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पंजाब में पार्टी चिह्न पर नहीं लड़े जाएंगे पंचायत चुनाव, जानें क्यों सरकार ने लिया यह बड़ा फैसला

पंजाब में अब सरपंच और पंच के चुनाव राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्नों पर नहीं लड़े जाएंगे। राज्य के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने कहा है कि इस कदम का उद्देश्य गांवों में आपसी भाईचारे को और मजबूत बनाना है।

Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published on: August 29, 2024 22:54 IST
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Image Source : X.COM/HARPALCHEEMAMLA पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा।

चंडीगढ़: पंजाब के मंत्रिमंडल ने सरपंच और पंच के चुनाव राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्नों पर नहीं लड़े जाने को लेकर नियमों को संशोधित करने का निर्णय लिया है। राज्य के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने गुरुवार को इस बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इस कदम का उद्देश्य गांवों में आपसी भाईचारे को और मजबूत बनाना है। एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि मंत्रिमंडल ने पाया कि पार्टी चिह्नों पर चुनाव लड़ने से कई अवांछित घटनाएं होती हैं। इसके अलावा, पंचायतों में 'राजनीतिक गुटबाजी' धन और अनुदान के इस्तेमाल को रोकती है, जिससे उस बड़ी रकम का इस्तेमाल नहीं हो पाता जिसका उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है।

‘संशोधन को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है’

चीमा ने राज्य मंत्रिमंडल की बैठक के बाद कहा,‘इससे पहले, सरपंच और पंच के चुनाव राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्न पर लड़े जा सकते थे, लेकिन कैबिनेट ने फैसला किया कि अब आगामी पंचायत चुनाव राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्न के बिना लड़े जाएंगे।’ मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में मंत्रिमंडल की यह बैठक आयोजित की गयी। उन्होंने कहा,‘पंजाब पंचायत चुनाव नियम, 1994 की धारा 12 में संशोधन को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। अब गांवों में सरपंच और पंच के चुनाव राजनीतिक पार्टी के चुनाव चिह्न पर नहीं होंगे।’ चीमा ने कहा कि सरपंच और पंच चुनाव के लिए केवल निर्वाचन आयोग द्वारा आवंटित चुनाव चिह्नों का ही प्रयोग किया जाएगा।

‘विभिन्न पार्टी समूहों के बीच हिंसक झड़पें होती हैं’

पंजाब सरकार के आधिकारिक बयान में कहा गया है कि राजनीतिक गुटबाजी के कारण पंचायतों के कामकाज में असमानता पैदा होती है, जिसके कारण उनका कोरम अधूरा रह जाता है, और इसके परिणामस्वरूप अनुदान का इस्तेमाल नहीं हो पाता है। बयान में पंचायतों से संबंधित कैबिनेट के फैसले के बारे में जानकारी देते हुए कहा गया, ‘पंचायत सदस्यों की राजनीतिक संबद्धता के कारण चुनाव के दौरान और बाद में गांव स्तर पर विभिन्न पार्टी समूहों के बीच हिंसक झड़पें होती हैं, जिससे कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती है और ग्रामीण समाज के सामाजिक ताने-बाने पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।’ (भाषा)

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