नई दिल्ली। शेयर बाजार लगातार नई ऊंचाइयों को छू रहा है, लेकिन बाजार की इस तेजी में कई मिडकैप और स्मॉलकैप म्यूचुअल फंड्स ऐसे है जो निगेटिव रिटर्न दे रहे है। खासकर रिलायंस का मिड-स्मॉलकैप फंड, L&T मिडकैप फंड, DSP बीआर स्मॉल-मिडकैप और सुंदरम सिलेक्ट मिडकैप ने पिछले एक महीने में 3 फीसदी का निगेटिव रिटर्न दिया है। ऐसे में सवाल उठता है, कि अब घरेलू निवेशकों को क्या करना चाहिए। इस पर एक्सपर्ट्स का कहना है कि हाल में आई गिरावट से घबराना चाहिए। GST लागू होने के बाद और अच्छे मानसून के चलते मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में फिर से तेजी लौटेगी। यह भी पढ़े: देश के अमीर भी अब लगा रहे म्युचूअल फंड में पैसा, आप भी छोटी रकम पर ऐसे पाएं मोटा मुनाफा
अब क्या करें निवेशक
वाइजइन्वेस्ट एडवाइजर के हेमंत रुस्तगी का कहना है कि मार्केट में उतार-चढ़ाव के दौरान निवेशको को घबराने की जरुरत नहीं है। इक्विटी में लंबी अवधि के लिए निवेश करें। क्योंकि लंबी अवधि के निवेश पर उतार-चढ़ाव का असर कम होता है। छोटी-मध्यम अवधि निवेश पर उतार-चढ़ाव का असर ज्यादा है जिसके चलते बाजार को नहीं बल्कि लक्ष्य को ध्यान में रखकर निवेश करने की सलाह होगी। बाजार की इस तेजी में मौजूदा निवेशकों को निवेश पोर्टफोलियो को बैलेंस रखना जरूरी है। मिड और स्मॉलकैप में ज्यादा निवेश है तो पोर्टफोलियो को बैलेंस करें। मिड और स्मॉलकैप की जगह कुछ लार्जकैप और मल्टीकैप फंड्स को जोड़ सकते है। जिन निवेशकों का छोटी अवधि का नजरिया है उन्हें फंड के प्रदर्शन के आधार पर फंड ना चुनें। निवेश से पहले फंड के साथ जुड़े जोखिम को समझना बेहद जरुरी है।
ऐसे में आप भी अपना सकते है ये स्ट्रैटजी
1.एक फंड से दूसरे फंड में शिफ्ट होना जरूरी
2.अंडरपरफॉर्मर को पहचाने का तरीका
इन्वेस्टर्स की सबसे बड़ी मुश्किल होती है, पोर्टफोलियों में अंडरपरफॉर्मर को पहचाना। इसकी पहचान के लिए एक्सपर्ट कहते हैंं कि हर क्वार्टर में इन्वेस्टर्स को रिटर्न चेक करने चाहिए। अगर किसी फंड का रिटर्न बेंचमार्क इंडेक्स के मुकाबले अच्छा रिटर्न दे रहा है और अगले दो क्वार्टर में भी इसकी परफॉर्मेंस इंडेक्स के बराबर ही रहने पर इन्वेस्टर्स को निवेशित रहना चाहिए। वहीं, अगर फंड्स अंडरपरफॉर्म करता है, तब फंड्स से बाहर निकलना सही होगा।#ModiGoverment3Saal: मोदी के कार्यकाल में निवेशक हुए मालामाल, ऐसे 5 हजार रुपए लगाकर कमाए 3 लाख
3.समय-समय पर फंड्स निकालना सही रणनीति
मान लीजिए इन निगेटिव फंड्स में आपने एक लाख रुपया लगाया होता तो पांच साल में आपकी रकम करीब 1.20 लाख रुपए हो जाती, जो कि एक औसत रिटर्न है। इस पर बजाज कैपिटल के सीईओ अनिल चोपड़ा कहते हैंं कि समय-समय पर फंड्स से रकम निकालनी चाहिए।
ऐसे चुने अच्छे फंडस
बाजार में हजारों म्यूचुअल फंड की स्कीम चल रही हैं। सभी दावा करती हैं कि वेे सबसे अलग हैं। यही कारण होता है कि निवेशक बिना सोचे समझे म्यूचुअल फंड का चयन कर लेता है, जोकि आगे चलकर समस्या बन जाता है। हम आपकी इस समस्या का हल यहां पर करेंगे। आप सिर्फ कुछ नियमों का पालन कर अच्छे म्यूचुअल फंड का चुनाव कर निवेश कर सकते हैं। म्यूचुअल फंड के चयन में चार बातों को ध्यान में रखना होता है- परफॉर्मेंस, रिस्क, मैनेजमेंट और कॉस्ट।#ModiGoverment3Saal: सोने से रूठी ‘लक्ष्मी’, जुलाई तक हो सकता है 1100 रुपए सस्ता
