर्शन होंगे। मंदिर में इसके अलावा कई प्रचीन शालिग्राम भगवान के भी आपको दर्शन होंगे। इस मंदिर के एक विशेष बात यह है कि मंदिर का जब पट सुबह खुलता है तो सरयू जी भगवान राम के विग्रह के सबसे पहले दर्शन करती हैं। रामदरबार के विग्रह और उनकी प्रतिमा की स्थापना इस प्रकार से हैं कि ठीक उनके सम्मुख सरयू नदी है। सरयू जी का जल स्तर जब बढ़ता है तो मंदिर की मान्यता के अनुसार वह गुप्तार घाट के तट तक आकर भगवान की चौखट पर उनके चरणों को प्रणाम कर पुनः वापिस चली जाती हैं। यह साल में सावन माह में वर्षा के समय ऐसा नजारा देखने को मिलता है। मंदिर से जुड़ी लोक मान्यता है कि मां सरयू भगवान के दर्शन कर पुनः अपने स्थान पर चली जाती हैं। कितना भी पानी बढ़ जाए वह मंदिर के अंदर प्रवेश नहीं करती हैं।
400 वर्ष प्राचीन रामदरबार
यह मंदिर वहीं हैं जहा भगवान राम ने जल समाधि ली थी। मंदिर का निर्माण विक्रमादित्य के समय का बताया जाता है। समय-समय पर इसका जीर्णोधार होता गया। यहां रामदरबार की जो प्रतिमा है वह लगभग 400 वर्ष से अधिक की बताई जाती है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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