Wednesday, November 20, 2024
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Rajasthan News: उम्रकैद की सजा काट रहे कैदी को संतान पैदा करने के लिए मिली पैरोल! SC पहुंची राजस्थान सरकार

Rajasthan News: राजस्थान हाईकोर्ट ने इस साल 5 अप्रैल को पारित एक आदेश में कहा था कि इस फैक्ट को देखते हुए कि कैदी की पत्नी निर्दोष है और वैवाहिक जीवन से जुड़ी उसकी यौन और भावनात्मक जरूरतें प्रभावित हो रही हैं।

Edited By: Khushbu Rawal
Published on: July 25, 2022 22:14 IST
Prisoner- India TV Hindi
Image Source : REPRESENTATIONAL IMAGE Prisoner

Highlights

  • राजस्थान में संतान पैदा करने के लिए पैरोल मांग रहे कैदी
  • उम्रकैद की सजा काट रहे कैदी को राजस्थान हाईकोर्ट ने दी पैरोल
  • संतान पैदा करने के लिए कैदी को पैरोल देना सही या गलत? SC करेगा विचार

Rajasthan News: राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने राजस्थान हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सुप्रीम कोर्ट अगले हफ्ते याचिका पर विचार करने के लिए सहमत भी हो गया है। इस याचिका में राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा एक कैदी को पत्नी की अर्जी पर पैरोल देने के फैसले को चुनौती दी गई है।

क्या है पूरा मामला, जानिए

दरअसल, राजस्थान हाईकोर्ट की ओर से एक कैदी को संतान पैदा करने के लिए 15 दिनों की पैरोल देने के फैसले को चुनौती देने वाली राजस्थान सरकार की याचिका पर विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सहमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट सोमवार को राजस्थान सरकार की उस याचिका पर विचार करने के लिए राजी हो गया, जिसमें हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें उम्रकैद के दोषी को संतान पैदा करने के उद्देश्य से अपनी पत्नी के साथ संभोग करने के लिए 15 दिनों की पैरोल दी गई थी।

राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने चीफ जस्टिस एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष दलील दी कि राजस्थान हाईकोर्ट के इस आदेश ने दिक्कते पैदा कर दी हैं। वकील ने कहा, "अब कई दोषी सामने आ रहे हैं और पैरोल के लिए आवेदन कर रहे हैं।" बता दें कि हाईकोर्ट ने उम्रकैद के दोषी नंद लाल की पत्नी के जरिए दायर अर्जी को मंजूर कर लिया था। उसने तर्क दिया कि उसकी पत्नी को संतान के अधिकार से वंचित किया गया है, जबकि उसने कोई अपराध नहीं किया है और वह किसी सजा के अधीन नहीं है।

राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कही यह बात
हाईकोर्ट ने इस साल 5 अप्रैल को पारित एक आदेश में कहा था कि इस फैक्ट को देखते हुए कि कैदी की पत्नी निर्दोष है और वैवाहिक जीवन से जुड़ी उसकी यौन और भावनात्मक जरूरतें प्रभावित हो रही हैं। इसलिए कैदी को उसकी पत्नी के साथ सहवास की अवधि दी जानी चाहिए थी। हाईकोर्ट ने कहा, "इस प्रकार, किसी भी कोण से देखने पर, यह सुरक्षित रूप से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि एक कैदी को संतान प्राप्त करने का अधिकार या इच्छा प्रत्येक मामले के स्पेसिफिक फैक्ट्स और परिस्थितियों के अधीन उपलब्ध है।"

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि ऐसे मामले में जहां एक निर्दोष पत्नी मां बनना चाहती है, स्टेट की जिम्मेदारी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि एक विवाहित महिला के लिए नारीत्व को पूरा करने के लिए बच्चे को जन्म देना जरूरी है। कोर्ट ने कहा, "मां बनने पर उसका नारीत्व बढ़ जाता है, उसकी छवि गौरवान्वित होती है और परिवार के साथ-साथ वो समाज में भी अधिक सम्मानजनक हो जाती है। उसे ऐसी स्थिति में रहने से वंचित नहीं किया जाना चाहिए, जिसमें उसे अपने पति के बिना और फिर बिना किसी गलती के अपने पति से कोई संतान न होने के कारण पीड़ित होना पड़े।" इसमें कहा गया है कि हिंदू दर्शन भी पितृ-ऋण के महत्व की वकालत करता है।

नंद लाल को राहत देते हुए हाईकोर्ट ने कहा, "हमारा विचार है कि हालांकि राजस्थान कैदी रिहाई पर पैरोल नियम, 2021 में कैदी को उसकी पत्नी के संतान पैदा करने के आधार पर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, फिर भी धार्मिक दर्शन, सांस्कृतिक, सामाजिक और मानवीय पहलुओं पर विचार करते हुए, भारत के संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकार के साथ और इसमें निहित असाधारण शक्ति का प्रयोग करते हुए, यह न्यायालय तत्काल रिट याचिका को अनुमति देने के लिए उचित समझता है।"

हाईकोर्ट ने जसवीर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य 2015 का भी हवाला दिया, जहां इस मामले में कैदियों के वैवाहिक अधिकारों के संबंध में महत्वपूर्ण अधिकार शामिल थे। कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि 'कैद के दौरान प्रजनन का अधिकार जीवित रहता है' और हमारे संविधान के अनुच्छेद 21 के दायरे में आता है।

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