जियोजीत इन्वेस्टमेंट के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी. के. विजयकुमार के अनुसार, डॉलर इंडेक्स में गिरावट और डॉलर की कमजोरी के चलते एफपीआई अमेरिका से हटकर भारत जैसे उभरते बाजारों की ओर रुख कर रहे हैं।
भारतीय शेयर बाजार से विदेशी निवेशक लगातार पैसा निकाल रहे हैं। इससे बाजार में तेजी लौट नहीं रही है।
आंकड़ों के अनुसार, शेयरों के अलावा एफपीआई ने बॉन्ड से 556 करोड़ रुपये और वोलंटरी रूट से 4,038 करोड़ रुपये निकाले हैं।
एफपीआई ने फरवरी में शेयरों से 34,574 करोड़ रुपये और जनवरी में 78,027 करोड़ रुपये निकाले थे।
सेबी ने सोमवार को निवेश सलाहकारों और शोध विश्लेषकों को एक साल तक अग्रिम शुल्क लेने की अनुमति देने का फैसला किया।
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, एफपीआई ने 21 मार्च को समाप्त सप्ताह में 1,794 करोड़ रुपये (19.4 करोड़ डॉलर) के शेयर बेचे हैं।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अगुवाई में अमेरिका की व्यापार नीतियों को लेकर जो अनिश्चितता चल रही है, उससे वैश्विक स्तर पर जोखिम लेने की क्षमता प्रभावित हुई है। ऐसे में एफपीआई भारत जैसे उभरते बाजारों को लेकर सतर्कता का रुख अपना रहे हैं।
रुपये में गिरावट ने एफपीआई के लिए रिटर्न को कम कर दिया है। वहीं, भारत का टैक्स स्ट्रक्चर भी एक कारण है, जिसमें लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर 12.5 प्रतिशत टौक्स और शॉर्ट टर्म पर 20 फीसदी टैक्स है।
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा कि भारत में ऊंचे मूल्यांकन की वजह से एफपीआई बिकवाली कर रहे हैं। वे अपना पैसा चीन के शेयरों में लगा रहे हैं, जहां मूल्यांकन कम है।
ट्रंप की राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद अमेरिका बाजार में शेष दुनिया से भारी पूंजी का प्रवाह हो रहा है। उन्होंने कहा, चूंकि चीन के शेयर सस्ते हैं ऐसे में ‘भारत में बेचो और चीन में खरीदो’ का रुख अभी जारी रह सकता है।
पिछले साल यानी 2024 में भारतीय शेयरों में एफपीआई का निवेश सिर्फ 427 करोड़ रुपये रहा था। इससे पहले 2023 में उन्होंने भारतीय शेयर बाजार में 1.71 लाख करोड़ रुपये डाले थे। इसकी तुलना में 2022 में वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा आक्रामक तरीके से नीतिगत दर बढ़ाने के बीच एफपीआई ने 1.21 लाख करोड़ रुपये निकाले थे।
साल 2023 में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार में 1.71 लाख करोड़ रुपये के शुद्ध निवेश किया था। इसकी तुलना में, 2022 में वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा दरों में आक्रामक वृद्धि के बीच एफपीआई ने 1.21 लाख करोड़ रुपये की शुद्ध निकासी की थी।
जब तक डॉलर सूचकांक 108 से ऊपर रहेगा और 10 साल के अमेरिकी बॉन्ड का प्रतिफल 4.5 प्रतिशत से ऊपर रहेगा, तब तक बिक्री जारी रहने का अनुमान है।
डॉलर की मजबूती, अमेरिका में बॉन्ड यील में बढ़ोतरी और कंपनियों के तिमाही नतीजे कमजोर रहने की आशंका से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक लगातार बिकवाली कर रहे हैं।
भारतीय बाजारों से विदेशी फंड्स की निकासी के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। इनमें कंपनियों के तिमाही नतीजे कमजोर रहने की आशंका, ट्रंप प्रशासन में टैरिफ वॉर की संभावना, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर में सुस्ती, ऊंची महंगाई तथा भारत में ब्याज दरों में कटौती का दौर शुरू होने को लेकर असमंजस शामिल है।
डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट ने एफपीआई की धारणा को और कमजोर कर दिया है, क्योंकि मुद्रा जोखिम ने भारतीय निवेश को कम आकर्षक बना दिया है। इसके अलावा, अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा इस साल ब्याज दरों में कम कटौती के संकेत भी निवेशकों का भरोसा बढ़ाने में विफल रहे हैं।
वर्ष 2024 में जनवरी, अप्रैल, मई, अक्टूबर और नवंबर महीनों में एफपीआई बिकवाल रहे। 2024 में एफपीआई प्रवाह में भारी गिरावट वैश्विक तथा घरेलू कारकों के कारण हुई।
दिलचस्प बात यह है कि सितंबर में एफपीआई ने भारतीय शेयर बाजारों में 57,724 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया था, जो नौ माह का उच्चस्तर था।
निवेशकों में उम्मीद बनी है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) आगामी मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर में कटौती करेगा। वहीं, खुदरा महंगाई अक्टूबर के 6.21% से घटकर नवंबर में 5.48 प्रतिशत रह गई है। इससे बाजार को बल मिलेगा।
भारतीय शेयर बाजार में बड़ी गिरावट के बाद अच्छी तेजी लौटी है। ये तेजी विदेशी निवेशकों के दम पर आई है। उन्होंने फिर से शेयर बाजार में पैसा लगाना शुरू कर दिया है।
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