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Gold ETF बेहतर या सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड, निवेश से पहले ये जानकारी आएगी बहुत काम

Gold ETF बेहतर या सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड, निवेश से पहले ये जानकारी आएगी बहुत काम Gold ETF is better or sovereign gold bond know very useful information before investing

Edited By: Alok Kumar @alocksone
Published on: August 18, 2022 16:46 IST
Gold ETF vs sovereign gold bond - India TV Paisa
Photo:INDIA TV Gold ETF vs sovereign gold bond

Gold ETF और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड को लेकर निवेशकों में हमेशा कनफ्यूजन की स्थिति होती है। एक बार फिर से RBI सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम की दूसरी सीरीज 22 अगस्त से शुरू करने जा रहा है। इसमें निवेशक 26 अगस्त तक निवेश कर पाएंगे। अब सवाल उठता है कि गोल्ड ईटीएफ में निवेश करना बेहतर होगा या सॉवरेन बॉन्ड? अगर आपके मन में भी यह सवाल हैं तो हम उसका पूरा समाधान यहां दे रहे हैं।

दोनों उत्पाद में निवेश की सीमा

सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड और गोल्ड ईटीएफ, दोनो में निवेशकों प्रति 1 ग्राम गोल्ड की कीमत से निवेश की शुरुआत कर सकते हैं। वहीं, गोल्ड ईटीएफ में अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है। यानी आप अपनी मर्जी के अनुसार निवेश कर सकते हैं, जबकि सॉवरेन बॉन्ड में एक व्यक्ति एक वित्त वर्ष में अधिकतम 4 किलोग्राम सोने की कीमत के बराबर ही निवेश कर सकता है।

किसे खरीदना-बेचना आसान

गोल्ड ईटीएफ को आप स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) पर कैश ट्रेडिंग के लिए निर्धारित समय के दौरान कभी भी खरीद या बेच सकते हैं। लेकिन सॉवरे गोल्ड बॉन्ड सरकार की तरफ से आरबीआई समय-समय पर जारी करती है। ऐसे में जब चाहें इसे बेच नहीं सकते हैं। सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की मैच्योरिटी पीरियड आठ वर्ष की है। लेकिन पांचवें, छठे और सातवें वर्ष में बॉन्ड को बेचने का विकल्प यानी एग्जिट ऑप्शन है। वहीं, डीमैट फॉर्म में इस बॉन्ड को लेने वाले इसे स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेडिंग आवर्स के दौरान कभी भी बेच सकते हैं। ऐसे में अगर आप वैसे निवेशक हैं जो कभी भी अपना पैसा निकालने में यकीन रखते हैं तो आपके लिए गोल्ड ईटीएफ बेहतर होगा।

 डीमैट अकाउंट की जरूरत?

गोल्ड ईटीएफ के लिए डीमैट अकाउंट होना जरूरी है। वहीं, साॅवरेन गोल्ड बॉन्ड के लिए डीमैट अकाउंट होना जरूरी नहीं है। हां, अगर आप सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की एक्सचेंज पर ट्रेडिंग करना चाहते हैं तो आपको बॉन्ड को डीमैट फॉर्म में लेना होगा, जिसके लिए डीमैट अकाउंट का होना जरूरी है। सबस्क्रिप्शन के दौरान ही आपको सॉवरिन बॉन्ड फिजिकल फॉर्म (सर्टिफिकेट) के अतिरिक्त डीमैट फार्म में भी लेने का विकल्प मिलता है।

निवेश पर किसमें ज्यादा जोखिम

साॅवरेन गोल्ड बॉन्ड सरकार की तरफ से आरबीआई जारी करती है। इसलिए इसमें डिफॉल्ट का कोई जोखिम नहीं है। वहीं, गोल्ड ईटीएफ म्यूचुअल फंड हाउस कंपनियों द्वारा जारी किया जाता है। ऐसे में इसमें डिफॉल्ट का खतरा होता है लेकिन वह काफी कम होता है।

किस पर कितना ब्याज

साॅवरेन बॉन्ड पर 2.5 फीसदी की दर से सालाना ब्याज मिलता है। यह हर 6 महीने में देय होता है। अंतिम ब्याज मैच्योरिटी पर मूलधन के साथ दिया जाता है। ब्याज की रकम टैक्सेबल होती है। वहीं, गोल्ड ईटीएफ पर आपको कुछ भी ब्याज नहीं मिलता। यानी आप ब्याज से इनकम चाहते हैं और सोने की बढ़ी कीमत का लाभ तो सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड एक बेहतर उत्पाद है।

ब्रोकरेज चार्ज

गोल्ड ईटीएफ मैनेज करने के एवज में म्यूचुअल फंड हाउस निवेशक से टोटल एक्सपेंस रेश्यो (टीईआर) चार्ज वसूलते हैं। जब भी आप यूनिट खरीदते या बेचते हो ब्रोकर को ब्रोकरेज चार्ज देना होता है। जबकि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में इस तरह का कोई अतिरिक्त एक्सपेंस नहीं है। हां, अगर आप सॉवरिन बॉन्ड को एक्सचेंज पर खरीदोगे या बेचोगे तो आपको ब्रोकरेज चार्ज देना होगा। जरूरत पड़ने पर सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड के एवज में बैंक से लोन भी लिया जा सकता है। वहीं, गोल्ड ईटीएफ पर यह सुविधा नहीं है।

टैक्स का बोझ

अगर सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को मैच्योरिटी के बाद रिडीम करते हैं तो आपको रिटर्न पर कोई टैक्स नहीं देना होगा। लेकिन गोल्ड ईटीएफ पर इस तरह का टैक्स बेनिफिट नहीं है। गोल्ड ईटीएफ पर टैक्स डेट फंड की तरह लगता है। अगर तरलता की बात करें तो गोल्ड ईटीएफ को स्टॉक एक्सचेंज पर कभी भी खरीदा बेचा जा सकता है। मतलब लिक्विडिटी की समस्या यहां नहीं है। लेकिन सॉवरेन बॉन्ड को कम से कम 5 साल के बाद ही रिडीम किया जा सकता है। लेकिन मैच्योरिटी से पहले रिडीम करने पर टैक्स बेनिफिट से हाथ धोना पड़ेगा।

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