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सरकारी कर्मचारियों को 0ld Pension System और न्यू पेंशन सिस्टम की पेंच से मुक्ति दिलाएगा ‘GPS’, जानें क्यों है बेहतर

अगर देश के आर्थिक हालातो और कर्मचारी हितों को ध्यान में रखकर अगर कोई रास्ता निकाला जाए तो हाइब्रिड पेंशन व्यवस्था एक बेहतरीन विकल्प बन सकती है, जिसमें ओपीएस की तरह defined benefit और एनपीएस की तरह defined contribution दोनों शामिल हो जिसके कारण कर्मचारी हितों और आर्थिक हितों दोनों की पूर्ति की जा सकती है।

Edited By: Alok Kumar @alocksone
Updated on: October 19, 2023 15:57 IST
Pension Puzzle - India TV Paisa
Photo:FILE पेंशन सिस्टम की पेंच

पिछले कई दिनों से दिल्ली के रामलीला मैदान में सरकारी कर्मचारियों और उनके संगठनों द्वारा पुरानी पेंशन व्यवस्था यानी ओपीएस (Old Pension Scheme) की बहाली को लेकर पिछले कई दिनों से प्रदर्शन किया जा रहा है। समय-समय पर विभिन्न राजनीतिक दलों और गैर–बीजेपी शासित राज्य सरकारों द्वारा भी इस मुद्दे को हवा दिया जाता रहा है। हाल ही में पंजाब ,राजस्थान ,छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश की सरकारों ने पुरानी पेंशन प्रणाली को फिर से लागू किए जाने का ऐलान किया है। मगर केंद्र की एनडीए सरकार पुरानी पेंशन प्रणाली लागू किए जाने के बजाय नई पेंशन प्रणाली में सुधार के संकेत जरूर देती रही है । इन सब के बीच आंध्र प्रदेश की जगनमोहन रेड्डी सरकार गारंटीड पेंशन सिस्टम नाम से एक नई पेंशन प्रणाली शुरू की है जिसे ओपीएस और एनपीएस का हाइब्रिड वर्जन कहा जा रहा है। जीपीएस के बारे में चर्चा करने से पहले सबसे पहले विस्तार से जानते हैं ओल्ड पेंशन स्कीम और न्यू पेंशन स्कीम के बारे में।

आखिर क्या है (GPS) और यह किस प्रकार से बेहतरीन विकल्प

गारंटीड पेंशन सिस्टम यानी (GPS) एक प्रकार से एनपीएस की तरह अंशदायी योजना (contributory scheme ) जिसमें कर्मचारियों को अपनी  सेवा काल के दौरान एनपीएस की तरह अपने वेतन में से कुछ भाग पेंशन खातों में देना होगा जब कर्मचारी रिटायर होगा तो इस निधि में जमा राशि ओपीएस की  तरह सरकारी कर्मचारियों को उनके अंतिम आहरित वेतन का 50% मासिक पेंशन की गारंटी देती है जिसमें महंगाई भत्ता शामिल है।

जीपीएस की सबसे बड़ी मुख्य बात यह है कि कर्मचारियों को तो गारंटीड पेंशन का लाभ महंगाई भत्ते के साथ मिलेगा ही मिलेगा साथ ही जो पैसा सरकार द्वारा एनपीएस खातों  में जमा राशि का इस्तेमाल से पीएफआरडीए द्वारा ECGA (Equity, Corporate Bond, Government Securities and Alternative Investment) किया जाता है उस पर होने वाला रिटर्न भी कर्मचारियों को दिया जाएगा।

लेकिन अगर एनपीएस जो की मार्केट लिंक्ड पेंशन स्कीम है अगर मार्केट में अस्थिरता के कारण एनपीएस खातों में किसी भी तरह के रिटर्न में गिरावट आती है तो उसकी भरपाई भी राज्य सरकार द्वारा कि जायेगी।

ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस)

