बैंक में सेविंग अकाउंट (Savings Account) कोई भी ओपन करा सकता है। लेकिन जो लोग नौकरी करते हैं, उनका किसी खास बैंक में सैलरी अकाउंट (Salary Account) होता है। आप सैलरी अकाउंट को लेकर सोचते होंगे कि आखिर सैलरी अकाउंट और सेविंग अकाउंट में फर्क (Difference between Salary Account and Savings Account) क्या है। सैलरी अकाउंट आमतौर पर किसी कंपनी या कॉर्पोरेशन के रिक्वेस्ट पर बैंक खोलते हैं। उस कंपनी के सभी कर्मचारियों को सैलरी अकाउंट मिलता है जिसे उन्हें खुद ऑपरेट करना होता है। जब कंपनी को अपने कर्मचारियों को सैलरी देने का समय आता है, तो बैंक कंपनी के अकाउंट से पैसा लेता है और फिर उसे डिस्ट्रीब्यूट करता है।
अकाउंट का मकसद
एक सैलरी अकाउंट (Salary Account) आमतौर पर नियोक्ता की तरफ से कर्मचारी को सैलरी देने के मकसद से खोला जाता है। जबकि एक सेविंग अकाउंट (Savings Account) बैंक में पैसा रखने या बचत के मकसद से पैसा जमा करने के लिए खोला जाता है। एचडीएफसी बैंक की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, सेविंग और सैलरी अकाउंट दोनों को इंस्टा अकाउंट के रूप में खोला जा सकता है।
मिनिमम बैलेंस की शर्त
सैलरी अकाउंट (Salary Account) में आमतौर पर मिनिमम बैलेंस राशि रखने की जरूरत नहीं पड़ती है, जबकि सेविंग अकाउंट (Savings Account) में बैंकों के लिए जरूरी है कि कस्टमर अपने सेविंग अकाउंट में एक निश्चित राशि का मिनिमम बैलेंस बनाए रखें। अगर आप इंस्टा सेविंग अकाउंट खोलते हैं, तो आप एक साल तक मिनिमम बैलेंस अमाउंट की जरूरत के बिना भी सेविंग अकाउंट का इस्तेमाल कर सकते हैं।
तब सैलरी अकाउंट बदल जाता है सेविंग अकाउंट में
अगर आपके सैलरी अकाउंट (Salary Account) में तीन महीने तक सैलरी क्रेडिट नहीं होती है तो आपके इस अकाउंट को फिर सेविंग अकाउंट (Savings Account) में बदल दिया जाता है और फिर इसमें आपको मिनिमम बैलेंस रखने की भी जरूरत पड़ती है। इसके अलावा, अगर आपका बैंक आपके सेविंग अकाउंट को सैलरी अकाउंट में बदलने का परमिशन देता है तो आप ऐसा कर सकते हैं। हालांकि यह तभी होगा जब आप आप अपनी नौकरी बदलते हैं और आपका नया नियोक्ता अपने कर्मचारियों के सैलरी अकाउंट के लिए उसी बैंक के साथ करार करता है। बात ब्याज दर की करें तो बैंक सैलरी और सेविंग अकाउंट दोनों पर ब्याज देते हैं। ब्याज दरें आपके अकाउंट के प्रकार पर निर्भर करती हैं।