जयपुर: ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगाने के मामले में गौहर चिश्ती समेत 6 आरोपियों के बरी होने के बाद अजमेर दरगाह थाना पुलिस सवालों के घेरे में आ गई है। कोर्ट ने अपने फैसले में भी कहा है कि पुलिस जरूरी सबूत पेश नहीं कर पाई। बता दें कि 17 जून 2022 को अजमेर की दरगाह के निजाम गेट पर गौहर चिश्ती के खिलाफ ‘सिर तन से जुदा’ का नारा लगाने का आरोप लगा था। कांग्रेस शासित पिछली गहलोत सरकार के दौरान पुलिस पर इस केस की जांच में भारी लापरवाही बरतने का आरोप है। आइये उन बड़ी खामियों पर नजर डाल लेते हैं, जो पुलिस ने केस जांच की दौरान कीं।
आखिर कहां हुई पुलिस से लापरवाही?
इंडिया टीवी के पास अदालत के फैसले की कॉपी मौजूद है। आइए, जानते हैं इस मामले में अजमेर दरगाह थाना पुलिस की लापरवाही कहां सामने आई:
- गौहर चिश्ती ने अदालत में बयान दिया मुझे झूठा फसाया गया और मुझे सफाई पेश करने के लिए समय नहीं दिया गया
- कोर्ट ने माना कि घटना दिनांक 17.6. 2022 की बताई गई जबकि रिपोर्ट 25.6. 2022 11:40 पर दर्ज हुई। देरी का कोई कारण रिपोर्ट में अंकित नहीं किया गया। अनुसंधान अधिकारी PW 21 घटना भी पुलिस की तरफ से देरी से प्रस्तुत की गई। जो चश्मदीद थे, वे सभी पुलिसकर्मी बताए गए जबकि वहां भीड़ थी।
- कोर्ट ने फैसले में बताया रिपोर्ट देरी से दर्ज की गई। घटना 17.6. 2022 की थी और पुलिस की तरफ से घटना की रिपोर्ट 25.6.2022 को पेश की गई।
- अनुसंधान अधिकारी बनवारी और पुलिस अधिकारी दलवीर सिंह की तरफ से रिपोर्ट देरी से पेश की गई। जो कहानी कोर्ट में दी गई, कोर्ट ने उसे संदेहास्पद माना है।
- पुलिस द्वारा घटना का जो वीडियो बनाया जाना बताया गया है, 8 दिन तक पुलिस ने उसे स्वयं अपने पास रखा। उस मोबाइल को जब्त किया जाना चाहिए था लेकिन उसकी जब्ती नहीं हुई।
- कोर्ट ने माना कि अनुसंधान में जयनारायण के द्वारा पूरी घटना का वीडियो बनवारी लाल और दलवीर सिंह को दिखाना बताया गया है लेकिन उसके बावजूद उनके द्वारा कोई भी कार्रवाई न किया जाना भी अभियोजन पक्ष की कहानी को सन्देहास्पद बनाता है।
- परिवादी कॉन्स्टेबल जयनारायण ने कोर्ट में बताया उसका मोबाइल 2023 में खराब हो गया था। वीडियो रिकॉर्डिंग की सीडी 2022 में बनाया जाना प्रमाणित होता है, जबकि सीडी को साथ में पेश करना उसे भी संदिग्ध बनाता है। इस पूरी घटना में जो मीटिंग गौहर चिश्ती द्वारा की गई थी, उसकी DVR अंजुमन यादगार कमेटी के CCTV कैमरे में होना बताया गया है लेकिन वो DVR वहां से प्रमाणित होना नहीं माना जाता।
- DVR दरगाह से मिला हो ऐसा प्रमाण नहीं है। उस DVR को लेने वाले किसी गवाह के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है। उस DVR को लेने के लिए दरगाह में न कोई चिट्ठी दी गई, न ऐसा कोई गवाह है जिसने बताया हो कि DVR दरगाह कमेटी से मांगी गई। उस DVR से जो DVD बनी है उसमें कोई आवाज नहीं आ रही है, जिसे अनुसंधान अधिकारी ने भी स्वीकार किया है। इसलिए गौहर चिश्ती ने 16 तारीख को जो मीटिंग की है उसमें चिश्ती की आवाज और भाषण की संलिप्तता नहीं मानी जा सकती।
- 17.6.22 को गौहर चिश्ती ने जो भाषण दिया या जो नारे लगाए, वह किसी व्यक्ति को अपराध करने को उकसाता हो ऐसा जांच अनुसंधान अधिकारी की तरफ से दी हुई किसी भी पत्रावली के किसी भी साक्ष्य से प्रमाणित नहीं होता।
- इस पूरे प्रकरण में मौन जुलूस कि स्वीकृति एमएस अकबर और मोहम्मद अलिमुद्दीन ने मांगी थी लेकिन अनुसंधान अधिकारी ने उन लोगों से कोई पूछताछ नहीं की और न ही उन्हें किसी गवाह के रूप में शामिल किया, जबकि अदालत ने माना है कि ये दोनों इस पूरे घटनाक्रम के लिए महत्पूर्ण गवाह हो सकते थे। ये इस तथ्य को प्रमाणित करते कि उनके द्वारा ली गयी स्वीकृति की अवेहलना हुई या नहीं। इस मामले में नासिर ने गौहर चिश्ती को अपने घर हैदराबाद में छिपाया था लेकिन पुलिस ये प्रमाणित नही कर पाई की नासिर ने सबकुछ जानने के बावजूद अपराधी गौहर चिश्ती को संरक्षण दिया।
कैसे छूटा 'सर तन से जुदा' का आरोपी?
भड़काऊ नारेबाजी का केस | पुलिस से कहां हुई चूक? |
17 जून 2022 को भड़काऊ नारेबाजी | 25 जून 2022 को अजमेर दरगाह थाने में रिपोर्ट |
17 जून 2022 को रिकॉर्ड वीडियो अहम सबूत | पुलिसकर्मी ने वीडियो पुलिस थाने में जमा नहीं कराया |
पुलिसकर्मी ने 30 जून 2022 को सीडी जमा की | सीडी में दिए गए वीडियो सवालों के घेरे में |
जिस फोन से वीडियो बना उसे जब्त नहीं किया गया | 2022 का वीडियो, 2023 में मोबाइल खराब हो गया |
गौहर चिश्ती के भड़काऊ भाषण का कोई और साक्ष्य नहीं | गवाहों के बयानों में विरोधाभास मिला |
पुलिस ने गौहर चिश्ती पर साजिश का आरोप लगाया | CCTV के जब्त DVR में आवाज नहीं मिली |
(इनपुट: राजकुमार वर्मा)