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Amalaki Ekadashi 2023: आमलकी एकादशी में क्यों है आंवले पेड़ का इतना महत्व? जानिए पूजा विधि

Amalaki Ekadashi 2023: आमलकी एकादशी का व्रत 3 मार्च को रखा जाएगा। इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। आमलकी एकादशी को रंगभरी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

Written By: Vineeta Mandal
Updated on: March 02, 2023 16:09 IST
Amalaki Ekadashi 2023- India TV Hindi
Image Source : FILE IMAGE Amalaki Ekadashi 2023

Amalaki Ekadashi 2023: आमलकी एकादशी का व्रत 3 मार्च को किया जाएगा। शास्त्रों में आमलकी एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। बता दें कि आंवले का एक नाम आमलकी भी है, इसलिए आज आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। आंवले के वृक्ष के हर हिस्से में भगवान का वास माना जाता है। इसके मूल, यानी जड़ में श्री विष्णु जी, तने में शिव जी और ऊपर ब्रहमा जी का वास माना जाता है। साथ ही इसकी टहनियों में मुनि, देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्गण और इसके फलों में सारे प्रजापति का निवास माना जाता है। भगवान विष्णु को आंवले का वृक्ष अत्यंत प्रिय है। कहते हैं आंवले के वृक्ष के स्मरण मात्र से गौ दान के समान पुण्य फल मिलता है। वहीं इसके स्पर्श से किसी भी कार्य का दो गुणा और इसका फल खाने से तीन गुणा पुण्य फल मिलता है। अतः स्पष्ट है कि आंवले का वृक्ष व्यक्ति के समस्त समस्याओं को हरने वाला है।

आमलकी एकादशी के दिन ऐसे करें आंवला वृक्ष की पूजा

  1. आमलकी एकादशी के दिन सबसे पहले आंवले के वृक्ष के पास जाकर वहां चारों तरफ की भूमि को अच्छे से साफ करें और मिट्टी पर गोबर का लेप करें। 
  2. अब पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें और सभी देवगणों, तीर्थों और सागर के जल को कलश में आमंत्रित करें। 
  3. इसके बाद कलश के ऊपर पांच आंवले के पत्ते रखें और संभव हो तो कलश पर चंदन का लेप करें। साथ ही कलश को लाल या पीले रंग के साफ, कोरे कपड़े से ढक दें। 
  4. फिर कलश के ऊपर श्रीविष्णु के छठे अवतार परशुराम जी की मूर्ति स्थापित करके, दीप जलाकर विधि-विधान से पूजा करें। 
  5. अगर आंवले के वृक्ष के पास जाकर पूजा करना संभव नहीं है तो घर पर हीआंवले के वृक्ष की एक टहनी लाइए और घर की उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करके ठीक उसी प्रकार विधि-विधान से पूजा करें। 
  6. इस तरह पूजा के बाद अगले दिन, यानी द्वादशी के दिन सुबह किसी ब्राह्मण को भोजन करवा कर दक्षिणा दें और परशुराम जी की मूर्ति सहित कलश भेंट कर दें।
  7. इसके पश्चात पारण करके अन्न जल ग्रहण करना चाहिए।

रंगभरी एकादशी

काशी में आमलकी को रंगभरी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन से काशी में होली का पर्वकाल आरंभ हो जाता है। बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर में आज के दिन बाबा विश्वनाथ और  पूरे शिव परिवार, यानी माता पार्वती, श्री गणपति और कार्तिकेय जी का विशेष रूप से साज-श्रृंगार किया जाता है। साथ ही भगवान को हल्दी, तेल चढ़ाने की रस्म भी निभाई जाती है। इसके अलावा भगवान के चरणों में अबीर-गुलाल चढ़ाया जाता है और शाम के समय भगवान की रजत मूर्ति को पालकी में बिठाकर, बड़े ही भव्य तरीके से रथ यात्रा निकाली जाती है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। । इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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