जयपुर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंगलवार को मंच शेयर किया जहां मोदी ने गहलोत को सबसे वरिष्ठ मुख्यमंत्रियों में एक बताया। मोदी ने अपने संबोधन की शुरुआत में कहा, ‘‘मुख्यमंत्री के नाते अशोक गहलोत जी और हम साथ-साथ काम करते रहे और अशोक जी मुख्यमंत्रियों की जमात में सबसे सीनियर थे और अब भी जो मंच पर बैठे हैं उनमें भी अशोक जी सीनियर मुख्यमंत्रियों में एक हैं। उनका यहां आना, आज कार्यक्रम में उपस्थित रहना..आजादी के अमृत महोत्सव में हम सभी का मानगढ धाम आना यह हम सबके लिए प्रेरक है सुखद है।’’
गहलोत ने खुले मंच पर की मोदी की तारीफ
वहीं, इस मौके पर अशोक गहलोत ने खुले मंच पर प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ की। गहलोत ने कहा, ''मोदी जब विदेश जाते हैं तो उन्हें बहुत सम्मान मिलता है। उन्हें सम्मान क्यों मिलता है, उन्हें सम्मान मिलता है क्योंकि मोदी उस देश के प्रधानमंत्री हैं जो गांधी का देश है, लोकतंत्र की जड़ें गहरी हैं और 70 साल बाद भी लोकतंत्र जीवित है। लोग इसे जानते हैं और सम्मान देते हैं।'' आगे उन्होंने कहा, 1913 में मानगढ़ में वनवासियों का ब्रिटिश राज के खिलाफ नेतृत्व समाज सुधारक गोविंद गुरु कर रहे थे।
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मंच पर मौजूद थे गुजरात और MP के सीएम
बता दें कि मोदी बांसवाड़ा के पास मानगढ़ धाम में 'मानगढ़ धाम की गौरव गाथा' कार्यक्रम में भाग लेने आए थे। कार्यक्रम के मंच पर गहलोत के साथ साथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल एवं अन्य नेता भी मौजूद थे। इस अवसर पर चौहान ने कहा कि हमारे देश को आजादी अंग्रेजों ने चांदी की इस तश्तरी में रखकर भेंट नहीं की, बल्कि हजारो क्रांतिकारी हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गए थे।
उन्होंने कहा कि कईयों ने अपनी जिंदगी अंडमान और निकोबार की जेलों में गुजार दी थी और कई ऐसे थे जिन्होंने अपने खून की बूंद से मानगढ़ और भारत की भूमि को पवित्र किया था..रंगा था तब जाकर यह देश स्वतंत्र हुआ था लेकिन आजादी के बाद आजादी की लड़ाई का सही इतिहास सचमुच में नहीं पढ़ाया गया और कई शहीद ऐसे थे जिनका बलिदान सामने नहीं आया।
मानगढ़ की पहाड़ी का महत्व
उल्लेखनीय है कि मानगढ़ की पहाड़ी भील समुदाय और राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश की अन्य जनजातियों के लिए विशेष महत्व रखती है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यहां भील और अन्य जनजातियों ने लंबे समय तक अंग्रेजों से लोहा लिया। स्वतंत्रता सेनानी श्री गोविंद गुरु के नेतृत्व में 17 नवंबर 1913 को 1.5 लाख से ज्यादा भीलों ने मानगढ़ पहाड़ी पर सभा की थी। इस सभा पर अंग्रेजों ने गोलियां चला दीं, जिसमें लगभग 1,500 आदिवासियों की जान चली गई।