देश में म्यूचुअल फंड निवेश तेजी से बढ़ रहा है। म्यूचुअल फंड्स में बाजार का जोखिम शामिल होता है, लेकिन इसके बावजूद देश के आम निवेशक बढ़-चढ़कर म्यूचुअल फंड्स में निवेश कर रहे हैं क्योंकि म्यूचुअल फंड्स अपने निवेशकों को जबरदस्त रिटर्न दे रहा है। म्यूचुअल फंड्स की सभी स्कीम्स 2 अलग-अलग प्लान- डायरेक्ट प्लान और रेगुलर प्लान के साथ आती हैं। म्यूचुअल फंड स्कीम के इन दोनों प्लान में कई अंतर होते हैं, जो आपके निवेश को प्रभावित करते हैं। यहां हम म्यूचुअल फंड्स के रेगुलर प्लान और डायरेक्ट प्लान के बीच अंतर जानने की कोशिश करेंगे।
म्यूचुअल फंड डिस्ट्रिब्यूटर या एजेंट से खरीदे जाते हैं रेगुलर प्लान वाले म्यूचुअल फंड
रेगुलर प्लान वाले म्यूचुअल फंड्स, म्यूचुअल फंड डिस्ट्रिब्यूटर या एजेंट के माध्यम से खरीदे जाते हैं। रेगुलर प्लान में फंड हाउस, म्यूचुअल फंड डिस्ट्रिब्यूटर या एजेंट को ब्रोकरेज या डिस्ट्रिब्यूश फीस देते हैं क्योंकि वे निवेशकों को ये स्कीम्स बेचते हैं। इन स्कीम्स का एक्सपेंस रेशो ज्यादा होता है। ज्यादा एक्सपेंस रेशो का निवेशकों के ओवरऑल रिटर्न पर प्रभाव पड़ता है क्योंकि फंड हाउस, डिस्ट्रिब्यूटर या एजेंट को दी जाने वाली फीस को निवेशकों पर डाल देता है।
डायरेक्ट प्लान वाले म्यूचुअल फंड में नहीं होती बिचौलियों की भूमिका
डायरेक्ट प्लान वाले म्यूचुअल फंड्स सीधे फंड हाउस से खरीदे जाते हैं और इसमें किसी बिचौलिए का रोल नहीं होता है। निवेशक सीधे फंड हाउस की वेबसाइट पर जाकर डायरेक्ट प्लान खरीद सकते हैं। इसके अलावा, निवेशक सेबी रजिस्टर्ड इंवेस्टमेंट एडवाइजर्स से भी डायरेक्ट प्लान वाले म्यूचुअल फंड खरीद सकते हैं। इसके अलावा अब ऑनलाइन ब्रोकरेज प्लेटफॉर्म्स से भी डायरेक्ट प्लान वाले म्यूचुअल फंड्स लिए जा सकते हैं।
रेगुलर और डायरेक्ट प्लान के बीच कुछ और अंतर
चूंकि रेगुलर प्लान डिस्ट्रिब्यूटर या एजेंट से खरीदे जाते हैं, निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो को मैनेज या मॉनिटर करने की जरूरत नहीं पड़ती। इसके अलावा, किसी भी तरह की जरूरत पड़ने पर डिस्ट्रिब्यूटर या एजेंट निवेशकों की मदद के लिए तैयार रहते हैं। जबकि, डायरेक्ट प्लान में सारी चीजें खुद निवेशकों को ही देखना पड़ता है।