एसएएस के नतीजों, 2018-19 के दौरान खेती-किसानी से जुड़े भारतीय परिवारों की औसत मासिक आय 10,218 रुपये थी। जबकि, 2012-13 के दौरान खेती-किसानी से जुड़े भारतीय परिवारों की औसत मासिक आय 6426 रुपये थी।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना किसानों के लिए बहुत ही लाभकारी योजना है। भारत में बहुत से किसान ऐसे हैं जिन्हें नहीं पता कि उन्हें अधिकतम उपज हासिल करने के लिए किस प्रकार की फसल उगानी चाहिए।
PMKMY: प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना में समय से पहले बाहर निकलने की स्थिति में ग्राहकों को सह-योगदान का भुगतान नहीं किया जाएगा। ऐसे मामले में, निधि आय के साथ सह-योगदान पेंशन फंड में वापस स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
KCC scheme : किसान क्रेडिट कार्ड स्कीम में किसानों को 4 फीसदी ब्याज दर पर लोन उपलब्ध कराया जाता है। इसमें अधिकतम 3 लाख रुपये का लोन ले सकते हैं।
Kisan Credit Card : आरबीआई ने किसानों के लिए गारंटी फ्री लोन की सीमा 1.6 लाख से बढ़ाकर 2 लाख रुपये कर दी है। यानी अब किसान बिना कुछ गिरवी रखे 2 लाख रुपये का लोन ले सकते हैं।
कृषि राज्य मंत्री राम नाथ ठाकुर ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में जानकारी देते हुए बताया कि बेनिफिशियरी के रजिस्ट्रेशन और वेरिफिकेश में पूरी पारदर्शिता बनाए रखते हुए, भारत सरकार ने शुरुआत से अब तक 18 किस्तों में 3.46 लाख करोड़ रुपये से अधिक का डिस्ट्रीब्यूशन किया है।
देश में छोटी जोत वाले किसानों के लिए अच्छी खबर है। अब वे बैंक से बिना किसी गारंटी के 2 लाख रुपये तक लोन ले पाएंगे। अभी यह सीमा 1.6 लाख रुपये है।
केंद्र सरकार देशभर में प्राकृतिक खेती पर फोकस बढ़ाना चाहती है। इस योजना के तहत पूरे देश में मिशन मोड में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए मिशन चलाया जाएगा। कृषि मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन को इच्छुक ग्राम पंचायतों में 15,000 क्लस्टरों में लागू किया जाएगा।
उपभोक्ता मामलों की सचिव निधि खरे ने शुक्रवार को कहा कि टमाटर मूल्य श्रृंखला के अलग-अलग स्तरों पर नए विचारों को आमंत्रित करने के लिए पिछले साल जून में 'टमाटर ग्रैंड चैलेंज (टीजीसी) हैकाथॉन' शुरू किया गया था।
मुख्यमंत्री ने किसानों के लिए एक और पहल करते व्हाट्सएप के माध्यम से 40 लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किये जाने की शुरूआत की। यह कदम कार्ड छपने में देरी के कारण पैदा हुई दिक्कतों को दूर करने के लिए उठाया गया।
मंत्रालय ने रबी सत्र 2024-25 के लिए 164.55 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य रखा है, जिसमें 115 लाख टन गेहूं और 18.15 लाख टन दालें शामिल हैं। रबी (सर्दियों) की फसलों की बुवाई शुरू हो गई है और दिवाली के बाद इसमें तेजी आएगी।
आरबीआई के रिसर्च पेपर में इस स्थिति में सुधार के लिए एग्रीकल्चरल मार्केटिंग सेक्टर में सुधार का सुझाव दिया गया है। इसमें किसानों को उनकी उपज की बेहतर कीमत प्राप्त करने में मदद के लिए प्राइवेट मंडियों की संख्या बढ़ाने की बात शामिल है।
सरकार ने एक्स पर किए पोस्ट में कहा कि इन दोनों कृषि योजनाओं पर कुल 1,01,321.61 करोड़ रुपये खर्च होंगे। पीएम-आरकेवीवाई के लिए 57,074.72 करोड़ रुपये और कृषोन्नति योजना के लिए 44,246.89 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
इलेक्ट्रॉनिक नेगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट (ई-एनडब्ल्यूआर) के बदले फंडिंग का काम सरकारी प्रयासों के बावजूद संतोषजनक स्तर तक नहीं पहुंच पा रहा था। हाल ही में ‘किसान उपज निधि’ पोर्टल की शुरूआत के बावजूद ऐसा देखा जा रहा था।
यह योजना जमाखोरी और सट्टेबाजों को हतोत्साहित करने में मदद करेगी। जब भी बाजार में कीमतें एमएसपी से अधिक होंगी, तो बाजार मूल्य पर दालों की खरीद उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा की जाएगी।
केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने कहा कि घरेलू समाधानों को प्रोत्साहित करके आयात निर्भरता को कम करने पर सरकार का पूरा ध्यान है। घोषणाओं का एक मुख्य आकर्षण मवेशियों के लिए विशेष एकीकृत जीनोमिक 'गौ चिप' और भैंसों के लिए 'महिष चिप' का विकास है।
किसानों को मिले नोटिस में कहा गया है कि उनके बागान में उगाई गई काली मिर्च की बिक्री जीएसटी के अधीन है और बागान मालिक को जीएसटी अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड होना भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि ये नोटिस काली मिर्च को सुखाने की प्रक्रिया को लेकर फैली गलतफहमी का नतीजा है।
अमित शाह ने कहा कि हमने पीएम-किसान के तहत 70वीं किस्त वितरित की है। अब तक 12.33 करोड़ किसानों को तीन लाख करोड़ रुपये वितरित किए जा चुके हैं।
सरकार ने पहले न्यूनतम निर्यात मूल्य के तौर पर 550 डॉलर प्रति टन की लिमिट तय की थी। इसका मतलब ये था कि किसान इस भाव से कम कीमत पर अपनी उपज विदेश में नहीं बेच सकते थे। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने एक नोटिफिकेशन जारी कर प्याज के निर्यात के लिए तय किए गए एमईपी को तत्काल प्रभाव से हटा दिया।
सचिव ने कहा कि वर्तमान सरकारी आंकड़े कृषि भूमि के टुकड़ों और राज्यों द्वारा प्रदान किए गए फसल के विवरण तक सीमित हैं, लेकिन इसमें व्यक्तिगत किसान-वार जानकारी का अभाव है। नई रजिस्ट्री का उद्देश्य इस अंतर को पाटना है।
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