Rajasthan Assembly Election: चित्तौड़गढ़ जिले में यूं तो 5 सीटों पर विधानसभा चुनाव है, लेकिन चित्तौड़गढ़ जिले की जिला मुख्यालय की विधानसभा सीट अब हॉट सीट बन गई है। राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में भारतीय जनता पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे विधायक चंद्रभान सिंह ने चुनावी मुकाबले को रोचक बना दिया है। हालत यह है कि भाजपा प्रत्याशी चुनाव प्रचार शुरू करने के बाद से ही तीसरे नंबर से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर मतदाताओं को साधने के लिए आयोजित की गई प्रियंका वाड्रा की चुनावी सभा के असफल होने के बाद कांग्रेस भी परेशान दिखाई पड़ रही है।
यह है गणित
चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय की विधानसभा सीट पांचों सीटों में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। परंपरागत रूप से यह सीट राजपूत सीट मानी जाती है। इस सीट पर विधानसभा चुनाव में यूं तो आठ प्रत्याशी मैदान में है, लेकिन सीधे तौर पर यहां गम्भीर उम्मीदवारों की बात की जाए तो भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी नरपत सिंह राजवी, कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह जाड़ावत और निर्दलीय चंद्रभान सिंह मैदान में हैं। मुख्यालय की सीट पर कुल 2 लाख 70 हजार मतदाता मतदान करेंगे। इनके मतदान के बाद फैसला होगा कि जीत का सेहरा किसके सर बंधेगा, लेकिन संघर्ष के त्रिकोणीय हो जाने से मुकाबला काफी रोचक बन गया है।
दो-दो बार के विधायक हैं सब
चित्तौड़गढ़ विधानसभा सीट इसलिए भी महत्वपूर्ण रोचक बन गई है, क्योंकि इस सीट पर तीनों गंभीर माने जा रहे दावेदार दो-दो बार विधायक रह चुके हैं। भाजपा के प्रत्याशी नरपत सिंह राजवी वर्ष 1993 में सरकारी नौकरी छोड़कर राजनेता बने और उसके बाद 1993 और 2003 में यहां से विधायक चुने गए। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत का दामाद होने के कारण कद्दावर नेता माने जाते हैं। कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह यहां 1998 और 2008 में विधायक चुने गए। इसके बाद 2013 और 2018 विधानसभा चुनाव लगातार बढ़े हुए मतान्तर से हारे लेकिन इसके बावजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी होने के कारण दो चुनाव हारने के बाद भी राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया। इसलिए यह भी कांग्रेस का एक बड़ा नाम है। वहीं 2013 से लेकर अब तक विधायक बने चंद्रभान सिंह राजनीति में दो चुनाव जीतने के बाद भी भले ही अपना कद बड़ा नहीं कर पाए लेकिन चित्तौड़गढ़ की सीट से एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस की परंपरा को तोड़ने के चलते लोगों में लोकप्रिय नेता बनकर उभरे हैं। अबकी बार फिर निर्दलीय चुनाव मैदान में है।
टिकट कटा तो हजारों ने छोड़ी भाजपा
प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी के गृह जिले में काटा गया एक टिकट पूरी बीजेपी को भारी पड़ गया। चंद्रभान सिंह आंकया का टिकट काटे जाने के बाद बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं ने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। बिना किसी कारण से टिकट काटे जाने से जनता के समर्थन के साथ चंद्रभान सिंह आंकया चुनाव मैदान में उतर गए और उनके मैदान में उतरते ही बड़ी संख्या में भाजपा के मंडल स्तर के पदाधिकारीयों ने अपनी प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। और हजारों की संख्या में कार्यकर्ता निर्दलीय के साथ चल पड़े। इसके चलते बने माहौल के कारण मतदाता भी निर्दलीय के साथ दिखाई देने लगे हैं और इस माहौल से मतदाता भी मुखर होकर सामने आ गया है।
भाजपा तीसरे पर पहुंची तो कांग्रेस के भी छुटे पसीने
निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चंद्रभान सिंह के मैदान में ताल ठोक देने के बाद भाजपा के संगठन में हुए विघटन के कारण भाजपा प्रत्याशी नरपत सिंह राजवी एक तरह से अकेले दिखाई पड़ रहे हैं। वहीं बाहरी होने के कारण भी उन्हें आमजन का सीधा समर्थन नहीं मिल रहा है और ऐसे में भाजपा की स्थिति अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन की ओर लगातार बढ़ती जा रही है। हालांकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रस्तावित जनसभा को लेकर भाजपा में उम्मीद अभी बाकी है। वहीं दूसरी ओर लगातार निर्दलीय प्रत्याशी के समर्थन में उमड़ रही भीड़ को लेकर कांग्रेस भी परेशानी में पड़ती दिखाई दे रही है। चित्तौड़गढ़ जिले सहित उदयपुर संभाग की 8 सीट को साधने के लिए आयोजित की गई कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा की सभा भी कुछ खास सफल नहीं हो पाई। इस सभा में महज 12000 लोगों की भीड़ ही जुट पाई। इसी के साथ निर्दलीय प्रत्याशी के साथ अनुसूचित जाति और जनजाति के मतदाताओं के खुलकर सामने आ जाने से कांग्रेस प्रत्याशी जड़ावत भी सकते में आ गए हैं।
एक दूसरे के पक्ष में कर रहे प्रचार, आपस में भी बढ़ने लगा तनाव
चित्तौड़गढ़ विधानसभा सीट पर लगातार बदल रही राजनीतिक परिस्थितियों के चलते कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों के ग्रामीण जनसंपर्क के दौरान सामने आ रहे वक्तव्यों से लगने लगा है कि दोनों ही प्रत्याशी एक दूसरे के पक्ष में प्रचार करने लगे हैं। निवर्तमान दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री सुरेंद्र सिंह जाड़ावत का वीडियो भी सोशल मीडिया पर सामने आया है, जिसमें वह साफ तौर पर कह रहे हैं की निर्दलीय कभी सरकार में नहीं आते हैं और दो ही राजनीतिक दल 70 सालों से सरकार में रही है। इसलिए लोग अपना वोट खराब नहीं करें और किसी भी एक राजनीतिक दल को अपना वोट दें। वही सार्वजनिक रूप से भाजपा का इस तरह से बयान सामने नहीं आया है लेकिन खुलकर भाजपा प्रत्याशी का कांग्रेस के विरोध में या बड़े राजनीतिक आयोजनों को लेकर बयान सामने नहीं आया है। वही ग्रामीणों ने भी इस तरह के बयान जनसंपर्क के दौरान दिए जाने की बात कही है और इन स्थितियों के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में आपसी तनाव बढ़ाने की जानकारी भी सामने आ रही है। वहीं कुछ स्थानों पर आपसी विवाद और झगड़ा होने की भी जानकारी सामने आई है, हालांकि अधिकृत रूप से प्रकरण दर्ज नहीं कराए जाने से ऐसे मामलों की पुष्टि नहीं हो पा रही है।
इसलिए रोचक हो गया चुनाव
राजस्थान में हॉट सीट बनी चित्तौड़गढ़ विधानसभा सीट त्रिकोणीय संघर्ष के साथ जहां चर्चा में बनी हुई है। वहीं इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम के चलते अन्य कारणों से भी यह सीट रोचक हो गई है। पूर्व में चन्द्रभान सिंह के प्रथम निर्वाचन से पहले भाजपा और पूर्ववर्ती जनसंघ या जनता दल बाहरी उम्मीदवार चित्तौड़ विधानसभा सीट से उतारती रही है। लेकिन इस बार स्थानीय और जिताऊ उम्मीदवार होने के बावजूद बाहरी प्रत्याशी को भेजने की नाराजगी भाजपा को सीधे तौर पर झेलनी पड़ रही है। इस चुनाव की एक बड़ी रोचकता है कि भाजपा प्रत्याशी नरपत सिंह अपने बाहरी होने के ठप्पे को नही मिटा पा रहे है। इस कारण चुनाव की दौड़ में वे काफी पिछड़े हुए दिखाई दे रहे हैं। हालांकि राजवी अपने पिछले दो कार्यकाल के दौरान करवाए गए विकास कार्यों को लोगों के सामने रखकर राष्ट्रवाद और मोदी के चहरे पर मत और समर्थन मांग रहे हैं। वही कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह अपने स्थानीय होने के साथ हारने के बावजूद राज्य मंत्री बनाए जाने के चलते हुए विकास कार्यों के आधार पर आमजन से मत और समर्थन मांग रहे हैं। वहीं दूसरी ओर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे चंद्रभान सिंह स्थानीय होने के साथ पिछले 10 वर्षों में जनता के साथ हर सुख दुख में खड़े रहने के आधार पर जनता से समर्थन मांग रहे हैं। वही बिना कारण टिकट काटे जाने के चलते बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं के भाजपा छोड़ने के बाद उनके साथ खड़े होने के कारण एक बने सहानुभूति के माहौल का सकारात्मक फायदा भी निर्दलीय को मिल रहा है।
(रिपोर्ट- सुभाष चंद्र)