शिव आराधना के पवित्र मास सावन की शुरुआत हो चुकी है। मान्यता है कि इस मास की शुचिता के मन के साथ पूजा करने पर देवाधिदेव महादेव की विशेष कृपा बरसती है। इसी श्रृंखला में आज हम आपको महादेव के ऐसे मंदिर की कहानी से रूबरू करवाएंगे जो श्रद्धालु की अटूट आस्था और श्रद्धा के साथ निज नैतिक, सामाजिक शिक्षा और सामाजिक समरसता की कहानी को भी श्रृष्टि के पटल पर प्रस्तुत कर रहा है।
उदयपुर शहर के समीपवर्ती बेदला गांव के अस्पताल चौक में स्थित प्रकटेश्वर महादेव का मंदिर महादेव के भक्तों की लगातार अप्रतिम आस्था का केंद्र बना हुआ है। सावन मास में इस मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा महादेव को जलाभिषेक और दुधाभिषेक अर्पण कर विशेष पूजा अर्चना की जाती है। आशुतोष भगवान शिव से जुड़े सभी स्थल यू तो बड़े ही चमत्कारी और अलौकिक है लेकिन प्रकटेश्वर महादेव का यह मंदिर अपने अनूठे सामाजिक मूल्यों को लेकर हर जगह काफी प्रसिद्धि पा रहा है। पहले हम आपको इस मंदिर और शिवलिंग से जुड़ी रोचक कहानी को साझा करते है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग काफी पुराना हे। वर्ष 1998 में नागपंचमी के दिन बेदला नदी में खुदाई के दौरान इसका प्राकट्य हुआ। इसके बाद हिंदू संगठनों और गांव के श्रद्धालुओं ने इसको इस सार्वजनिक चबूतरे पर स्थापित कर दिया। करीब 17 वर्षों बाद इस मंदिर को बड़गांव के उपप्रधान प्रताप सिंह राठौड़ ने अगुवाई कर जन सहयोग के माध्यम से बनवाया और पिछले वर्ष सूरजकुंड के महान संत अवधेशानंद जी महाराज के हाथों इस नव निर्मित मंदिर में शिवलिंग को प्रतिष्ठित किया गया।
14 साल का नन्हा बच्चा हर्षुल शर्मा है मंदिर का मुख्य पुजारी
इस मंदिर से जुड़ी हर गतिविधि के अगुवा बड़गांव के युवा उपप्रधान प्रताप सिंह राठौड़ ने बताया कि इस मंदिर की खासियत है कि इसकी साज संभाल नन्हे मुन्ने बच्चों के हाथो से होती है। मंदिर के पुजारी हर्षुल शर्मा स्कूल जाने से पूर्व सुबह जल्दी उठ व शाम को मंदिर में पूजा अर्चना और आरती का जिम्मा संभालते हैं। हर्षुल के इस पुनीत कार्य में मोहल्ले के हर घर के करीब एक दर्जन बच्चे पारंपरिक परिधान में मंदिर से जुड़े सभी कार्य कलापो में कंधे से कंधा मिलाकर हाथ बढ़ाते हैं। इन बच्चों को अपनी संकल्पित इच्छा से मंदिर से जोड़ने वाले युवा उपप्रधान प्रताप सिंह राठौड़ बताते हैं कि इस मंदिर में आसपास के रहने वाले वरिष्ठ लोग और मंदिर समिति के सदस्य सिर्फ अर्थ से जुड़ी व्यवस्था देखते है बाकि महादेव की पूजा, आकर्षक श्रृंगार, मंदिर की साफ सफाई और रखरखाव मोहल्ले के शिव के नन्हे भक्तों के जिम्मे है।
राठौड़ ने बताया कि आज के इस डिजिटल युग में बच्चे मोबाइल पर व्यस्त है, लेकिन हम लोगों ने प्रयास किया कि आने वाली पीढ़ी को हमारी सनातन संस्कृति से रूबरू करवाकर इससे जोड़ कर रखा जाए ताकि राष्ट्र निर्माण में ये लोग भी अपनी अहम भूमिका निभा सके। जब गर्मी, सर्दी या दीपावली की छुट्टियां का समय होता है तो बच्चे रोजाना इसमें अपना पूरा समय देते और शाम को भव्य आरती करते हैं।
निज नैतिक, सामाजिक और राष्ट्र शिक्षा पर भी दिया जाता है पूरा ध्यान
मंदिर से जुड़े युवा शिक्षक आदित्य सेन बताते है कि बड़गांव के उपप्रधान प्रताप सिंह राठौड़ की पहल और मार्गदर्शन में इस कार्य को किया जा रहा है। सेन ने बताया कि महादेव की सेवा पूजा के अलावा मंदिर में मोहल्लों के इन नौनिहालों के व्यक्तित्व को तराशने के लिए समय समय पर सामाजिक और नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी दी जाती है ताकि राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव इन बच्चो में अभी से विकसित हो सके। इसके तहत देश को विश्वगुरु बनाने की यात्रा में रहे महापुरुषों के जीवन से भी इनको समय समय पर अवगत कराया जाता है।
भारत माता के जयकारों के साथ होती है महादेव की आरती
बड़गांव उपप्रधान की राष्ट्रप्रेम की सोच पर इस मंदिर की आरती की शुरुआत भारत माता की जय के साथ होती है। मंदिर के मुख्य पुजारी रहे मनोज शर्मा ने बताया कि बच्चों की शिक्षा के साथ उनकी राष्ट्र शिक्षा होना आवश्यक है। इसी बात को ध्यान में रख उन्हें हर देवी-देवताओं के जयकारों के साथ भारत माता की जय के लिए प्रेरित किया गया है। मंदिर की प्रतिष्ठा के 3-4 महीने बाद मनोज शर्मा ने अपने बच्चे हर्षुल को पूजा पाठ की जिम्मेदारी सौंपी तब से हर्षुल का हाथ बटाने के लिए ये नौनिहाल आगे आए हैं।
सामाजिक समरसता का प्रतीक है महादेव का यह अनूठा मंदिर
मंदिर समिति के अध्यक्ष सुरेश सेन ने बताया कि प्रत्येक सोमवार को मोहल्ले और आसपास के अलग-अलग घरों से प्रसाद महादेव को चढ़ाया है। अलग-अलग परिवार इसका इंतजार करते हैं और अपनी बारी आने पर अपने परिवार के साथ प्रसाद चढ़ाकर वितरित करते हैं। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि छोटे परिवार के चलते बच्चे अभी से पूरे मोहल्ले को अपना परिवार समझ जाए। बड़गांव उपप्रधान प्रताप सिंह राठौड़ बताते है कि इन बच्चो और क्षेत्र के परिवारों में सामाजिक समरसता और अपनत्व का भाव रहे इसी कारण से प्रत्येक परिवार की और से प्रति सोमवार प्रसाद लाने की व्यवस्था की गई हे। राठौड़ ने बताया कि एकल परिवार और एकला चालों रे की प्रवृत्ति के चलते हमारे सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का लगातार पतन हो रहा है। इस बात को ध्यान में रख कर इस तरह के कई नवाचारों और कवायदो को इस मंदिर से जोड़े रखा है।