Friday, November 01, 2024
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Dev Diwali 2023: अयोध्या में दिवाली, तो काशी में क्यों मनाते हैं देव दीपावली? पढ़ें यह पौराणिक कथा

अभी दीपावली का त्योहार बीता ही है, लेकिन अब देव दीपावली की होड़ काशी के लोगों में है। जी हां, देव दीपावली काशी में मनाई जाती है। वैसे अयोध्या में दीपावली मनाई जाती है, लेकिन काशी में देव दीपावली क्यों मनाई जाती है? इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जिसे आज हम आपको बताने जा रहे हैं।

Written By: Aditya Mehrotra
Updated on: November 16, 2023 8:09 IST
Dev Diwali 2023- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Dev Diwali 2023

Dev Diwali 2023: दीपावली पर्व का हिंदू धर्म में बहुत विशेष महत्व है। यह प्रकाश का पर्व होता है, क्योंकि इसमें दीये जलाए जाते हैं। अभी हाल ही में दीपावली का त्योहार बीता है लेकिन एक दीपावली का त्योहार और आने वाला है। आप सोच रहे होंगे कि अभी तो अयोध्या नगरी में भव्य दीपोत्सव का आयोजन हुआ था। फिर अब कौन सी दीपावली आ रही है। दीपावली का त्योहार तो भगवान राम के चौदह वर्ष के वनवास से अयोध्या धाम लौटने की खुशी में मनाया गया था। परंतु देव दीपावली मनाने के पीछे एक अलग ही कथा है।


दीपावली जहां कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है, वहीं देव दीपावली कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। यानी दीपावली से ठीक 15 दिन बाद देव दीपावली काशी में, मां गंगा के किनारे मनाई जाएगी।  26 नवंबर 2023 को देव दीपावली मनाई जाएगी। अब आपको बताते हैं कि देव दीपावली आखिर क्यों मनाई जाती है और इसे मनाने के पीछे क्या कारण है। 

भगवान शिव ने किया था त्रिपुरासुर का वध

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार त्रिपुरासुर नाम के राक्षस ने तीनों लोकों पर अपना कबजा कर लिया था। उसके आतंक से देवता परेशान होकर भगवान शिव के पास पहुंचे और त्रिपुरासुर के आतंक के बारे में पूरी बात बताई। देवताओं ने भगवान शिव से कहा की इस राक्षस का अंत ही आखिरी विकल्प है, नहीं तो यह पूरी सृष्टि में हाहाकार मचा कर रख देगा। देवताओं के निवेदन करने के बाद भगवान शिव ने उस राक्षस का वध कर दिया।

देवताओं ने काशी में मनाई थी दीपावली

त्रिपुरासुर के अंत होने के बाद सभी देवता प्रसन्न हुए और भगवान शिव का आभार व्यक्त करने के लिए उनकी नगरी काशी पहुंचे। काशी पहुंचने के बाद देवताओं ने मां गंगा किनारे दीप प्रज्जवलित कर त्रिपुरासुर के अंत की खुशियां मनाई। दीपों के प्रकाश से उस समय काशी नगरी संपूर्ण जगत में जगमगा उठी थी। इस कारण काशी की दीपावली को देव दीपावली कहा जाता है।

दिवाली के 15 दिन बाद मनाई जाती है देव दीपावली

जिस दिन त्रिपुरासुर का वध हुआ था। वहा दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि थी। यानी दीपावली से ठीक 15 दिन बाद कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि पड़ती है। इस कारण दिवाली के ठीक 15 दिन बाद देव दीपावली मनाने का विधान है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। । इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।) 

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