दीपावली के मौके पर राजधानी जयपुर के बाजार में गाय के गोबर से बने दीये की मांग बढ़ती दिखी। जयपुर में बीते कुछ सालों में शुरू हुई यह पहल अब पर्यावरण जागरूकता की परंपरा बनती जा रही है। दीपोत्सव के लिए लाखों की संख्या में बनने वाले यह दीये दीपावली से पहले बनकर तैयार हो जाते हैं, जिन्हें बाजार से भी खरीदा जा सकता है। इस काम में कई स्वयंसेवी सहायता समूह और गौशाला संचालक अपना सहयोग प्रदान करते हैं।
"हमारे स्वयंसेवक कई दिनों से लगे हुए थे"
इस बार श्री कृष्ण बलराम गो सेवा ट्रस्ट ने गोबर से तीन लाख से अधिक दीये तैयार किए हैं। हरे कृष्णा मूवमेंट की ओर से संचालित ट्रस्ट को राज्य सरकार और जयपुर नगर निगम ने 2016 में गोशाला का प्रबंधन करने के लिए नियुक्त किया था। यहां 13 हजार से अधिक गायें हैं। संस्थान के एक प्रवक्ता ने बताया, "हमने गाय के गोबर से तीन लाख से अधिक दीये तैयार किए हैं। इसके लिए हमारे स्वयंसेवक कई दिनों से लगे हुए थे और इसका उद्देश्य गोरक्षा के बारे में एक संदेश देना था।"
कैसे तैयार किए गए गोबर से बने दीये?
उन्होंने बताया कि अधिकांश दीये अनुयायियों के बीच बांटे गए और कुछ बाजार में बहुत ही कम कीमत पर भी बेचे गए। उन्होंने बताया कि गोबर में आटा, लकड़ी का बुरादा और गोंद ग्वार एक निश्चित मात्रा में मिलाया जाता है। उन्होंने बताया, "इस मिश्रण को हाइड्रोलिक प्रणाली द्वारा संचालित मशीन से दीये का सुंदर आकार दिया गया। एक मिनट में लगभग ग्यारह दीये तैयार हो जाते हैं।" उन्होंने बताया इन दीयों के अवशेषों को पौधों के लिए उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। हरे कृष्ण मूवमेंट यहां प्रसिद्ध श्री कृष्ण बलराम मंदिर का संचालन करता है।
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