अक्टूबर से एफपीआई की लगातार बिकवाली तीन कारकों के संयुक्त प्रभाव के कारण हुई है। ये कारक भारत में उच्च मूल्यांकन, आय में गिरावट को लेकर चिंताएं और अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के कारण धारणाओं का प्रभावित होना है।
अगर तीसरी तिमाही के नतीजे और प्रमुख संकेतक आय में सुधार का संकेत देते हैं, तो यह परिदृश्य बदल सकता है और एफपीआई बिकवाली कम कर सकते हैं।
एफपीआई की बिकवाली की वजह से प्रमुख सूचकांक अपने शीर्ष स्तर से करीब 8% नीचे आ गए हैं। आंकड़ों के अनुसार, एफपीआई ने समीक्षाधीन अवधि के दौरान बॉन्ड से सामान्य सीमा के माध्यम से 4,406 करोड़ रुपये निकाले हैं।
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा कि एफपीआई की निरंतर बिकवाली के रुख में तत्काल बदलाव आने की संभावना नहीं है। चीन के प्रोत्साहन उपायों की वजह से एफपीआई वहां के बाजार का रुख कर रहे हैं।
आने वाले समय में वैश्विक स्तर पर होने वाली गतिविधियां और ब्याज दर को लेकर स्थिति जैसे वैश्विक कारक भारतीय शेयर बाजारों में विदेशी निवेश के प्रवाह को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) के आंकड़ों के अनुसार, 4 अक्टूबर तक FPI ने भारतीय इक्विटी में ₹27,142 करोड़ की बिकवाली की।
यह दिसंबर, 2023 के बाद सबसे अधिक शुद्ध प्रवाह है। उस समय एफपीआई ने शेयरों में 66,135 करोड़ रुपये का निवेश किया था। जून से एफपीआई लगातार निवेश कर रहे हैं।
संतुलित राजकोषीय घाटा, दर कटौती के भारतीय मुद्रा पर प्रभाव, मजबूत मूल्यांकन और भारतीय रिजर्व बैंक के महंगाई पर नियंत्रण के रुख की वजह से भारत जैसे उभरते बाजार एफपीआई के लिए आकर्षक बने हुए हैं।
यूएस फेड की बैठक के नतीजों से भारतीय शेयरों में एफपीआई के निवेश का रुख तय होगा। डिपॉजिटरी के आंकड़ों के मुताबिक, एफपीआई ने इस महीने (13 सितंबर तक) अबतक शेयरों में शुद्ध रूप से 27,856 करोड़ रुपये का निवेश किया है।
जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा कि अमेरिका में 10 साल के बॉन्ड पर प्रतिफल में गिरावट के कारण भारत जैसे उभरते बाजारों में एफपीआई प्रवाह के लिए यह सकारात्मक है।
सितंबर की शुरुआत में मुख्य रूप से भारतीय बाजार के लचीलेपन के कारण एफपीआई द्वारा बेहतर खरीदारी देखी गई। एफपीआई ने 6 सितंबर तक एक्सचेंजों के माध्यम से इक्विटी में 9,642 करोड़ रुपये और 'प्राथमिक बाजार और अन्य' श्रेणी के माध्यम से 1,388 करोड़ रुपये का निवेश किया।
जियोजित के विजयकुमार ने कहा कि इसके अलावा, एफपीआई मुख्य रूप से बॉन्ड बाजार में खरीदारी कर रहे हैं क्योंकि इस साल भारतीय रुपया स्थिर रहा है और यह स्थिरता जारी रहने की उम्मीद है। इसके साथ, 2024 में अब तक इक्विटी में एफपीआई का निवेश 42,885 करोड़ रुपये और बॉन्ड बाजार में 1.08 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
विदेशी निवेशकों की ओर से डेट मार्केट में बड़ी खरीदारी होने की वजह इस साल जून में जेपी मॉर्गन इमर्जिंग मार्केट बॉन्ड इंडेक्स में भारतीय बॉन्ड को शामिल करना है। जेपी मॉर्गन इमर्जिंग मार्केट्स बॉन्ड इंडेक्स में भारतीय बॉन्ड का वेटेज 10 प्रतिशत होगा।
वॉटरफील्ड एडवाइजर्स में लिस्टेड इन्वेस्टमेंट के डायरेक्टर विपुल भोवार ने कहा कि मौजूदा समय में येन कैरी ट्रेड, वैश्विक मंदी, आर्थिक गति धीमी होने और वैश्विक तनाव बढ़ने के कारण बाजार में अस्थिरता और जोखिम का खतरा बना हुआ है।
जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा कि भविष्य में बाजार में तेजी बने रहने की स्थिति में विदेशी निवेशक अधिक बिक्री कर सकते हैं। इसकी वजह यह है कि भारतीय इक्विटी बाजार का मूल्यांकन तुलनात्मक रूप से ऊंचा बना हुआ है।
देश की सॉलिड अर्थवस्वस्था और सरकारी नीतियों को ध्यान में रखते हुए विदेशी निवेशकों ने इस साल जुलाई में कुल 32,365 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे हैं। हालांकि, अगस्त के शुरुआती दो दिनों में उन्होंने 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा के शेयर बेचकर पैसे निकाले हैं।
बजट में शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन टैक्स (एसटीसीजी) को 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया है। वहीं, लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स (एलटीसीजी) को 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है।
मॉरीशस के साथ भारत की कर संधि में बदलाव और अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल में वृद्धि की चिंता के बीच अप्रैल में उन्होंने 8,700 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी की थी।
एफपीआई के प्रवाह में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। एफपीआई ने जनवरी, अप्रैल और मई में कुल मिलाकर 60,000 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं। वहीं फरवरी, मार्च और जून में उन्होंने 63,200 करोड़ रुपये की खरीदारी की है।
चुनाव को लेकर असमंजस की वजह से विदेशी निवेशकों ने मई में शेयर बाजार से 25,586 करोड़ रुपये की निकासी की थी। मॉरीशस के साथ भारत की कर संधि में बदलाव और अमेरिका में बॉन्ड प्रतिफल बढ़ने की चिंता के कारण एफपीआई ने अप्रैल में शेयरों से 8,700 करोड़ रुपये से अधिक निकाले थे।
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