चंडीगढ़: पंजाब में बुधवार को पराली जलाने के 512 मामले सामने आए, जिसके बाद 15 सितंबर से दर्ज इस तरह के मामलों की कुल संख्या बढ़कर 36,118 हो गई। पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर के आंकड़ों के मुताबिक, पराली जलाने के सबसे ज्यादा मामले मोगा में सामने आए। मोगा में पराली जलाने के 110, फाजिल्का में 95, मुक्तसर में 41, बठिंडा में 40 और फरीदकोट में 39 मामले दर्ज किए गए। राज्य में 2021 और 2022 में इस दिन पराली जलाने के क्रमशः 66 और 78 मामले सामने आए थे। राज्य में 15 सितंबर से 22 नवंबर तक दर्ज पराली जलाने के कुल 36,118 मामलों में संगरूर सबसे आगे है।
संगरूर में पराली जलाने के 5,596, फिरोजपुर में 3,356, बठिंडा में 2,940, मोगा में 2,706 और बरनाला में 2,300 मामले दर्ज किए गए हैं। राज्य में 2021 और 2022 में इस अवधि के दौरान पराली जलाने के क्रमशः 70,945 और 49,604 मामले दर्ज किए गए थे। हरियाणा के फतेहाबाद में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 368 दर्ज किया गया जबकि फरीदाबाद में 358, गुरुग्राम में 342, जींद में 337, रोहतक में 330 और भिवानी में 291 एक्यूआई दर्ज किया गया। वहीं पंजाब के बठिंडा में एक्यूआई 327, मंडी गोबिंदगढ़ में 318, लुधियाना में 278, खन्ना में 260, पटियाला में 242, जालंधर में 231 और अमृतसर में 230 एक्यूआई दर्ज किया गया। पंजाब व हरियाणा की संयुक्त राजधानी और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में 236 एक्यूआई दर्ज किया गया। शून्य से 50 के बीच एक्यूआई को ‘अच्छा’, 51 और 100 के बीच ‘संतोषजनक’, 101 और 200 के अीच ‘मध्यम’, 201 और 300 के बीच ‘खराब’, 301 और 400 के बीच ‘बेहद खराब’, 401 और 450 के बीच ‘गंभीर’ एवं 450 के ऊपर ‘अत्यंत गंभीर’ श्रेणी में माना जाता है।
पंजाब सरकार पराली प्रबंधन के लिए उचित व्यवस्था सुनिश्चित नहीं कर रही : किसान
पंजाब में किसान नेताओं ने बुधवार को केंद्र और राज्य सरकार पर पराली प्रबंधन के लिए उचित व्यवस्था नहीं करने का आरोप लगाया और कहा कि दिल्ली में वायु गुणवत्ता पर पराली जलाने का नहीं बल्कि वाहनों से होने वाले प्रदूषण एवं औद्योगिक प्रदूषण का प्रभाव पड़ता है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकारों को मक्का एवं दालों जैसी वैकल्पिक फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय कर देना चाहिए जिससे उत्पादक पानी की अधिक खपत करने वाली धान की फसल के बजाय वैकल्पिक फसलें चुनें। उन्होंने कहा कि धान पंजाब की मूल फसल भी नहीं है। किसान नेताओं का यह बयान उच्चतम न्यायालय द्वारा पराली जलाने से जुड़े एक मामले की सुनवाई पर की गयी टिप्पणी के एक दिन बाद आया।
न्यायालय ने कहा था कि किसानों को 'खलनायक' बनाया जा रहा है और उनकी बात भी नहीं सुनी जा रही है। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने यह भी सुझाव दिया था कि पराली जलाने वाले किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली के तहत खरीदारी नहीं करनी चाहिए क्योंकि प्रदूषण के कारण नागरिक और बच्चे प्रभावित होते हैं। भारती किसान यूनियन (एकता उगराहां) के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां ने बुधवार को कहा कि पराली प्रबंधन के मुद्दे पर न तो केंद्र और न ही पंजाब सरकार कोई ठोस कदम उठा रही है। उन्होंने कहा," पराली प्रबंधन के लिए फसल अवशेष प्रबंधन के लिए पर्याप्त संख्या में मशीनरी दिए जाने के साथ किसानों को प्रोत्साहन भी दिया जाना चाहिए।" कोकरीकलां ने कहा, ''दिल्ली के प्रदूषण में पंजाब की कोई भूमिका नहीं है।'' उन्होंने सवाल उठाया कि दिल्ली के मुकाबले पंजाब के उस क्षेत्र में वायु गुणवत्ता सूचकांक कैसे बेहतर हो सकता है जहां पराली जलाई जा रही है। ‘‘अगर सरकारें आवश्यक व्यवस्था नहीं कर सकतीं तो किसानों को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए।'' उन्होंने कहा, ''जो किसान पराली जलाते हैं उन्हें एमएसपी का लाभ नहीं दिया जाए। लेकिन जिन कारखानों से धुआं निकलता है उनपर कोई कार्रवाई नहीं की जाती।'' भारती किसान यूनियन (लाखोवाल) के महासचिव हरिंदर सिंह लाखोवाल ने पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए किसानों को वित्तीय प्रोत्साहन देने की मांग की। उन्होंने कहा, ''पराली प्रबंधन के लिए किसानों को वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।'' (इनपुट-भाषा)