प्रवासी मजदूर कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में कर्फ्यू और लॉकडाउन लगाए जाने के कारण संकट का सामना कर रहे हैं।
दिहाड़ी मजदूरों, प्रवासियों और निर्माण मजदूरों की जरूरत को पूरा करने के लिए पूरे दिल्ली में स्कूलों और निर्माण स्थलों पर भोजन वितरण केंद्र स्थापित किए गए हैं।
योजना के तहत प्रवासी कामगार केवल 5 फीसदी अंशदान कर अपना खुद का काम शुरू कर सकेंगे। योजना के तहत प्रवासी कामगार 50 लाख रुपये तक की इकाई लगा सकेंगे। परियोजना की लागत का 70 फीसदी हिस्सा बैंकों से लोन लिया जा सकेगा जबकि 25 फीसदी हिस्सा राज्य सरकार अनुदान के रूप में वहन करेगी।
सर्वे मार्च 2020 से शुरू किया जाएगा और इनके नतीजे अक्टूबर 2021 तक उपलब्ध होंगे। श्रम मंत्री ने कहा कि इन श्रमिकों के बारे में साक्ष्य-आधारित नीति बनाने के लिए संगठित और असंगठित क्षेत्र में रोजगार के प्रामाणिक आंकड़े बेहद जरूरी हैं।
कोरोनो वायरस के प्रसार को रोकने के निवारक उपाय के रूप में देश में लगाए गए लॉकडाउन ने प्रवासी श्रमिकों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
कोरोना संकट और अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर राहुल गांधी ने की चर्चा
इस अभियान के अंर्तगत एक करोड़ से ज्यादा स्थानीय व प्रवासी श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया गया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की मौजूदगी में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये गरीब कल्याण रोजगार अभियान का शुभारंभ किया।
नई तकनीक पर आधारित ये मंच मजदूरों को उनकी भाषा में रोजगार तलाशने में मदद करेगा
व्यावसायिक शिक्षा विभाग द्वारा विकसित 'आभा' एप को भी एंड्राइड फोन धारक श्रमिकों को डाउनलोड कराया जाएगा।
अगले 3 महीने के दौरान इन 25 योजनाओं के तहत रोजगार देने का अभियान
25 सरकारी योजनाओं के प्रोजेक्ट्स को अभियान में शामिल किया गया है
50 हजार करोड़ रुपए की लागत से शुरू की जा रही इस योजना के तहत कामगारों को 25 प्रकार के काम दिए जाएंगे।
रिपोर्ट के मुताबिक अब तक 58 लाख प्रवासी अपने गृह राज्य लौटे चुके हैं
मंत्रालय के मुताबिक राज्य स्वीकृत अनाज का आधे से ज्यादा हिस्सा उठा चुके हैं
फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) और इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ने तीन-तीन लाख नौकरियों की व्यवस्था करेंगे, जबकि नरेडको और लघु उद्योग भारती ने ढाई-ढाई लाख नौकरियों का सृजन करेंगे।
अरब खाड़ी देशों के अरबों डॉलर के निर्माण क्षेत्र में काम कर रहे दक्षिण एशिया के कामगारों को स्थानीय कंपनियों में अपनी नियुक्ति की फीस खुद चुकानी पड़ रही है।
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