वैसे तो इसको ओल्ड पेंशन स्कीम आधिकारिक तौर पर नहीं कहा जाता है रहा है एनपीएस से पहले इसे सिर्फ पेंशन कहा जाती था मगर एनपीएस के आने के बाद इसको नया नाम मिला ‘ओ पी एस’ इसमें सरकारी कर्मचारियों को रिटायरमेंट के समय अंतिम बेसिक सैलरी का 50% पेंशन के रूप में दिया जाता था ,जैसे मान मान लीजिए कि आप किसी सरकारी विभाग में नौकरी करते है और अंतिम सैलरी ₹ 20  हज़ार मिलनी है तो ओपीएस के तहत सरकार आपको आपकी अंतिम सैलरी का ₹10,000 हर महीने पेंशन के रूप में देगी जिसमें साल में दो बार महंगाई भत्ता यानी डीए वृद्धि के रूप में शामिल होगा। यानी ओपीएस के अंतर्गत आने वाले सरकारी कर्मियों की पेंशन इन बात पर निर्भर करती थी कि कितने साल नौकरी की और आखिरी वेतन क्या था।श्

2) ओपीएस में सरकरी कर्मियों को अपनी पेंशन के लिए किसी भी तरह का योगदान नहीं करना पड़ता था और सरकार की तरफ से भी किसी निधि का निर्माण नहीं किया गया था क्योंकि पेंशन का भार वर्तमान करदाताओं पर डाल दिया जाता था जो एक तरह से  cross generation subsidy कि तरह था।

3) ओपीएस एक तरह से defined benefit scheme की तरह थी यानी सरकारी कर्मी के लिए यह गणना करना आसान होता था कि रिटायर होने के समय उसे कितनी मासिक पेंशन मिलेगी।

4) ओपीएस के तहत आने वाले सरकारी कर्मियों को जनरल पेंशन फंड का भी लाभ मिलता था, जिसके तहत सरकारी कर्मचारी अपने वेतन का कुछ भाग इसमें जमा कर सकते थे जिसे रिटायरमेंट के बाद कुल जमा राशि सरकारी कर्मी को वापस कर दी जाती थी।

 वर्ष 2004 में केंद्र की अटल बिहारी वाजपेई सरकार ने  1 जनवरी 2004 से National Pension System यानी एनपीएस को लागू किया जिसे नई पेंशन प्रणाली भी कहा गया। इसमें 1 जनवरी 2004 के बाद सर यूकारी सेवाओं में शामिल होने वाले कर्मचारियों को इस नवीन पेंशन व्यवस्था के अंतर्गत लाया गया।

एनपीएस एक प्रकार से सह भागीदारी वाली Defined contribution scheme है जिसमें कर्मचारी को अपने वेतन से 10% और सरकार को 10% योगदान करना था आगे चलकर सरकार ने अपने योगदान की सीमा 10% से बढ़कर 14% प्रतिशत कर दी।

3)  एनपीएस खाते में जमा राशि का इस्तेमाल सरकार द्वारा कैपिटल मार्केट में निवेश के लिए  किया जाता है जिसमें Equity, Corporate Bond, Government Securities and Alternative Investment जिसे ECGA भी कहा जाता है.पू इसप्रकार से आप निवेशक भी बन जाते हैं इसलिए आपको Active choice के तहत अधिकार होता है की सरकार आपके द्वारा जमा राशि का इस्तेमाल किन-किन पूंजी साधनों में कर सकती है लेकिन विभिन्न साधनों में निवेश की सीमा भी निश्चित की गई है।  अगर आप एक्टिव चॉइस का विकल्प नहीं सुनते हैं तो सीधे-सीधे ऑटो चॉइस का विकल्प मिल जाता है जिसमें Aggressive Life Cycle Fund  जिसमें सरकार द्वारा एक के विभिन्न साधनों में विभिन्न आयु सीमा के अनुसार अलग-अलग अनुपात में किया जाता है।

4)  एनपीएस खातों में जमा राशि का नियंत्रण वर्ष 2013 में स्थापित PFRDA यानी पेंशन फंड रेगुलेटरी डेवलपमेंट अथॉरिटी जो कि वित्त मंत्रालय के अंतर्गत काम करती है उसके द्वारा किया जाता है।

