Highlights
- कुछ दुख व्यक्ति को अंदर से तोड़ देते हैं
- पुत्री को विधवा देखना माँ बाप के लिए सबसे बड़ा दुख है
Chanakya Niti : आचार्य चाणक्य की कही हुई बात लोग आज भी अमल करते हैं।उनके उपदेश और नीतियां आज भी व्यक्ति को जीवन में सही राह दिखाती हैं। चाणक्य नीति के अनुसार, सुख और दुख जीवन में धूप और छांव की तरह होते हैं। ये समय के साथ आते-जाते रहते हैं। जीवन में सुख-दुख का आना जाना लगा रहता है, लेकिन कुछ दुख ऐसे होते हैं जो व्यक्ति को अंदर तक तोड़ कर रख देते हैं। कई बार इंसान के जीवन में ऐसी घटना घटती है जिसे वो ताउम्र भूल नहीं पाता। आचार्य चाणक्य के अनुसार, ये दुख व्यक्ति के जीवन में इतना गहरा प्रभाव डालते हैं कि लाख कोशिशों के बाद भी उन दुखों से बाहर निकलपाना आसान नहीं होता है। आइए जानते हैं कौन सी वो परिस्थितियां हैं जो मनुष्य को अंदर से बेदम कर के रख देती हैं।
पुत्री को विधवा देखना
बेटी के लिए वर की तलाश कर उसका विवाह करना पिता का सबसे खूबसूरत ख्वाब होता है। बेटी का विवाह करके पिता अत्यंत सुख का अनुभव करता है। लेकिन यदि बेटी विधवा हो जाए तो माता-पिता के लिए ये जीवन का सबसे बड़ा दुख होता है। चाणक्य नीति के अनुसार, ये दुख माता-पिता को तोड़कर रख देता है और वे जीवनभर इस दुख से निकल नहीं पाते।
Chanakya Niti: करियर में लंबी उड़ान भरने के लिए चाणक्य के इन विचारों को गांठ बांध लें, वरना रह जाएंगे सबसे पीछे
शक्की और झगड़ालू जीवनसाथी
कहा जाता है कि जब दो लोगों की शादी होती है तो वो अपनी सुन्दर दुनिया बसाते हैं।लेकिन अगर शादी में स्त्री हो या पुरुष किसी का स्वभाव अच्छा नहीं है। वो झगड़ालू प्रवृत्ति का है, तो उसके जीवनसाथी की ज़िंदगी नर्क के सामान बन जाती है। इस दुख से बाहर निकल पाना स्त्री या पुरुष दोनों के लिए मुश्किल होता है।
शराबी व्यक्ति
शराबी व्यक्ति किसी का सगा नहीं होता। ऐसा व्यक्ति ना ही अपने माँ बाप की सेवा करता है और न ही अपने परिवार का ध्यान रख पाता है।यदि कोई व्यक्ति शराबी है और काम धाम नहीं करता तो उसकी पत्नी और बच्चों का जीवन नर्क के समान हो जाता है। बाद में परिस्थितियां भले ही सही हो जाएं, लेकिन वो दुख व्यक्ति को जीवन भर सताता रहता है।
निकम्मा पुत्र
पुत्र, पिता की बुढ़ापे की लाठी होता है, लेकिन यदि पुत्र मूर्ख और निकम्मा हो तो वो जीवन भर माता-पिता पर बोझ के समान बन जाता है। चाणक्य नीति के अनुसार, ऐसे पुत्र जिनकी बुढ़ापे में भी माता पिता को चिंता करनी पड़े, उसका धरती पर होना अभिशाप की तरह है।