नई दिल्ली। बच्चों को पैसों का महत्व शुरू से ही समझाना चाहिए ताकि अपने स्कूल या कॉलेज जाने के दिनों में वे अपने जेब खर्च का बेहतर प्रबंधन कर अपने छोटे-मोटे शौक खुद से पूरी कर सकें और जब वे बड़े हों तो उन्हें बचत और निवेश संबंधी निर्णय लेने में मदद मिल सके। बच्चों को यह सब बातें विस्तार से बताने की कोई जरुरत नहीं होती लेकिन उनमें इस तरह की भावना तो जागृत की ही जानी चाहिए ताकि वे कम से कम पैसे के महत्व को समझ सकें।
एक स्कूल जाते बच्चे से जब पूछा कि ‘बेटे पैसे कौन बनाता है’ तो उसका जबाव था कि पैसे पापा बनाते हैं। वास्तव में बच्चों की नजर में मम्मी-पापा ही टक्साल होते हैं जो पैसे बनाते हैँ। उन्हें इस बात की जानकारी नहीं होती कि मां-बाप के पास भी पैसे सीमित ही होते हैं और उन्हीं पैसों में से वे उन्हें जेब खर्च दिया करते हैं। बच्चे समझते हैं कि पैसे तो घर में उपलब्ध खाद्य वस्तुओं की तरह है। उन्हें यह समझाया जाना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति जितना काम करता है उसे उस हिसाब से पैसे मिलते हैं। बच्चों को वेतन के बारे में बताया जाना चाहिए। इसके लिए उन्हें मासिक जेब खर्च दें और उनसे साप्ताहिक तौर पर लेखा-जोखा लें कि उन्होंने कहां-कहां खर्चे किए। उन्हें सही एवं अनावश्यक खर्चे में भेद करना सिखाएं। उन्हें इस लायक बना दें कि वे अपना जेब खर्च महीने के खत्म होने से पहले ही खत्म न कर लें।
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ऐसा भी नहीं है कि आजकल के बच्चे बिल्कुल ही नासमझ होते हैँ। उन्हें बचत की महत्ता समझाइए। उन्हें यह बताइए कि आज शुरू की गई बचत से भविष्य में वे अपने उस शौक को पूरा कर सकते हैं जिसके लिए आज उसके पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं। ऐसी सलाह देते वक्त उनके साथ एक पिता की तरह नहीं बल्कि दोस्त की तरह पेश आएं।
बच्चों को इस तरह की शिक्षा देने के लिए लोग भांति-भांति के उपाय अपनाते हैँ। कोई अपने बच्चों को महीने की शुरुआत में जेब खर्च के पैसे देकर उन्हें जिम्मेदारी का एहसास कराते हैं तो कुछ काम के बदले पैसे देते हैं। कुछ लोग बच्चों को यह एहसास कराने के लिए कि पैसे मेहनत से कमाए जाते हैं उनसे अपनी ही गाड़ी की सफाई आदि जैसे काम करवा कर उन्हें मेहनताना के तौर पर पैसे देते हैं जिसका उपयोग वे अपने जेब खर्च के तौर पर करते हैं।
बच्चों के सामने वित्तीय मसलों पर बात करें
ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों के सामने पैसों की बातचीत नहीं करते हैं। इसकी वजह होती है जानकारी या समय का अभाव। लेकिन अधिकांश मामलों में मां-बाप वित्तीय मसलों पर बच्चों के सामने इसलिए भी बात नहीं करते क्योंकि उनकी उम्र कम होती है। उनमें समझदारी कम होती है। ऐसी धारणा गलत है। ऐसे ही बच्चे बड़े होकर वित्तीय प्रबंधन के महत्व को नहीं समझ पाते हैं। प्रत्येक मां-बाप को यह याद रखना चाहिए कि बच्चों से इस प्रकार की बातें छुपाकर वे उनका नुकसान ही कर रहे हैं।
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बच्चों को अपना उदाहरण देकर समझाएं पैसों का महत्व
बच्चों पर अपने मां-बाप की आदतों का प्रभाव कुछ ज्यादा ही पड़ता है। अगर आप समझदारी से खर्च या बचत नहीं कर रहे तो समझ लीजिए आपके बच्चे भी बड़े होकर आपका ही अनुकरण करने वाले हैं। आपको अपने बच्चों का आदर्श बनने की जरूरत है। इसके लिए आप चाहें तो पुस्तकों या वित्तीय सलाहकारों की मदद ले सकते हैं।
बच्चों को जिम्मेदारी का एहसास कराएं
बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो परिस्थितियां बचपन वाली नहीं रह जाती हैं। बड़े होने पर उन्हें जिन्दगी जीने के लिए कमाई करनी होती है एवं अपने खर्चों का प्रबंधन करना होता है। ऐसी महत्वपूर्ण बातों की आदत बच्चों में शुरू से ही डालनी चाहिए।
इसके लिए बच्चों का साप्ताहिक पॉकेट खर्च उनकी जरूरतों के हिसाब से तय कर दें। अगर बच्चे छोटे हैं तो सप्ताहांत में उन्हें अपने साथ घुमाने ले जाएं एवं उन्हें अपने साथ खर्च करने का मौका दें। इससे बच्चों में सीमित आमदनी में अपना खर्च चलाने की समझ बढ़ेगी।
समझदारी से खर्च करना सिखाएं
इच्छाएं अनंत होती हैं और सारी इच्छाएं पूर्ण हों यह आवश्यक नहीं है। खर्चे का अंदाजा पहले लगाया जाना चाहिए वह भी जरूरतों को ध्यान में रखकर। बच्चों को यह सब बातें सिखाएं। बच्चों से अपना मासिक बजट बनाने को कहें। इस कार्य में आपको उनकी मदद करनी होगी। शुरुआत में वैसी वस्तुओं की सूची तैयार करें जिसकी खरीदारी जरूरी है। उसके बाद उनके साथ मिलकर विचार करें कि आप उनकी कौन-कौन सी ईच्छा पूरी करने की सामर्थ्य रखते हैं।
परिवारिक बजट में बच्चों के पॉकेट खर्च को भी शामिल करें। इन सबसे उन्हें जिम्मेदारी का बोध होगा साथ ही उन्हें लगेगा कि परिवार में उनका भी कुछ महत्व है।
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कर्ज न ही लें तो उत्तम है
दिए गए पॉकेट खर्च से ही बच्चे अपना सप्ताह या महीने भर का खर्च चलाएं इस बात को तरजीह दें। जब कभी उनका पॉकेट खर्च समय के पहले खत्म हो जाए तो उन्हें समझाएं कि समय से पहले खर्च करने से कर्ज लेने की जरूरत पड़ती है। आप जरूरत पड़ने पर उन्हें कर्ज जरूर दें लेकिन इसके बदले ब्याज लेना न भूलें। इससे उन्हें कर्ज की जिम्मेदारी का पता चलेगा।
शुरूआत में लगाई गई बचत की यह आदत सारी जिंदगी उनके काम आएगी। पैसों का प्रबंधन कैसे करें इस कला का विकास शुरू से ही उनमें होने लगेगा।
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