चित्तौड़गढ़: इन दिनों 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' का नारा खूब सुनाई देता है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। बेटियों को पढ़ाने के लिए माहौल देने के लाख दावे किए जाते हैं, कई सरकारी योजनाएं भी संचालित की जा रही हैं, लेकिन इससे उलट हालत यह है कि आज भी बेटियों के लिए पढ़ने के हालात अनुकूल नहीं है। ऐसा ही एक मामला राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से सामने आया है, जहां बाल विवाह के बाद एक बेटी ने पढ़ने की कोशिश की तो उसे धमकियां मिलीं। बाद में जब कहीं से न्याय नहीं मिला तो उसने पढ़ने के लिए हाईकोर्ट से गुहार लगाई। अब राजस्थान हाईकोर्ट ने पुलिस अधीक्षक को बेटी की सुरक्षा देने का आदेश दिया है।
पायल का करा दिया गया बाल विवाह
फरियादिया के अधिवक्ता भरत श्रीमाली ने बताया कि डूंगला क्षेत्र की रहने वाली 19 वर्षीय पायल गुर्जर पुत्री रामलाल गुर्जर का विवाह बचपन में ही करवा दिया गया। सामाजिक रीतियों के चलते हुए बाल विवाह के बाद जब ससुराल वालों ने उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया और पढ़ने से मना कर दिया तो पायल अपने माता-पिता के पास लौट कर आ गई। यहां भी सामाजिक दबाव ने उसका पीछा नहीं छोड़ा, नतीजतन पायल ने अपने माता-पिता का घर भी छोड़ दिया और अपनी पढ़ाई जारी रखने की कोशिश की। इन सब के बाद उसे धमकियां मिलने लगीं।
होईकोर्ट पहुंची पायल गुर्जर
इन सब से परेशान होकर पायल गुर्जर ने राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर में पिटीशन दायर की। पिटीशन पर निर्णय देते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने पुलिस अधीक्षक को आदेश दिया है कि याचिकाकर्ता को किसी तरह का नुकसान नहीं होना चाहिए। साथ ही कहा है कि आवश्यकता लगने पर उसे पुलिस का प्रोटेक्शन भी दिया जाए। वहीं अब यह आदेश पुलिस अधीक्षक के समक्ष स्थानीय अधिवक्ता भरत लड्ढा के जरिए पेश किया जाएगा और आदेश की पालना करवाई जाएगी।
माता-पिता सहित सरकार को बनाया पार्टी
पायल गुर्जर की ओर से उच्च न्यायालय में दायर याचिका 1985/ 2023 में उसके पिता रामलाल गुर्जर, माता मांगी बाई के अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह रक्षा विभाग राजस्थान सरकार और पुलिस अधीक्षक चित्तौड़गढ़ को प्रतिवादी बनाया गया है। माननीय उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि याचिका करने वाली पायल को किसी तरह का नुकसान नहीं हो और उसकी पढ़ाई जारी रह सके इस बात के लिए पुलिस अधीक्षक को आदेशित किया गया है।
मूल अधिकारों में शामिल है शिक्षा का अधिकार
भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 के तहत शिक्षा प्राप्त करना या पढ़ने का अधिकार मूल अधिकारों में शामिल किया गया है। सभी को शिक्षा मिले इसके उद्देश्य से शिक्षा के अधिकार का कानून भी बनाया गया है, जिससे सभी को सामान तरीके से शिक्षा के अवसर मिल सकें। लेकिन इतना सब कुछ होने के बावजूद रूढ़िवादी सोच के चलते आज भी बेटियों के पढ़ने के लिए अनुकूल वातावरण नहीं मिल पा रहा है। वहीं अब इस मामले ने साफ कर दिया है कि आज भले ही बेटियां आसमान छू रही हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बेटियों की पढ़ाई के लिए अनुकूल माहौल नहीं है।
(चित्तौड़गढ़ से सुभाष बैरागी की रिपोर्ट)
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