जानकारों का कहना है कि सरकार के इस कदम से गेहूं से बनने वाले सामान के दाम कम होंगे, जिसका सीधा फायदा आम जनता को मिलेगा।
प्रोसेसरों के लिए, लिमिट को घटाकर उनकी मासिक स्थापित क्षमता (MIC) का 60 प्रतिशत कर दिया गया है। अभी तक ये 70 प्रतिशत था। व्यक्तिगत खुदरा विक्रेताओं के लिए स्टॉक लिमिट में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं किया गया है यानी वे अभी भी 10 टन तक गेहूं का स्टॉक रख सकते हैं।
सरकार का कहना है कि उसके पास सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त गेहूं का स्टॉक है, जो लगभग 1.84 करोड़ टन है।
गेहूं के निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं है और चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध की समीक्षा करने का कोई प्रस्ताव नहीं है। थोक विक्रेताओं के लिए स्टॉक सीमा 3,000 टन होगी, जबकि यह प्रोसेसर के लिए यह प्रसंस्करण क्षमता का 70 प्रतिशत होगी।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने चालू विपणन सत्र के दौरान 11 जून तक लगभग 266 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) गेहूं की खरीद की है। गेहूं का स्टॉक कभी भी तिमाही बफर स्टॉक मानदंडों से नीचे नहीं गया है।
देश में गेहूं की कीमतें काबू में रखने के लिए सरकार लगातार काम कर रही है। इसी दिशा में अब देशभर के कारोबारियों को स्टॉक घोषित करने का निर्देश दिया है।
सरकार ने निर्देश दिया है कि किसानों को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो। इसकी तैयारी भी कर ली गई है। किसी भी विषम परिस्थितियों के लिए विभाग ने टोल फ्री नंबर 18001800150 जारी किया है।
खाद्य सचिव ने हाल में कहा था कि पंजाब-हरियाणा सीमा पर किसानों के आंदोलन से खरीद परिचालन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। आमतौर पर गेहूं की खरीद अप्रैल से मार्च तक की जाती है। हालांकि, इस साल केंद्र ने बाजार में फसल की आवक के हिसाब से राज्यों को गेहूं खरीद की अनुमति दी है।
चावल, गेहूं और आटे की खुदरा कीमतों को थामने के लिए सरकार गेहूं और चावल दोनों की साप्ताहिक ई-नीलामी कर रही है।
सरकार की तरफ से गेहूं के बनावटी किल्लत की स्थिति को रोकने और जमाखोरी पर लगाम लगाने के लिए ऐसा किया गया है। गेहूं का प्रोसेस करने वालीं कंपनी वित्त वर्ष 2023-24 के बाकी महीनों के अनुपात में मासिक स्थापित क्षमता का 70 प्रतिशत रख सकती हैं।
FCI E-Auction: केंद्र, गेहूं और चावल की बढ़ती खुदरा कीमतों को कम करने के लिए हर स्तर पर काम कर रहा है। आज पांचवीं नीलामी हुई है।
देश में रबी सीजन का खरीद कार्यक्रम अभी खत्म ही हुआ है, लेकिन इसके बावजूद गेहूं की कीमतें उफान भर रही हैं, अब सरकार कीमतें घटाने के लिए बड़ा कदम उठा रही है
यह ‘स्टॉक लिमिट’, व्यापारियों, थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, बड़ी खुदरा श्रृंखला विक्रेताओं और प्रसंस्करणकर्ताओं पर 31 मार्च, 2024 तक के लिए लगाई गई है।
भारत गेहूं के प्रमुख उत्पादकों में से एक है। यह देश की एक बड़ी आबादी के लिए प्रमुख भोजन है। भू-राजनीतिक अनिश्चितता के बीच ऊंची मुद्रास्फीति और खाद्य सुरक्षा की चिंता से पहले से है।
एफसीआई के अनुसार ताजा गेहूं की फसल की सरकारी खरीद शुरू हो गई है, और सोमवार को मध्य प्रदेश में लगभग 10,727 टन गेहूं की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर की गई है।
एफसीआई को खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत थोक उपभोक्ताओं को 15 मार्च तक साप्ताहिक ई-नीलामी के जरिए कुल 45 लाख टन गेहूं बेचने को कहा गया है, ताकि गेहूं और गेहूं आटे की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाई जा सके।
गेहूं की कीमतें थोक बाजार में 31 रुपये के पार निकल गई हैं वहीं आटा 38 रुपये प्रति किलो के भाव पर पहुंच गया है। कीमतों को थामने के लिए सरकार अब मिलों को सस्ता गेहूं बेचने जा रही है।
गेहूं की कीमतों का असर सीधे आटे की कीमतों पर पड़ रहा है। आटे की कीमत गेहूं से ज्यादा बढ़ी हैं। कारोबारियों के अनुसार आटे का भाव 19 से 20 फीसदी चढ़ चुके हैं। साल भर पहले 30 से 32 रुपये में मिलने वाला आटा 35 से 40 रुपये किलो मिल रहा है।
अब गेहूं के आटे के निर्यातकों को आटा निर्यात करने के लिए अंतर-मंत्रालयी समिति की मंजूरी लेनी होगी और यह आवश्यकता 12 जुलाई से प्रभावी होगी।
भारतीय रोलर आटा मिलर्स महासंघ (आरएफएमएफ) ने वादा किया है कि वे कीमत का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाएंगे।
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