भारतीय अर्थव्यवस्था ने न सिर्फ इस साल बल्कि पिछले कुछ सालों में अपने समकक्षों से बेहतर प्रदर्शन किया है। भारत की आर्थिक वृद्धि लगातार छह प्रतिशत से अधिक बनी हुई है। उम्मीद है कि बढ़ोतरी 2024 और 2025 में भी जारी रहेगी।
उपभोग मांग में ग्रोथ बरकरार रहने की उम्मीद है। ऑटो बिक्री, ईंधन खपत और यूपीआई लेनदेन में हाई ग्रोथ के साथ शहरी मांग की स्थिति लचीली बनी हुई है।
IMF की ओर से भारत की अर्थव्यवस्था को स्टार परफॉर्मर बनाया गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का मनना है कि मजबूत घरेलू मांग और पूंजीगत खर्च के कारण भारत की अर्थव्यवस्था अन्य देशों के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन करेगी।
साल 2023 कोरोना महामारी के बाद से आम आदमी के लिए एक सबसे बढ़िया साल रहा है। सब्जियों की महंगाई को छोड़ दें, तो यह साल आम आदमी के लिए अच्छा रहा। इस साल बेरोजगारी दर में कमी आई है। काम-धंधे अच्छे चले, तो जीडीपी ग्रोथ भी अनुमान से अधिक रही।
एशियाई विकास बैंक ने चालू वित्तवर्ष के लिए भारत की मुद्रास्फीति पर अपने पहले के पूर्वानुमान को 5.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सिर्फ पिछले आठ सालों में, भारत साल 2014 में 10वीं से आज पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। गतिविधियां पूरी अर्थव्यवस्था में हैं। ऐसा नहीं है कि एक क्षेत्र अच्छा प्रदर्शन कर रहा है।
भारत वर्तमान में अमेरिका, चीन, जर्मनी और जापान के बाद दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। वित्त वर्ष 2022-23 के आखिर तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 3,730 अरब अमेरिकी डॉलर रहा है।
भारत दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने वाला देश बना हुआ है। जीडीपी के आंकड़े पर पीएम मोदी ने कहा कि यह वृद्धि दर के आंकड़े वैश्विक स्तर पर परीक्षा की घड़ी में भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाते हैं।
आठ प्रमुख बुनियादी उद्योगों का उत्पादन इस साल अक्टूबर में 12.1 प्रतिशत बढ़ा। पिछले साल समान माह में इसमें 0.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। बृहस्पतिवार को जारी आधिकारिक आंकड़े में यह जानकारी दी गई। समीक्षाधीन महीने में उर्वरक को छोड़कर सभी क्षेत्रों में अच्छी वृद्धि दर्ज की गई।
एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने अपनी लेटेस्ट रिपोर्ट में कहा है कि मजबूत घरेलू गति उच्च खाद्य मुद्रास्फीति तथा कमजोर निर्यात से होने वाली बाधाओं की भरपाई करती दिख रही है।
GDP: भारतीय अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही में 7 प्रतिशत की दर से विकास कर सकती है। आईसीआरए की ओर से ये अनुमान जारी किया गया है।
देश का पैसा सबसे ज्यादा सोना और पेट्रोलियम खरीद में बाहर चला जाता है। दोनों की डिमांड भी देश में जबरदस्त है। सोना और पेट्रोलियम के मामले में भारत को दूुनिया के देशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
रिजर्व बैंक का अनुमान है कि मुद्रास्फीति 4.7 प्रतिशत रहेगी। हालांकि, यह 2023 में अनुमानित 5.7 प्रतिशत की मुद्रास्फीति की दर से कम है। प्रमुख उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 2024 में 5.1 प्रतिशत रहेगी।
देश के प्रमुख उद्योगपति अडाणी ने सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर लिखा, 'बधाई हो भारत'। भारत के 4,400 अरब डॉलर वाले जापान और 4,300 अरब डॉलर वाले जर्मनी को पीछे छोड़कर जीडीपी के लिहाज से तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में सिर्फ दो साल बाकी हैं। तिरंगे की उड़ान जारी है!
एसएंडपी ग्लोबल इंडिया के मुताबिक, भारत के साल 2030 तक 7.3 ट्रिलियन इकोनॉमी के साथ दुनिया की तीसरी इकोनॉमी बनने की संभावना है। भारतीय अर्थव्यवस्था ने 2023 वित्त वर्ष में भी लगातार मजबूत ग्रोथ दिखाना जारी रखा।
डेलॉयट इंडिया का मानना है कि विकास दर को फेस्टिवल सीजन में खर्च बढ़ने और देश में अगले साल लोकसभा चुनावों के पहले सरकारी खर्च बढ़ने से सपोर्ट मिलेगा। भारत फिलहाल दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है।
आईएमएफ (IMF) ने विकास अनुमान में बढ़ोतरी के लिए अप्रैल-जून के दौरान उम्मीद से ज्यादा मजबूत खपत को कारण बताया। साथ ही महंगाई के मोर्चे पर कहा है कि इस वित्तीय वर्ष में भारत की खुदरा महंगाई 5.5 प्रतिशत रह सकती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही है। वहीं दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी चीन की इकोनॉमी मंदी की चपेट में आ गई है। पश्चिमी देशों से संबंध खराब होने का असर भी चीन की इकोनॉमी पर पड़ा है।
अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतें 10 महीनों में पहली बार 90 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर गई। वर्तमान में 92 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के आसपास हैं। कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने पहली तिमाही के आंकड़ों को देखने के बाद अपने अनुमानों में बदलाव किया है।
रिपोर्ट में अगले साल होने वाले आम चुनावों के पहले जीडीपी वृद्धि की राह में कुछ चुनौतियों को लेकर आगाह भी किया है। इनमें ग्लोबल ग्रोथ रेट में गिरावट से भारत के निर्यात में सुस्ती, ग्लेबाल इकोनॉमिक कंडीशन की वजह से पूंजी की लागत बढ़ना और मानसूनी बारिश में कमी के साथ विनिर्माण क्षेत्र की नरमी शामिल हैं।
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