मंत्रालय ने रबी सत्र 2024-25 के लिए 164.55 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य रखा है, जिसमें 115 लाख टन गेहूं और 18.15 लाख टन दालें शामिल हैं। रबी (सर्दियों) की फसलों की बुवाई शुरू हो गई है और दिवाली के बाद इसमें तेजी आएगी।
हाल के महीनों में अधिकांश दालों की मंडी (थोक) कीमतों में गिरावट का रुख रहा है, जबकि इस साल खरीफ दालों की बेहतर उपलब्धता और अधिक बुवाई का रकबा है। खरे ने बताया कि ‘‘पिछले तीन महीनों के दौरान प्रमुख मंडियों में अरहर और उड़द की कीमतों में औसतन लगभग 10 प्रतिशत की गिरावट आई है।"
इस साल मॉनसून की बारिश बेहतर रही है। खरीफ सत्र में दालों का रकबा बढ़ा है। घरेलू उत्पादन बढ़ने की उम्मीद है। पिछले एक महीने में थोक बाजारों में दालों की कीमतों में कमी आई है और आगे भी इसमें कमी आने की उम्मीद है।
देश ने वित्त वर्ष 2023-24 में 47.38 लाख टन दालों का आयात किया था। अर्थशास्त्री का कहना है कि अगर नीतियों में बदलाव किया जाए तो दालों में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सकती है।
खुदरा उद्योग के प्रतिभागियों ने आश्वासन दिया कि वे अपने खुदरा मार्जिन में जरूरी समायोजन करेंगे और उपभोक्ताओं को किफायती कीमतों पर कीमतें उपलब्ध कराने के लिए इसे नाममात्र स्तर पर बनाए रखेंगे।
आधिकारिक बयान में कहा गया है कि उपभोक्ता मामलों के विभाग के लगातार प्रयासों का नतीजा उड़द की कीमतों में नरमी के रूप में सामने आया है। सरकारी एजेंसियों के जरिये किसानों के पूर्व-पंजीकरण में उल्लेखनीय तेजी आई है।
आयातकों, मिल मालिकों, स्टॉकिस्टों, खुदरा विक्रेताओं आदि को 15 अप्रैल से पोर्टल पर साप्ताहिक आधार पर आयातित पीली मटर सहित दालों के अपने स्टॉक की घोषणा करने को कहा गया है।
अरहर, उड़द, चना, मसूर और मूंग के अलावा, राज्य सरकारों को आयातित पीली मटर के भंडार की स्थिति की निगरानी करने को कहा गया है।
रबी सत्र 2023-24 में दाल की बुवाई 155.13 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो पिछले साल 162.66 लाख हेक्टेयर से कम है। आंकड़ों से पता चलता है कि चना, उड़द और मूंग का रकबा कम रहा। हालांकि, चालू रबी सत्र में अब तक मसूर का रकबा 19.51 लाख हेक्टेयर से अधिक है, जबकि एक साल पहले की अवधि में यह 18.46 लाख हेक्टेयर था।
चना और मूंग के मामले में, देश आत्मनिर्भर है, लेकिन अरहर और मसूर जैसी अन्य दालों के मामले में, यह अभी भी अपनी कमी को पूरा करने के लिए आयात करता है। उन्होंने कहा कि हालांकि सरकार किसानों को अधिक दाल उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है, लेकिन खेती के सीमित क्षेत्रफल को भी ध्यान में रखना होगा।
बुआई से पहले अरहर किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर एनएएफईईडी और एनसीसीएफ को अपनी उपज बेचने के लिए प्लेटफॉर्म पर रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं।
दालें, टमाटर, अदरक,प्याज, बीन्स, गाजर,मिर्च और टमाटर सहित कई चीजों के खुदरा दाम बहुत तेज रहे। आम आदमी की रसोई के बजट पर इन चीजों ने बड़ा असर डाला।
चना दाल जो फिलहाल बाजार में उपलब्ध सबसे सस्ती दाल है, की कीमत में एक महीने में 4 प्रतिशत कमी देखने को मिली है। इस सप्ताह अरहर दाल की कीमतों (Arhar dal price) पर दबाव रहने की उम्मीद है।
मंत्रालय ने बयान में कहा, स्टॉक सीमा में संशोधन और समय अवधि का विस्तार जमाखोरी को रोकने और बाजार में पर्याप्त मात्रा में तुअर और उड़द की उपलब्धता सुनिश्चित करने और इनको सस्ती कीमत पर उपलब्ध कराने के लिए है। ताजा आदेश के अनुसार, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 31 दिसंबर तक तुअर और उड़द के लिए स्टॉक सीमा निर्
योजना के तहत दाल की कीमत 60 रुपये और प्याज की कीमत 25 रुपये प्रति किलोग्राम है।
चना भारत में सबसे अधिक मात्रा में उत्पादित होने वाला दलहन है और पूरे देश में कई रूपों में इसका सेवन किया जाता है।
राज्य सरकारों को कीमतों की लगातार निगरानी करने और स्टॉक की स्थिति को सत्यापित करने और भंडारण सीमा आदेश का उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्रवाई करने के लिए कहा गया।
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक साल में देश में तुअर दाल का औसत खुदरा मूल्य 11.12 प्रतिशत बढ़कर 115 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया है।
फरवरी से लेकर अब तक 1150 रुपये प्रति क्विंटल का उछाल देखने को मिला है। इससे फुटकर दाम में भी 10 रुपये से लेकर 15 रुपये तक तेजी आई है।
देश में सभी प्रमुख दालों की कीमत में तेजी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पिछले 6 हफ्तों में अरहर दाल और उड़द दाल की कीमतों में 15% से अधिक की वृद्धि हुई है।
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