जीएसटी परिषद सचिवालय द्वारा जीवन एवं स्वास्थ्य बीमा पर जीओएम के गठन पर जारी कार्यालय ज्ञापन में कहा गया है, जीओएम को 30 अक्टूबर, 2024 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है।
बड़ी राशि को बेकार रखने के बजाय, इसे लंबी अवधि के लिए निवेश करने पर विचार करें। समझदारी इसी में है कि टर्म इंश्योरेंस के पैसे से फिजूलखर्ची नहीं करें। अधिक पैसे खर्च करने से लंबे समय में वित्तीय अस्थिरता हो सकती है।
सरकार की कोशिश है कि एक महीने के अंदर 70 साल से ज्यादा उम्र के वरिष्ठ नागरिकों के लिए इस योजना को शुरू कर दिया जाए। एक हफ्ते में इस पर आर्डर आ जाएगा। सरकार इस योजना के प्रचार-प्रकार के लिए एक कैम्पेन भी लॉन्च करने जा रही है।
ज्यादातर पॉलिसी में पहले से चली आ रही बीमारियों की कवरेज के लिए कुछ सालों का वेटिंग पीरियड होता है। नियमों के अनुसार पुरानी बीमारियों को ज्यादा से ज्यादा 3 साल के लिए वेटिंग पीरियड में रखा जा सकता है।
कई लोग 25 की उम्र में हेल्थ इंश्योरेंस लेते हैं तो कई लोग 30 और 35 की उम्र में हेल्थ इंश्योरेंस खरीदते हैं। ऐसे में जिन लोगों ने अभी तक हेल्थ इंश्योरेंस नहीं लिया है, उनके मन में एक सवाल उठता रहता है कि हेल्थ इंश्योरेंस लेने का सही समय क्या है?
जीएसटी परिषद ने कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाइयों पर जीएसटी घटाकर 5 प्रतिशत करने का फैसला किया है। अभी तक कैंसर की दवाइयों पर 18 प्रतिशत जीएसटी वसूला जा रहा था।
हाल ही में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री, नितिन गडरकी ने इंश्योरेंस पॉलिसी के प्रीमियम पर लगने वाले जीएसटी को खत्म करने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखा था।
वह भी क्या दौर था, जब कोई चाह कर भी अपना बीमा नहीं करा सकता था। वक्त बदला और आज बीमा चंद मिनट में कहीं गए बिना हो रहा है।
कई बार ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं जब व्यक्ति के पास प्रीमियम भरने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं होते हैं। लेकिन अगर आप ईपीएफओ के मेंबर हैं और सक्रिय रूप से कॉन्ट्रिब्यूशन करते हैं तो आपको प्रीमियम भरने के लिए टेंशन लेने की जरूरत नहीं है।
इंश्योरेंस सेक्टर के जानकारों का कहना है कि इलाज खर्च में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। वहीं, बीमा कंपनियां पहले से मौजूद बीमारियों के लिए प्रतीक्षा अवधि को इस साल अप्रैल से चार साल से घटाकर तीन साल की है।
यहां एक बात और ध्यान देने वाली है कि सिर्फ लाइफ इंश्योरेंस होना ही जरूरी नहीं है। यहां मायने ये रखता है कि आपका लाइफ इंश्योरेंस कितना कवर देता है। यहां हम ये जानेंगे कि क्या आपके परिवार के लिए 1 करोड़ रुपये का लाइफ इंश्योरेंस काफी है?
जून के दौरान जोड़े गए कुल 21.67 लाख कर्मचारियों में से 10.58 लाख कर्मचारी, जो कुल रजिस्ट्रेशन का लगभग 49 प्रतिशत हैं। डाटा के मुताबिक, जून 2024 में महिला सदस्यों का शुद्ध नामांकन 4. 32 लाख था।
इंश्योरेंस रेगुलेटर आईआरडीएआई की वेबसाइट काफी समय से ओपन नहीं हो पा रही है। यूजर्स लगातार इस परेशानी से जूझ रहे हैं।
सीनियर सिटीजन के लिए हेल्थ इंश्योरेंस लेते समय इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि इंश्योरेंस कंपनियां वरिष्ठ नागरिकों की उम्र और मौजूदा हेल्थ कंडीशन के हिसाब से उनका प्रीमियम तय करती हैं।
केरल के वायनाड में आए भूस्खलन और भारी बारिश की वजह से मरने वालों की संख्या 350 के पार पहुंच चुकी है। वित्त मंत्रालय ने पीड़ितों की मदद के लिए सभी इंश्योरेंस कंपनियों से जल्द से जल्द क्लेम सैटलमेंट के निर्देश दिए हैं।
जीवन बीमा और हेल्थ इंश्योरेंस दोनों के प्रीमियम पर अभी 18 प्रतिशत की दर से जीएसटी लगता है। पत्र में लिखा गया है कि जीवन बीमा प्रीमियम पर जीएसटी लगाना जीवन की अनिश्चितताओं पर कर लगाने के समान है।
सूत्रों ने बताया कि विधेयक का मसौदा तैयार है और इसे मंजूरी के लिए मंत्रिमंडल के पास भेजा जाना है। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्रालय को उम्मीद है कि इसे आगामी सत्र में पेश किया जाएगा।
अगर आपकी कार बाढ़ में डैमेज हो जाए तो अपने इंश्योरेंस कंपनी को उनके कस्टमर हेल्प नंबर पर संपर्क करके या उनकी वेबसाइट पर जाकर डैमेज की जानकारी देनी चाहिए। फिर कंपनी डैमेज का आकलन कर आगे की प्रक्रिया को आगे बढ़ाती हैं।
बीमा कंपनियों को स्पष्ट रूप से यह बताना होगा कि बाजार से जुड़ी बीमा योजनाएं पारंपरिक बंदोबस्ती पॉलिसियों से भिन्न हैं और उनमें जोखिम भी होता है। भाग लेने वाली (बोनस के साथ) बंदोबस्ती पॉलिसियों को पहले ही यह बताना होगा कि मुनाफे में अनुमानित बोनस की गारंटी नहीं है।
ऐसे हादसों के समय में इस पॉलिसी के तहत मिलने वाला कवर इंश्योरंस कंपनी की तरफ से उन घायल या इसके शिकार हुए पैसेंजर्स को उनकी स्थिति के मुताबिक दी जाती है।
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