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Ahoi Ashtami 2023: अहोई अष्टमी का व्रत रखने से भर जाता है घर का सूना पालना, जान लीजिए डेट से लेकर चंद्रोदय का समय

Ahoi Ashtami 2023: हिंदू धर्म में अहोई अष्टमी का व्रत विशेष महत्व रखता है। इस व्रत को करने से संतान का सुख मिलता है। तो आइए जानते हैं कि अहोई अष्टमी का व्रत किस दिन रखा जाएगा और इसकी पूजा विधि क्या है।

Written By : Acharya Indu Prakash Edited By : Vineeta Mandal Updated on: October 30, 2023 11:15 IST
Ahoi Ashtami- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Ahoi Ashtami

 Ahoi Ashtami 2023 Vrat Significance: प्रत्येक वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी मनाई जाती है। 5 नवंबर, 2023 को  माताएं अपने बच्चों के सुखी जीवन, उनकी खुशहाली, लंबी आयु और उनके जीवन में धन-धान्य की बढ़ोतरी के साथ ही करियर में सफलता के लिए व्रत करती हैं। साथ ही संतान प्राप्ति के लिए भी अहोई अष्टमी का व्रत लाभदायक रहता है। 5 नवंबर को अहोई माता की पूजा की जाती है। पूरा दिन व्रत करने के बाद शाम के समय तारों को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। कुछ लोग अपनी मान्यताओं के अनुसार चंद्रमा को अर्घ्य देकर भी व्रत खोलते हैं। तो उनके लिए बता दें कि 5 नवंबर को रात चंद्रोदय का समय रात 11 बजकर 45 मिनट पर है।

अहोई अष्टमी पूजा विधि

अहोई अष्टमी के दिन स्नान आदि के बाद, साफ-सुथरे कपड़े पहनकर, श्रृंगार करके महिलाओं को व्रत का संकल्प लेना चाहिए और कहना चाहिए कि संतान की लंबी आयु एवं सुखमय जीवन हेतु मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं। अहोई माता मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें। फिर पूजा के लिए घर की उत्तर-पूर्व दिशा को अच्छे से साफ करके वहां पर गीला कपड़ा मारकर लकड़ी की चौकी बिछाएं और उस पर एक लाल कपड़ा बिछाएं। अब उस पर अहोई माता की तस्वीर रखिये। बाजार में अहोई माता की पूजा के लिए कैलेंडर भी मिलते हैं। कुछ लोग दीवार पर गेरु से भी अहोई माता का चित्र बनाते हैं। इस चित्र में अहोई माता, सूरज, तारे, बच्चे, पशु आदि के चित्र बने होते हैं। बहुत-सी महिलाएं चांदी की अहोई भी बनवाती हैं, जिसे चांदी की गोलियों के साथ पिरोकर पूजा के समय गले में पहना जाता है। इसे स्थानीय भाषा में स्याहु कहते हैं।

इस प्रकार अहोई माता की स्थापना के बाद चौकी की उत्तर दिशा में जमीन को गोबर से लीपकर, उस पर जल से भरा कलश रखिये और उसमें थोड़े-से चावल के दाने डालिए। अब कलश पर कलावा बांधिये और रोली का टीका लगाइये। इसके बाद अहोई माता को रोली- चावल का टीका लगाइये और फिर भोग लगाइये। भोग के लिए आठ पूड़ियां या आठ मीठे पूड़े रखे जाते हैं। आठ की संख्या में होने के कारण इसे अठवारी भी कहते हैं। इसके साथ ही देवी मां के सामने चावल से भरी एक कटोरी, मूली और सिंघाड़े भी रखे जाते हैं।

अब दीपक जलाकर देवी मां की आरती करें और फिर अहोई माता की कथा का पाठ करें। कथा सुनते समय अपने दाहिने हाथ में थोड़े-से चावल के दाने रखने चाहिए और कथा सम्पूर्ण होने के बाद उन चावल के

दानों को अपनी साड़ी या चुनरी के पल्ले में गांठ लगाकर बांध लें। अब शाम के समय इन्हीं चावलों को लेकर कलश में रखे जल से अपनी मान्यता अनुसार तारों या चन्द्रमा को अर्घ्य दें। बाकी पूजा में रखी सारी चीज़ों को, चावल से भरी कटोरी, मूली, सिंघाड़े, मीठे पूड़े या पूड़ी का प्रसाद आदि ब्राह्मण के घर दान कर दें। अहोई माता की तस्वीर के संदर्भ में ऐसी मान्यता है कि इसे दिवाली तक लगाए रखना चाहिए।

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, अहोई अष्टमी का व्रत रखने से निसंतान दंपति को तेजस्वी संतान की प्राप्ति होती है। इसके अलावा अहोई अष्टमी का व्रत करने से संतान पर आने वाली हर बला टल जाती है और उसका जीवन सुखमय बन जाता है।

(आचार्य इंदु प्रकाश देश के जाने-माने ज्योतिषी हैं, जिन्हें वास्तु, सामुद्रिक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का लंबा अनुभव है। इंडिया टीवी पर आप इन्हें हर सुबह 7.30 बजे भविष्यवाणी में देखते हैं।)

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