5) एनपीएस में जमा राशि का इस्तेमाल ECGA (equity , corporate bond, government securities and alternative investment) में किया जाता है इसलिए इसे Market Linked Pension Scheme भी कहते है , इससे प्राप्त होने वाला Return और Dividend एनपीएस लाभार्थी के अकाउंट में जमा हो जाता है।

6) एनपीएस का लाभ सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के साथ-साथ स्व रोजगार करने वाला व्यक्ति भी उठा सकता है जिसे वर्ष 2009 में केंद्र सरकार ने सभी के लिए खोल दिया था।

7) रिटायरमेंट के बाद अगर एनपीएस से मिलने वाली भुगतान राशि की बात करें तो आपके एनपीएस खातों में जमा राशि में से 60% राशि आपको एकमुस्त भुगतान के रूप में मिलती है जो पूरी तरह से कर मुक्त होती है और बाकी 40% राशि Annuity के रूप में मिलती है जिसे हर महीने पेंशन के रूप में आपको भुगतान किया जाता है जिसमें सरकार के द्वारा लगाए जाने वाला टैक्स भी शामिल है।

8) एनपीएस में योगदान करने पर आप अपने वेतन (बेसिक+डीए) का 10% SEC 80CCD(1) और एक लाख रूपए की सीमा तक SEC 80 CCE के तहत रियायत मिलती है.

एनपीएस को लेकर कर्मचारियों के विरोध का कारण

  1. एनपीएस में कर्मचारियों को पेंशन का लाभ पेंशन निधि में योगदान करने के बाद ही मिल पाता है जबकि इसके पहले किसी बिना किसी अतिरिक्त योगदान के कर्मचारियों को सरकार से पेंशन का लाभ मिल जाता था।
  2. मार्केट लिंक्ड पेंशन स्कीम होने के कारण एनपीएस के तहत आने वाले कर्मचारियों अपनी पेंशन की सुरक्षा को लेकर शंका बनी रहती है क्योंकि जो पैसे आपके एनपीएस खातों में जमा होते हैं सरकार उसका इस्तेमाल निवेश बाजार में करती है जिससे होने वाला नुकसान या फायदे का असर सीधे-सीधे आपके एनपीएस खातों पर ही पड़ता है।
  3. एनपीएस में जो पेंशन Annuity के रूप में मासिक रूप से तय की जाती है उसमें ओपीएस की तरह डीए शामिल नहीं किया जाता है.

क्यों बंद करनी पड़ी पुरानी पेंशन व्यवस्था

  • ओपीएस  की व्यवस्था तब सही मानी जा सकती है जब करदाताओं की संख्या अधिक हो और 60 से ऊपर वालों की आयु संख्या वाले काम हो.
  • भारत में वर्तमान समय में एक बड़ी युवा आबादी होने के बावजूद वृद्ध होती आबादी (aging population) की संख्या भी तेजी से बढ़ती जा रही है जिसका कारण है जन्म दर (birth rate) में कमी और बढ़ती जीवन प्रत्याशा दर (life expectancy rate) जिसके कारण आने वाले समय में वित्तीय संसाधनों का लाभ लेने वाले ज्यादा होंगे और वित्तीय संसाधनों में योगदान देने वाले कम।
  • पेंशन बिल अर्थव्यवस्था पर एक प्रकार से आर्थिक बोझ की तरह है.अगर हम 1990-91 से 2020-21  केंद्र सरकार का पेंशन बिल जहां 3272 करोड रुपए था ,वही 3 दशकों में 58% बढ़कर 190886 करोड़ रुपए से भी अधिक हो गया है वही राज्य सरकार का पेंशन बिल जहां 3131 करोड रुपए था, वहीं 3 दशकों में यह 125 % कि दर से बढ़कर 386000 करोड़ रुपए से भी अधिक हो गया है।
  • Comptroller and Auditor General of India (CAG) के अनुसार कई राज्य सरकारों का पेंशन बिल उनके वेतन बिल से अधिक हो गया है जिसमें गुजरात पश्चिम बंगाल उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य महत्वपूर्ण हैं।
  • सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019-20 में केंद्र सरकार के committed Expenditure में 1.39 लाख करोड रुपए जहां वेतन बिल था ,वही 1.83 लाख करोड रुपए अकेले पेंशन बिल ही था।

