Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य की नीतियों में ज्ञान का अद्भुत प्रकाश, जीवन की सफलता का रहस्य और मानव हित से जुड़ी बहुत सी खास बाते हैं। जो लोग चाणक्य की नीति का पालन करते हैं वह कहीं न कहीं अच्छे मुकाम तक पहुंचे हैं। आज के समय में भी लोग चाणक्य की प्रत्येक नीति के बारे में जानने के लिए उतावले रहते हैं।
चाणक्य कि जिस नीति की आज हम आपसे बात करने जा रहे हैं उसमे उन्होंने दुष्ट व्यक्ति के साथ कुशल व्यवहार करने, दोस्ती करने और उन्हें सही सलाह देने को व्यर्थ बताया है। आखिर उन्होंने ने ऐसा क्यों कहा है आइए जानते हैं इस पर उनकी नीति क्या कहती है।
चाणक्य की नीति इस प्रकार से-
न दुर्जनः साधुदशामुपैति बहुप्रकारैरपि शिक्ष्यमाणः।
आमूलसिक्त: पयसा घृतेन न निम्बवृक्षो मधुरत्वमेति ।।
दुष्ट व्यक्ति की तुलनी की नीम के पेड़ से
चाणक्य के इस श्लोक में वह अपनी नीति के माध्यम से कहते हैं कि यह बात सत्य है कि दुष्ट व्यक्ति को कितनी बार भी आप समझा लें। वह बार-बार पाप कर्म ही करेगा और एक भी सज्जन व्यक्ति के समान काम नहीं करेगा। जिस प्रकार आप नीम के पेड़ को दूध और घी से कितनी बार भी सींच लें। उस वृक्ष की पत्तियां फिर भी कड़वी ही रहती हैं। उनमें कोई बदलाव नहीं दिखता और मिठास की उम्मीद लगाने से वह अंतिम समय में दुःख ही देती हैं। ठीक उसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति के लिए आप कितना भी अच्छा कर लें। वह अपने पाप गुण नहीं त्यागता है और अंत में यही लोग दुःख का कारण बन जाते हैं।
इनकी दोस्ती पड़ेगा भारी
आचार्य चाणक्य अपनी इस नीति में यही बता रहे हैं कि अनेक बार भी दुष्ट व्यक्ति के साथ अच्छा व्यवहार करने के बावजूद भी वह सज्जन नहीं बन सकता। ऐसे व्यक्ति से किसी नेक कार्य की उम्मीद लगाए बैठना कष्टकारी है। दुष्ट प्राणियों को उन्हीं के हाल पर छोड़ देना चाहिए क्योंकि उनमें हमेशा दोष भरे गुण ही मिलेंगे। उनसे उम्मीद लगाए बैठना खुद को घोर संकट में डालने जैसा है और अंत में स्वयं को पछतावे के सिवा कुछ भी हासिल नहीं होगा। इसलिए बहतर है कि समय मिलते ही उनसे दूरी बना लें, नहीं तो उनके द्वार आपको भी मुसीबत झेलनी पड़ सकती है और उनको सही राह दिखाने में आपका कीमती समय भी व्यर्थ होगा। आचार्य चाणक्य कहते हैं न तो इनकी संकत अच्छी होती है न ही इनकी दोस्ती।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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