Constant and Target Maturity Funds: फंड्स और शेयर में निवेश कर लोग रकम को और ज्यादा बढ़ाते हैं। एक लंबी अवधि के लिए निवेश करें या फिर टारगेट बनाकर इसके अनुसार महीने या साल के हिसाब से निवेश करें यह तय करना बहुत मुश्किल होता है। क्या आप भी कॉन्स्टेंट और टारगेट मैच्योरिटी फंड में निवेश करने के लिए सोच रहे हैं? इन दोनों में क्या अंतर है और कौन ज्यादा बेहतर है इससे के बारे में जाने बगैर निवेश करने से नुकसान भी हो सकता है। इसके क्या फायदे हैं और इनमें कौन ज्यादा बेहतर है यहां इन सभी जरूरी जानकरियों को आसान शब्दों में समझने की कोशिश करेंगे, जिससे निवेश का बेहतर लाभ मिल सके।
कॉन्स्टेंट मैच्योरिटी फंड
टारगेट मैच्योरिटी फंड और कॉन्स्टेंट मैच्योरिटी फंड के बीच बहुत अंतर है। एक तरह से देखा जाए तो यह दोनों ही एक दूसरे के लगभग पूरक माने जाते हैं। अगर 10 साल के लिए इसमें निवेश करते हैं तो एक लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इसे मैच्योर होने तक इंतजार करते हैं। ऐसा कई सरकारी बॉन्ड्स को मिलाकर होता है। सिर्फ इतना ही नहीं आपने कब निवेश किया है इसके ऊपर भी ध्यान देना जरूरी है। इनमें ब्याज दर का जोखिम शामिल होता है। ब्याज दर में बदलाव होने पर इसका सीधे तौर पर असर बॉन्ड के ऊपर हो सकता है।
टारगेट मैच्योरिटी फंड
टारगेट मैच्योरिटी फंड, कॉन्स्टेंट मैच्योरिटी फंड के मुकाबले फायदे का सौदा माना जाता है। इसमें निवेश करने के बाद ब्याज दर जोखिम भरा नहीं होता है। ब्याज दर में बदलाव होने के कारण बॉन्ड के ऊपर इसका सीधे तौर पर असर देखने को नहीं मिलता है। इसे मैच्योर हो जाने के बाद प्रिंसिपल अमाउंट और ब्याज दर दोनों ही एक साथ रिटर्न ले सकते हैं। यही वजह है कि लोग कॉन्स्टेंट के मुकाबले टारगेट मैच्योरिटी फंड के ऊपर अधिक विश्वास करते हैं।
कॉन्स्टेंट मैच्योरिटी फंड के क्या फायदे हैं
कॉन्स्टेंट मैच्योरिटी फंड में निवेश करते समय साल के अनुसार बजट को देखते हुए लोग इसमें निवेश कर मुनाफा कमाते हैं। भले ही इसमें ब्याज दर का जोखिम हो लेकिन लोग इसमें निवेश कर समय रहते ब्याज और प्रिंसिपल अमाउंट दोनों को निकाल सकते हैं। वहीं अगर इन दोनों के बीच कौन बेहतर है, इसकी बात करें तो लोग कितना निवेश करने वाले हैं इस रकम के अनुसार यह तय कर सकते हैं कि कौन ज्यादा बेहतर है। इसमें निवेश करने से पहले एक बार प्रशिक्षित लोगों से सलाह जरूर लें।