पुरानी पेंशन व्यवस्था का समर्थन करने के पीछे राजनीतिक दलों और गैर बीजेपी शासित राज्यों के उद्देश्य

1) अगर राजनीतिक लाभ की दृष्टि से देखें तो वर्तमान समय में देश में वर्तमान समय में केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों की कुल संख्या करीब 90 (सैन्य कर्मियों और पश्चिम बंगाल के सरकारी कर्मियों को छोड़कर) लाख से अधिक मानी जाती है और अगर इन कर्मियों से जुड़े आश्रितों और परिवार के सदस्यों को देखा जाए तो यह संख्या करीब 6 करोड़ से अधिक चली जाती है जो की एक प्रकार से एक बड़े वोट बैंक का आधार भी बनती है इसलिए समय-समय पर विभिन्न राजनीतिक दल इस मुद्दे को हवा देते रहते हैं.

2) आर्थिक तौर पर देखे तो ओपीएस का प्रभाव राज्य सरकारों पर तुरंत ना पड़कर भविष्य में ही पड़ेगा क्योंकि अगर कोई भी राज्य सरकार इसको लागू करती है तो अपने यहां उसको लागू होने के समय से शामिल होने वाले कर्मचारियों को ही पेंशन का लाभ देने का भार रहेगा, अगर सभी कर्मचारियों की Average Retirement Age लागू होने से 25 साल के बाद मान लिया जाए तो करीब करीब ढाई दशक बाद ही पेंशन देने का भार राज्य सरकारों पर आएगा तब तक के लिए राज्य सरकारों को भी पेंशन निधि के निर्माण का समय मिल जाएगा।

क्या मौजूद कर्मचारी भी उठा पाएंगे पुरानी पेंशन व्यवस्था का लाभ

यह काफी एक जटिल प्रक्रिया होगी क्योंकि मौजूदा सरकारी कर्मचारी जो एनपीएस में आते हैं ,उनको ओपीएस लाने के लिए राज्य सरकारों को एक निधि के निर्माण की आवश्यकता होगी क्योंकि यह निधि पहले से ही एनपीएस के रूप में बनी हुई है, इसलिए राज्य सरकारों के पास एक विकल्प हो सकता है लेकिन एनपीएस निधि को ओपीएस पेंशन निधि में बदलने की प्रक्रिया काफी जटिल होगी ,क्योंकि इसमें कर्मचारी और सरकार दोनों की भागीदारी होती है. जिसमें कुल जमा राशि पीएफआरडीए  द्वारा बाजारों में निवेश किया जाता है जिसके कारण इस फंड में जमा पैसे एक जगह स्थिर रूप से रखे नहीं रहते, बल्कि यह बाजार में निवेश के रुप में घूमते रहते हैं और इसमें भी पर एक प्रकार से खाताधारक का ही अधिकार होता है इसलिए इस मामले में अंतिम कदम खाताधारक की स्वीकृति से ही उठाया जा सकता है।.

                         
क्या है ओपीएस को लेकर आरबीआई और आर्थिक विशेषज्ञों की राय

1) आरबीआई के द्वारा जारी स्टेट फाइनेंस एंड रिस्क एनालिसिस की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब हरियाणा उत्तर प्रदेश केरल और पश्चिम बंगाल अपनी आई का 35% पेंशन ब्याज की भुगतान और प्रशासनिक खर्चों पर कर देते हैं जिसके कारण राज्य सरकार के पास विकास परियोजनाओं और पुंज पूंजीगत खर्चों के लिए राज्य सरकारों के पास अतिरिक्त धन नहीं हो पाता है

2) वित्त आयोग की रिपोर्ट के अनुसार अगर सारे राज्यों को मान लिया जाए तो उनका own tax revenue और pension bill  payment का अनुपात 25– 26 % तक चला जाता है और तो और कुछ राज्यों में तो यह आंकड़ा 58% से ज्यादा है.