1.परफॉर्मेंस
जानकारों का कहना है कि आप सेब और संतरे की तुलना नहीं कर सकते, भले ही दोनों फल हैं। ठीक इसी प्रकार दो म्यूचुअल फंड की तुलना करना आसान नहीं होता। आप इक्विटी फंड की तुलना डेब्ट फंड से या इनकम फंड की ग्रोथ फंड से नहीं कर सकते। लिहाजा किसी भी म्यूचुअल फंड की तुलना करने से पहले उनके प्रारूप को ध्यान से देख लें। समान प्रारूप वाले फंड की ही तुलना की जा सकती है। अलग-अलग कंपनियों के समान प्रारूप के म्यूचुअल फंड की तुलना करते वक्त बाजार में उनकी परफॉर्मेंस देखें। जो बाजार में अच्छा चल रहा हो, उसी को चुने। लेकिन हां यहां भी आंख मूंद कर फैसला न करें। इसके रिस्क फैक्टर को ध्यान से पढ़ें।
2.रिस्क
लोगों के बीच यह धारणा है कि म्यूचुअल फंड एक ऐसा निवेश होता है, जिसमें जितना रिस्क लेंगे, उतना ज्यादा रिटर्न (धन) आपको मिलेगा। यह धारणा बिलकुल गलत है। कोई भी म्यूचुअल फंड इस स्ट्रैटजी पर काम नहीं करता है। बेहतर होगा यदि आप कम रिस्क वाले ही म्यूचुअल फंड लें, ताकि धीरे-धीरे अच्छी मात्रा में रिटर्न मिल सके। इसका आंकलन करने के लिए समान श्रेणी के दो म्यूचुअल फंड की तुलना करें वो भी उस समय में जब बाजार में तेजी से उछाल आया हो या गिरावट आयी हो। उससे आप आसानी से दोनों में बेहतर चुन सकते हैं। दोनों के रिटर्न की तुलना करके आप म्यूचुअल फंड को चुन सकते हैं।एक साल में बैंकिंग म्यूचुअल फंड्स में मिले 60% के बड़े रिटर्न, आपके पास भी है मौका
3.मैनेजमेंट
म्यूचुअल फंड बाजार जैसे- शॉर्ट टर्म, इनकम फंड, इंडेक्स फंड, आदि। इनमें कई ऐसे होते हैं जो मैनेजर पर निर्भर नहीं करते। सभी के परिणाम लगभग समान होते हैं। हां इक्विटी फंड में फंड मैनेजमेंट काफी महत्वपूर्ण होता है। आपकी जरा सी चूक आपको घाटा पहुंचा सकती है। इस फंड में तभी पैसा लगाये, जब आप इसके अच्छे जानकार हों। रिस्क लेने से पैसा डूब सकता है।ऑप्टिमा मनी मैनेजर के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज मठपाल का कहना है कि फंड मैनेजर निवेश की रणनीति तय करता है जो सेक्टर और शेयर का चुनाव करते है। निवेश से पहले फंड मैनेजर का प्रदर्शन देखना चाहिए। हर एक फंड मैनेजर का निवेश का तरीका अलग होता है। मैनेजर बदलने के बाद जल्दबाजी में फंड से निकलना ठीक नहीं है। म्यूचुअल फंड्स के इन फेवरेट शेयरों ने दिया 900% तक का रिटर्न, आपके पास भी है मौका
4.कॉस्ट
अंतिम तथ्य होता है कॉस्ट यानी कीमत। इस बात को हमेशा ध्यान रखें कि म्यूचुअल फंड कोई नॉन प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन या चैरिटी नहीं है। हर कंपनी अपना नफा-नुकसान सोच कर आगे बढ़ती है। म्यूचुअल फंड में निवेश करते वक्त आपको तमाम तरह के हिडेन चार्ज होते हैं। उनके बारे में पता लगाने के लिए फंड की टर्म एंड कंडीशन जरूर पढ़ें। म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाला मूल धन ब्याज के साथ एक निश्चित समय-अंतराल पर बढ़ता या घटता है। उस समय अंतराल का और दरों का हमेशा हिसाब अपनी डायरी में रखें।