म्यूचुअल फंड एसआईपी में निवेश करते समय इस बात का खास ध्यान रखें कि इसमें शेयर बाजार का जोखिम शामिल है। बाजार में आने वाले उतार-चढ़ाव का सीधा असर आपके रिटर्न पर देखने को मिलता है। इसके साथ ही एसआईपी से होने वाले प्रॉफिट पर आपको कैपिटल गेन्स टैक्स भी चुकाना होता है।
अपने सामने आने वाली हर म्यूचुअल फंड स्कीम में निवेश करने का लालच न करें। इससे आपका रिटर्न कम हो सकता है और आप एक अच्छा पोर्टफोलियो बनाने से चूक सकते हैं।
म्यूचुअल फंड एसआईपी में निवेश करते समय आपको इस बात का खास ध्यान रखना होगा कि म्यूचुअल फंड पर मिलने वाला रिटर्न कैपिटल गेन्स टैक्स के दायरे में आता है। यानी आपको म्यूचुअल फंड से जो रिटर्न मिलेगा, उस पर आपको कैपिटल गेन्स टैक्स का भुगतान भी करना होगा।
फोकस्ड फंड, म्यूचुअल फंड की वो कैटेगरी है जो एक निश्चित कंपनी के शेयरों में पैसा लगाती है। सेबी के नियमों के मुताबिक फोकस्ड फंड अधिकतम 30 कंपनियों के शेयरों में ही पैसा लगाते हैं।
अगर फंड मैनेजर स्मॉल-कैप या मिड-कैप स्टॉक में भारी निवेश करने का फैसला करता है, तो जोखिम ज़्यादा हो सकता है। हालांकि, बाज़ार की अनिश्चितता के समय में, प्रबंधक अस्थिरता को कम करने के लिए लार्ज-कैप स्टॉक में निवेश बढ़ाने का विकल्प चुन सकता है।
म्यूचुअल फंड एसआईपी में निवेश करने से पहले इस बात का खास ध्यान रखें कि इसमें किया जाने वाला निवेश पूरी तरह से शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है। इसके अलावा, म्यूचुअल फंड एसआईपी से मिलने वाले रिटर्न पर आपको कैपिटल गेन्स टैक्स भी चुकाना पड़ता है।
यह फंड निवेशकों को निफ्टी 500 मोमेंटम 50 इंडेक्स में शारमिल शेयरों में निवेश करने का अवसर प्रदान करता है। साथ ही उनके निवेश पर शानदार रिटर्न दिलाता है।
अगर आप 5000 रुपये से एसआईपी शुरू करते हैं और हर साल अपनी एसआईपी में 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी यानी स्टेप-अप करते हैं तो लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय आपको इस बात का खास ध्यान रखना होगा कि इससे मिलने वाला रिटर्न कैपिटल गेन्स के तहत आता है और इसके लिए आपको 12.5 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक का कैपिटल गेन्स टैक्स चुकाना होता है।
म्यूचुअल फंड हाउस, ईएलएसएस फंड्स में किए जाने वाले निवेश का 80 प्रतिशत हिस्सा इक्विटी में निवेश करते हैं। ईएलएसएस फंड्स में लगाया जाने वाला पैसा अलग-अलग सेक्टरों से जुड़ी कंपनियों के शेयरों में निवेश किया जाता है, ताकि जोखिम को कम किया जा सके।
देश के कई बैंक म्यूचुअल फंड के बदले 10 से 15 प्रतिशत की ब्याज दरों पर लोन मुहैया कराते हैं। बताते चलें कि अगर आपके पास इक्विटी म्यूचुअल फंड है तो आप उसकी वैल्यू का 50 प्रतिशत मार्जिन गिरवी रखना पड़ेगा।
कोटक महिंद्रा एएमसी के नेशनल हेड (सेल्स, मार्केटिंग और डिजिटल बिजनेस) मनीष मेहता ने कहा, ‘‘ एसआईपी (सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) और एनएफओ (न्यू फंड ऑफरिंग) के फ्लो के साथ नेट फ्लो लगातार उत्साहजनक बना हुआ है। एनएफओ के कारण स्कीम्स की थीमैटिक कैटेगरी में मजबूत फ्लो देखा गया।
लंबी अवधि में मोटा पैसा बनाने के लिए म्यूचुअल फंड एसआईपी को एक शानदार विकल्प माना जाता है। यहां हम जानेंगे कि 5,000 रुपये की एसआईपी से कैसे 2.63 करोड़ रुपये का फंड तैयार हो सकता है और इसमें कितना समय लगेगा।
लॉन्ग टर्म में मोटा पैसा बनाने में एसआईपी काफी मदद कर सकता है। यहां हम जानेंगे कि 20 साल के लिए अगर 10,000 रुपये की एसआईपी की जाए तो कितने रुपये मिलेंगे।
99 प्रतिशत म्यूचुल फंड इन्वेस्टर्स कोई शोध नहीं करते हैं और अपने दांव लगाने के लिए एक समूह के रूप में कार्य करते हैं, जिसके जोखिम भरे नतीजे सामने आ सकते हैं।
एसआईपी के जरिए ज्यादा से ज्यादा पैसा बनाने के लिए आपको ज्यादा से ज्यादा समय के लिए निवेश जारी रखना चाहिए। एसआईपी में कंपाउंडिंग का जबरदस्त फायदा मिलता है और ये फायदा तभी उठाया जा सकता है जब आप इसे लंबे समय तक जारी रखें।
यह फंड इक्विटी या फिक्स्ड इनकम में शून्य से 100 फीसदी तक निवेश करता है। फंड का फिलहाल लार्जकैप में 77.6 फीसदी निवेश है जबकि मिडकैप में 13.1 और स्माल कैप में 9.4 फीसदी का निवेश है।
कंपांउडिंग की असली ताकत देखनी हो तो म्यूचुअल फंड में ज्यादा से ज्यादा समय के लिए निवेश जारी रखना चाहिए। 5,000 रुपये की एसआईपी से कम समय में 10 करोड़ रुपये का फंड बनाने के लिए आपको स्टेप-अप फॉर्मूला का इस्तेमाल करना होगा।
म्यूचुअल फंड्स की कई कैटेगरी होती हैं और वैल्यू फंड भी उन्हीं कैटेगरी में से एक है। वैल्यू फंड उन फंड्स को कहा जाता है, जिसके तहत म्यूचुअल फंड्स कंपनियां उन कंपनियों के शेयरों में निवेश करती हैं, जिनकी वैल्यूएशन कम होती हैं।
म्यूचुअल फंड एसआईपी के जरिए अगर आप एक बड़ी राशि निवेश करते हैं और हर साल उसमें बढ़ोतरी (स्टेप-अप) करते हैं तो एक समय ऐसा आ जाता है जब आपकी संपत्ति में हर साल 1 करोड़ रुपये से ज्यादा की बढ़ोतरी होने लगती है।
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