3) सीएजी और वित्त आयोग की रिपोर्ट के अनुसार राज्य सरकारों को ओपीएस लागू करने के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाना पड़ेंगे नहीं तो योजना के  संचालन के लिए बड़े पैमाने पर कर्ज लेना पड़ेगा.

4) आरबीआई के पूर्व गवर्नर डॉ. रघुराम राजन ने भी राज्यों द्वारा तेजी से लागू किया जा रहे ओपीएस पर चिंता जाहिर करते हुए आने वाले भविष्य के लिए बड़ा जोखिम बताया है, क्योंकि आने वाले समय में सरकारों को वास्तविक आय (real income )बढ़ानी पड़ेगी जिसके कारण पेंशन जिसमें डीए रियल इनकम बढ़ाने के रूप में शामिल होता है राज्यों पर एक बड़ा भार डालेगा।

आखिर क्या हो सकता है एक सामान्य से पूर्ण रास्ता

अगर देश के आर्थिक हालातो और कर्मचारी हितों को ध्यान में रखकर अगर कोई रास्ता निकाला जाए तो हाइब्रिड पेंशन व्यवस्था एक बेहतरीन विकल्प बन सकती है जिसमें ओपीएस की तरह defined benefit और एनपीएस की तरह defined contribution दोनों शामिल हो जिसके कारण कर्मचारी हितों और आर्थिक हितों दोनों की पूर्ति की जा सकती है, कई देशों में इसी तरह की पेंशन प्रणाली की व्यवस्था है इसी को देखते हुए आंध्र प्रदेश की वाईएस जगनमोहन रेड्डी सरकार ने अपने यहां Gauranteed Pension System (GPS) नाम से एक नई प्रकार की हाइब्रिड पेंशन प्रणाली की शुरुआत की जो की एनपीएस और ऑप्स दोनों का एक हाइब्रिड रूप है , राज्य सरकार ने 27 सितंबर को आंध्र प्रदेश गारंटीड पेंशन सिस्टम बिल – 2023 को विधानसभा में पेश किया जिसे बहुमत के साथ पास भी कर दिया गया है।

 क्या वजह थी राज्य सरकार द्वारा जीपीएस प्रणाली शुरू करने की

1) राज्य सरकार को यह अंदेशा था कि अगर सरकार द्वारा अगर OPS पेंशन प्रणाली को लागू किया जाता है तो यह एक तरह से राजकोषीय तौर पर इसे चालू रखना मुश्किल होगा (fiscally unsustainable) और इसके कारण कई आर्थिक विशेषज्ञों ने राज्य सरकार पर वर्ष 2050 तक राजकोषीय घाटा ( fiscal deficit ) और 8% तक बढ़ने का अनुमान लगाया था।

2) राज्य सरकार को जीपीएस पेंशन प्रणाली के अंतर्गत पेंशन देने के लिए अलग से किसी पेंशन निधि के निर्माण की आवश्यकता नहीं होगी राज्य सरकार एनपीएस खातों का ही इस्तेमाल करके अपने कर्मचारियों को उनके रिटायरमेंट के समय पेंशन दे सकती है.
3) एनपीएस खातों का ही  इस्तेमाल करने के कारण राज्य सरकार को मौजूदा और नए राज्य कर्मियों दोनों को पेंशन की सुविधा देना आसान होगा।

4) आंध्र प्रदेश सरकार ऐसा करके अपने आर्थिक और कर्मचारी हितों को एक साथ साधना चाह रही है क्योंकि राज्य में अगले साल चुनाव होने वाले हैं और राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी तेलुगु देसम पार्टी द्वारा इस मुद्दे को हवा दिया जा रहा है.

(लेखक आशुतोष ओझा, आईआईएमसी से पीजी डिप्लोमा कर अभी इंडिया टीवी में ट्रेनी एडिटर के पद पर कार्यरत हैं।)

 

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